- क्या निसर्ग तूफान के टलने से संतुष्ट हो जाएं हम ?
- पर्यावरण को हो रहे नुकसान से बढ़ रहा है पृथ्वी का तापमान और समंदर का औसत जलस्तर, पिघल रहे हैं ग्लेशियर
- विकासशील देश जहरीली गैसों और ईंधन से पर्यावरण को पहुंचा रहे हैं नुकसान
स्वीडन की 16 साल की स्कूली छात्रा व पर्यवरण कार्यकर्ता ग्रेटा थंबर्ग ने जब पिछले साल दिसम्बर में स्पेन की राजधानी मेड्रिड में सीओपी 25 का सम्मेलन हुआ था, उसमें भाग ले कर सभी देशों के राजनेताओं को पर्यवारण को लेकर ठोस नीति और कार्यवाई की बात कही और झूठे आंकड़े के बिना ग्रीन हाउस गैस को कम करने और पृथ्वी के बढ़ते तापमान पर विकासशील देशों को खरी खोटी सुनाई तो लोग आवाक रह गए। ग्रेटा के पर्यवारण को लेकर प्रेम और समर्पण का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि न्यूयॉर्क में सम्मेलन में भाग लेने के लिए उसने नाव का सहारा लिया वा मजबूरीवश ट्रेन से जाकर भी सम्मेलन में भाग लिया ताकि पर्यवरण का ज़्यादा नुकसान ना हो। जिस उम्र में लड़कियां स्कूली पढ़ाई के साथ खेलकूद में और अत्यधुनिक दुनिया मे रहती हैं ग्रेटा ने छोटी सी उम्र में पर्यवरण को लेकर लोगों को पर्यवरण के नुकसान को बता रही है। ग्रेटा ने पर्यवरण को बचाने और ठोस कदम राजनेताओं द्वारा उठाने की मांग को लेकर स्वीडन संसद के बाहर बैनर पोस्टर के ज़रिए धरना भी दिया था। कहते हैं कि कुदरत खतरे की घण्टी बड़े शिद्दत से बजाती है।
दुनिया के हर हिस्से में यह आहट साफ सुनाई और दिखाई भी देती है। फिर भी विकासशील देश इस पर जितना ठोस कदम उठाना चाहिए उतना नही उठा पा रहे हैं। पर्यवरण के बढ़ते असंतुलन का ही कारण है कि क़ई देशों वा राज्यो में बिन मौसम बरसात ,ओला गिरना ,बर्फ गिरना ,तेज गर्मी जंगलों में आग रेगिस्तान में बर्फबारी भूस्खलन पहाड़ो की कटान जलजला भूकम्प ,जमीन का फटना वा तेज ठंडी पड़ना या मौसम का और अधिक असर पड़ना यह सब बढ़ते धरती के तापमान के कारण हो रहा है । प्रकृति के साथ भारी खिलवाड़ भी लगतार जारी है पेड़ो को काटना पहाड़ो को काटना जंगलों की अंधाधुन कटाई नैसर्गिक नालों तालाबो और समुंदर पर अतिक्रमण भी पर्यवरण को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे क़ई विकासशील देश हैं जो विकास की अंधी दौड़ में सी,ओ टु ( कार्बाइन डाई ऑक्साइड ) का अधिक उत्सर्जन कर रहे हैं । विकास की गति के लिए बढ़ते औधोगिककरण में जहरीली गैसों के ज़रिए वा ईंधन और कोयले के इस्तेमाल से पृथ्वी को गर्म कर रहे हैं पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है । जिस से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। धरती के तापमान के लगातार बढ़ने से मौसम की मार अधिक पड़ रही है । ग्लेशियर पिघल रहे हैं । समुंदर का औसत जलस्तर बढ़ रहा है। मौसम विशेषज्ञ और वैज्ञानिक लगातार जलवायु परिवर्तन को लेकर चेतावनी दे रहे हैं।
सभी देश इस गंभीर विषय पर हर साल सम्मेलन में भाग भी ले रहे हैं । फिर भी देशों के राष्ट्र अध्यक्ष या राजनेता अब तक इस पर ठोस कार्यवाई नही कर पा रहे हैं । कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन । ग्रीन हाउस गैस । कोयले से चलने वाली चिमनियां कम्पनियां और पेट्रोलियम ईंधन यह धरती को गर्म कर रहे हैं । ग्लेशियर लगातार पिघल रहे है । धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है इंसानी सभ्यता को बड़ा खतरा मंडरा रहा है । कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में प्रमुख देशों में पहले नम्बर पर चीन तो दूसरे नम्बर पर अमेरिका और चौथे नम्बर पर भारत भी है । विकास की अंधाधुंध दौड़ में प्राकृति के साथ भारी खिलवाड़ किया जा रहा है । जहरीली गैस कोयले का अधिक इस्तेमाल और ईंधन की खपत यह पर्यवरण को खास कर नुकसान पहुंचा रहे है । ऐसा नही है कि इस पर काम नही हो रहा है । संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी देशों के समझौते के तहत मूल ढांचे में सभी देश बंधे हुए हैं इस पर ३ बार समझौते हुए थे पहला समझौता १९९२ में हुआ था रियो अर्थ समिट के नाम से जाना जाता है जिस में सभी देश संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ पर्यवरण के नियमो में बंधे थे । दूसरा समझौता क्यूटो प्रोटोकॉल था जिस में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को ६ प्रतिशत कम करना था जिस पर सभी सहमत थे । हालांकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस मे अमेरिका खुद से बाहर हो गया था । फिर उस के बाद २०१५ में पेरिस समझौता हुआ था जिस में कार्बन डाई ऑक्साइड को ३५ प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा गया था । जिस में भारत ने दावा किया है कि वह २१ प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन कम करने में कामयाब हुआ है और जल्द लक्ष्य को पा लेगा जब कि कहा यह भी गया कि ६ देशों में भारत कार्बन उत्सर्जन में आगे है । कोरोना काल मे विश्व महामारी घोषित होने के बाद सभी देशों में लोकडाउन घोषित हो गया था । कंपनियां कारोबार गाड़ियां सभी बंद हो गए थे या यह कहे कि विकास की अंधी दौड़ में पर्यवरण को नुकसान देने वाली जहरीली गैस की चिमनियां भी थम कर बंद हो गई थी। नदियां साफ हो गई थी । भले ही इंसान लोकडाउन में परेशान और इस से दुखी था लेकिन पंछी इस साफ सुथरे वातारण में इस का लुत्फ उठा रहे थे । कुछ दिनों पहले निसर्ग चक्रवाती तूफान का खतरा मुम्बई और आस पास के जिलों में मंडराया था । इस का मुख्य केंद्र अलीबाग था हालांकि अलीबाग के निकट मुरुड में इस का ज़्यादा असर देखा गया इस चक्रवती तूफान से पालघर सहित अन्य जिलों को भी अलर्ट पर रखा गया था । मुम्बई का प्रसिद्ध सिलिंक भी बंद कर दिया गया था प्रसाशन पूरी तरह से मुस्तैद था धारा १४४ लगा दी गयी थी । दिल्ली से एनडीआरएफ कि १५ टीमें आ गई थी क़ई रेस्क्यू टीमो को स्टैंड बाई पर रखा गया गया था । मीडिया रिपोर्ट में यह बताया गया था कि १०० वर्षों बाद ऐसा चक्रवाती तूफान उठा है जिस की रफ्तार १२० किलोमीटर बताई गई थी । बीएमसी से लेकर जिला प्रसाशन और सभी यंत्रणा अलर्ट पर थी । हालांकि यह तूफान अलीबाग से होता हुआ नाशिक चला गया जंहा इस कि रफ्तार कम पड़ गई थी ।जिस से मुम्बई और आस पास ज़िलों में राहत की सांस ली गई थी । लेकिन बड़ा सवाल यह उठता है कि भले ही हमारी सरकारी यंत्रणा पूरी तरह से मुस्तैद हो हर चुनोती का सामना करने के लिए तैय्यार हो लेकिन यह तैयारी ही काफी नही है सवाल यह उठता है कि इस तूफान के गुजर जाने से क्या हम राहत की सांस ले ले क्या ऐसे तूफान दुबारा नही आएंगे । जिस तरह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है । समुंदर में ऐसे तूफान आने की बात पर्यवरण वैज्ञानिक करते आए है । विज्ञान और वैज्ञानिक हमेशा से पर्यवरण को हो रहे नुकसान से प्राकृतिक आपदाओं की चेतावनी देते आए हैं ज़रूरत इस बात कि है कि पर्यवारण को नुकसान से बचाने के लिए और अधिक ठोस काम सरकारे करें।
लोकडाउन के कारण बड़े पैमाने पर पर्यवरण साफ सुथरा और शुद्ध होता दिखाई दिया था । साफ सुथरे वातावरण का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि भारत मे सहारनपुर से हिमालय की चोटी दिखाई दे रही थी । क़ई महीने से लगातार चल रहे लोकडाउन का पार्ट ५ चल रहा है जिस में पार्ट ५ में अनलॉक कुछ रियायत दी जा रही है बंद पड़े बाजार नियमो के साथ खुलने जा रहे है नियमो के साथ कारोबार को भी खोला जा रहा है औधोगिक इकाइयां फिर से काम करने जा रही है । देश को आर्थिक नुकसान से उभारने के लिए बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा केंद्र सरकार कर चुकी है । ऐसे में सब से महत्वपूर्ण यह होगा कि साफ सुथरे पर्यवरण के अनुकूल काम किया जा सके जिस से की पर्यवरण को नुकसान ना पहुंचा कर उस के अनुकूल काम किया जा सके साथ ही अन्य सभी देशों को भी इस गम्भीर विषय पर और अधिक ठोस काम करने की भी ज़रूरत है ताकि धरती के बढ़ते तापमान और प्राकृतिक आपदाओं को कम किया जा सके। (जानकारी मीडिया से साभार)
यह एक ज्वलंत व गंभीर विषय है। संपूर्ण विश्व के विकसित एवं विकाशील देशों आगे आकर पर्यावरण औऱ प्रकृति असन्तुल को लेकर डोस कदम उठाना होगा। समय रहते यदि इसकी गंभीरता व भयावता को नजरअंदाज किया गया तो, इसका दुष्परिणाम समूचे मानव जाति को भुगतना होगा।
आपने पर्यावरण गंभीरता और उससे होने वाले घातक परिणाम सहित पर्यावरण प्रेमी के सराहनीय कदम को अपने लेख के माध्यम से महत्वपूर्ण स्थान ही नहीं अपितु उनकी प्रकृति और पर्यावरण केके समर्पणभाव को भी स्थान दिया है। आपका यह लेख समसामयिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।