मुंबई: मेडिकल बोर्ड द्वारा गर्भपात की सलाह न देने के बावजूद बॉम्बे हाईकोर्ट ने 17 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को 25 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दे दी है। बता दें कि 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात अदालत की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। लिहाजा पीड़िता के पिता ने गर्भपात की अनुमति दिए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
अदालत ने केईएम हॉस्पिटल को दिया था निर्देश
न्यायमूर्ति के. के तातेड़ की खंडपीठ ने बुधवार को गर्भपात की अनुमति से जुड़े आदेश में कहा है कि यदि पीड़िता बच्चे को जन्म देती है तो इससे उसे गहरे मानसिक आघात का सामना करना पड़ेगा। इसका उसके मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ेगा। याचिका पर गौर करने के बाद कोर्ट ने मुंबई के केईएम अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को पीड़िता के भ्रूण की जांच करने का निर्देश दिया था।
दुष्कर्म के चलते हुई थी गर्भवती
मेडिकल बोर्ड ने अपने रिपोर्ट में साफ किया था कि यदि पीड़िता अपना गर्भधारण जारी रखती है तो वह स्वस्थ बच्चे को जन्म देगी। इस तरह से बोर्ड ने पीड़िता को गर्भपात न करने की सलाह दी थी। किंतु पीड़िता इसके लिए राजी नहीं हुई।
याचिका में पीड़िता की यह थी मांग
पीड़िता ने याचिका में कहा था कि यदि वह बच्चे को जन्म देती है तो इसका उसके शारिरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ेगा। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने व मेडिकल रिपोर्ट पर गौर करने के बाद कहा कि यदि पीड़िता बच्चे को जन्म देती है तो उसे गहरे मानसिक आघात का सामना करना पड़ेगा। इसलिए उसे गर्भपात की इजाजत दी जाती है। यदि गर्भपात की प्रक्रिया के दौरान बच्चा जीवित पैदा होता है तो राज्य सरकार व उससे संबंधित एजेंसी बच्चे से जुड़ी जिम्मेदारी को उठाए।
मेडिकल बोर्ड के इंकार के बावजूद हाईकोर्ट ने दी नाबालिग रेप पीड़िता को गर्भपात की इजाजत
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