संयुक्त राष्ट्र:अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ और ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ 2015 के ईरान परमाणु समझौते को लागू करने के विषय पर मंगलवार (30 जून) को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक को संबोधित करेंगे। ट्रंप प्रशासन ने दो साल पहले अमेरिका को इस समझौते से हटा लिया था। संयुक्त राष्ट्र के सबसे ताकतवार निकाय की लंबे समय से निर्धारित इस खुली बैठक से एक दिन पहले ईरान ने इस साल की शुरुआत में बगदाद में अमेरिकी ड्रोन हमले में शीर्ष ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के सिलसिले में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कई अन्य को हिरासत में लेने में इंटरपोल से मदद मांगी और गिरफ्तारी वारंट जारी किए।
ट्रंप पर गिरफ्तारी का कोई खतरा नहीं है और इंटरपोल ने बाद में कहा कि वह ईरान के अनुरोध पर विचार नहीं करेगा। बहरहाल, ये आरोप ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाते हैं जो विश्व शक्तियों के साथ हुए परमाणु समझौते से 2018 में ट्रंप के पीछे हट जाने और तेहरान पर फिर से सख्त अमेरिकी प्रतिबंध लगाने के बाद से ही बढ़ा हुआ है।
परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने वाली पांच अन्य शक्तियां – रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी इसके प्रति प्रतिबद्ध हैं। उनका कहना है कि यह समझौता अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी द्वारा लगातार निरीक्षण के लिए और ईरान को परमाणु हथियार बनाने से भी रोकने के लिए अहम है। सुरक्षा परिषद की मंगलवार की डिजिटल बैठक में अहम मुद्दा परमाणु समझौते का समर्थन करने वाले प्रस्ताव में एक प्रावधान जोड़ना है जो ईरान के खिलाफ लगाए गए संयुक्त राष्ट्र के हथियार प्रतिबंध अक्तूबर के मध्य में समाप्त करने की अपील करता है। ट्रंप प्रशासन हथियार प्रतिबंधों को हटाने का पुरजोर विरोध कर रहा है।
इस महीने आई एक रिपोर्ट में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र को यकीन है कि अमेरिका द्वारा जब्त की गई हथियारों की दो खेप (पोत से) में मिली कई सामग्रियों और सऊदी अरब की तेल कंपनियों तथा एक अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर हमले के बाद मिले मलबे में मिले सामान का स्रोत ईरान है। उन्होंने यह भी कहा था कि अमेरिका द्वारा नवंबर 2019 और फरवरी 2020 में जब्त की गई सामग्रियां 2019 में सऊदी अरब पर हुए क्रूज मिसाइल एवं ड्रोन हमलों में मिले सामान से “मिलती-जुलती” हैं। समझा जाता है कि ट्रंप प्रशासन रिपोर्ट की इन्हीं बातों का हवाला देकर यह तर्क देगा कि ईरान पर भरोसा नहीं किया जा सकता और हथियार प्रतिबंध की अवधि बढ़ाई जानी चाहिए।