पुणे में आचार्य भिक्षु का चरमोत्सव मनाया गया
पुणे। आचार्य महाश्रमण जी के शिष्य मुनी जिनेशकुमार जी के सानिध्य में 216 वां चरमोत्सव (पुण्य तिथि) समारोह पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर मुनि जिनेश कुमार ने कहा आचार्य भिक्षु तब भी महान थे अब भी महान है। महानता कभी बासी नहीं होती। आचार्य भिक्षु एक व्यक्ति नहीं संस्थान थे। आचार्य भिक्षु मरुधर के धोरी,अलबेले, दिव्या शक्ति संपन्न, अनुशासन प्रिय, कट्टर आचार के पक्ष धर, जागरूक, निस्पृह और सहिष्णु व्यक्ति थे। उनकी वाणी कबीर की तरह हृदय को छूने वाली थी। वे सत्य अहिंसा के पुजारी थे।
उन्होंने भगवान महावीर के सिद्धांतों को आत्मसात किया। उनकी जिनवाणी पर अगाध श्रद्धा थी। मुनि जिनेश कुमार ने आगे कहा जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों में एक क्रांतिकारी आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हुए। वे समयज्ञ, उपायज्ञ और विधायक सोच के धनी थे। उनको वर्षों तक पूरा आहार पानी नहीं मिला। संघर्षों से जूझे। उनको वस्त्र व् स्थान का भी अभाव रहता था। फिर भी साधना में सुमेरु की तरह अविचल रहे। उनका स्वर्गवास राजस्थान के सिरियारी ग्राम में भाग्य शुक्ला त्रयोदशी के दिन ७ पहर के अनशन के साथ हुआ। तेरापंथ के प्राणदेवता व संस्थापक आचार्य भिक्षु का नाम मंत्राक्षर के समान है। उनके सुमिरन से जन्म जन्म के बंधन कट जाते हैं। मुनि परमानंद ने कहा आचार्य भिक्षु महान संत थे। उन्होंने भगवान महावीर के दर्शन को यथार्थ रूप में बतलाया। कार्यक्रम का शुभारंभ जयदेव सेठिया के मंगल संगान के साथ हुआ। इस अवसर पर तेरापंथ सभा के मंत्री संजय मरलेचा, तेरापंथ युवक परिषद के उपाध्यक्ष हरीश श्रीमाल, तेरापंथी सभा जयसिंहपुर के पूर्व अध्यक्ष विजय सिंह रुनवाल, तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा सुमन मरलेचा व शोभा सुराणा ने अपनी भावांजलि देते हुए विचार व्यक्त किये। संचालन मुनि परमानंद ने किया। रात्रि में धम्म जागरण का प्रोग्राम रखा गया।
आचार्य भिक्षु अतींद्रिय चेतना के धनी थेः मुनि जिनेश कुमार
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