नैनीताल: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अश्लीलताफैला रही 857 पॉर्न साइट्स को बंद करने का आदेश पारित किया है। यह आदेश करते हुए हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि इस संबंध में केंद्र द्वारा जारी अधिसूचना का मोबाइल कंपनियों द्वारा अनुपालन किया गया या नहीं।
केंद्र सरकार द्वारा 2015 में नोटिफिकेशन जारी कर कंपनियों से आईटी ऐक्ट के तहत इन साइट्स को बंद करने को कहा था, मगर आदेश के अरसा बीतने के बाद भी कंपनियों द्वारा इन साइट्स को ब्लॉक नहीं किया गया। इस बाबत केंद्र से 11 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने को भी कहा गया है।
हाल में देहरादून के भाऊवाला में एक बोर्डिंग स्कूल की छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म का सनसनीखेज मामला सामने आया। इस मामले के आरोपियों ने पूछताछ में खुलासा किया कि वह पॉर्न साइट्स देखते थे। इससे पूर्व सहसपुर क्षेत्र में नाबालिग बच्चों द्वारा भी एक नाबालिग बच्ची के साथ पॉर्न साइट देखकर कुकर्म करने का मामला सामने आया था।
इसके बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की खंडपीठ ने सरकार से पूछा था कि क्या पोर्न साइट्स को बंद किया जा सकता है या नहीं।
खंडपीठ ने गुरुवार को इन साइट्स को बंद करने का आदेश पारित किया। इस मामले में न्यायमित्र अधिवक्ता अरविंद वशिष्ठ बनाए गए हैं। इन साइट्स के सर्वर विदेशों में हैं, लेकिन मोबाइल कंपनी बीएसएनएल, एमटीएनएल और अन्य इनकी सेवा प्रदाता हैं। तमाम सामजिक अध्ययनों के भी निष्कर्ष यह साफ कर चुके हैं कि पॉर्न साइट्स की वजह से यौन अपराधों में इजाफा हो रहा है।
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने दिए देश में अश्लीलता फैला रही 857 पॉर्न साइट्स को बंद करने के आदेश

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