आज पूरी दुनिया के सामने दक्षिण कोरिया एक मिसाल बन गया है। महीने भर पहले इस देश में महामारी के आंकड़़े चौंकाने वाले थे। पर बहुत जल्द, व्यवस्थित तरीके से और सरकार व जनता के बीच अभूतपूर्व सहयोग से आज यह संख्या नहीं के बराबर रह गई है। कैसे इस छोटे से देश ने इतने कम समय में यह करके दिखाया? न्यूयॉर्क के एशिया सोसाइटी के एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट टॉम नागोरस्की ने दक्षिण कोरिया के इतिहासकार जॉन डेल्यूरी और पत्रकार जोंग मिन किम से फेसबुक लाइव के जरिये यह जानने की कोशिश की। तो चलिए जानते हैं दक्षिण कोरिया की जीत की कहानी…
1. एक महीने पहले दक्षिण कोरिया में प्रतिदिन कोरोना वायरस के 900 पॉजिटिव मामले सामने आ रहे थे। स्थिति भयावह थी और डर था कि यह संख्या आगे चल कर उनके पड़ोसी देश की तरह कई गुना न हो जाए, पर आज यह संख्या घट कर 50 के भीतर रह गई है। यह कैसे हो पाया?
जब इस महामारी ने दक्षिण कोरिया में दस्तक दी, तो शुरू के दिनों की स्थिति बेहद भयावह थी। हम अपने पड़ोसी देशों को देख कर परेशान थे। लेकिन केसीडीसी (कोरिया सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) जब एक्शन में आई और युद्धस्तर पर कार्यवाही शुरू हुई, तब यह संख्या जादुई रूप से घटने लगी। शुरू में कुछ लोगों को हर समय मास्क पहने रहने, सोशल डिस्टेंसिंग और बाहर न जा पाने से दिक्कत होती थी, लेकिन आज जब स्थितियां काफी बेहतर हुई हैं, जनता का सरकार पर विश्वास बढ़ा है। हर किसी को लग रहा है कि हम बहुत जल्द इस दौर से निकल जाएंगे और कोरोना वायरस से पार पा लेंगे।
2. दक्षिण कोरिया में यह महामारी कहां से और किस तरह से फैली? शुरुआत में यह बेकाबू क्यों हो गई?
महामारी की शुरुआत में एक धार्मिक समुदाय शिनचिआंजी के अनुयायी चर्च में बड़ी तादाद में इकट्ठे हुए। जब उस समुदाय के कुछ लोगों का रिजल्ट पॉजिटिव आया, तब एक बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। इस समूह के कई लोग अपना परिचय नहीं देना चाहते थे, अपनी पहचान छिपा रहे थे। उन्हें ढूंढ़ना मुश्किल था। डेगू शहर के आसपास देखते-देखते महामारी फैल गई। उनकी जांच के वक्त खास धार्मिक समुदाय के लोगों से आपत्ति भी झेलनी पड़ी। यह बड़ी वजह थी कि बहुत कम दिनों में कोरोना वायरस तेजी से बड़ी तादाद में फैल गया। इसके बाद मीडिया में उनकी आलोचना शुरू हुई। उन पर सख्त कदम उठाने की मांग हुई और सरकार एकदम से हरकत में आ गई।
3. क्या दक्षिण कोरिया इस तरह की भीषण आपदा के लिए तैयार था? क्या-क्या तकलीफें सामने आईं?
दक्षिण कोरिया में पहले भी महामारियां हो चुकी हैं। 2003 में सार्स और 2015 में मर्स के बाद सिविल सोसाइटी एक तरह से महामारी झेलने की आदी थी, लेकिन कोविड-19 इन सबसे भयंकर है। हालांकि पांच साल पहले भी हमें सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाने को कहा गया था।
इस बार सबसे बड़ी दिक्कत संदिग्ध मरीजों को टेस्ट करने को लेकर आई। रातोंरात लाखों किट की व्यवस्था करना आसान नहीं था। हमें पांच लाख मास्क की जरूरत थी, लेकिन सरकार ने जैसे ही आम जनता को अपनी प्लानिंग बताई और लॉकडाउन के लिए कहा, लोग अनुशासन में आ गए। एक बात तो है कि यहां पर सिस्टम काम करता है, सरकार काम करती है, और उनके साथ प्राइवेट सेक्टर भी हाथ मिला कर काम करता है। इस महामारी से निपटने के लिए प्राइवेट कंपनियों से तुंरत टेस्ट किट बनवाए गए और लैब की क्षमता भी बढ़ाई गई।
इस कठिन दौर में मीडिया ने भी सही तरीके से अपना धर्म निभाया। दक्षिण कोरिया के लोगों को एक डर और भी था। पड़ोसी देश चीन की हालत बेकाबू हो रही थी। दरअसल चीन, दक्षिण कोरिया के इतना नजदीक है कि वो छींकता भी है तो दक्षिण कोरिया में हम उसके कण महसूस करते हैं। सिविल सोसाइटी ने चीन की गलतियों से भी सबक लिया और सरकार और संस्थाओं, केसीडीसी को पूरा सहयोग दिया।
4. हम यहां बार-बार माइक्रो इन्फॉर्मेशन की बात कर रहे हैं? वह क्या है और कैसे काम करता है?
अमेरिका की जनता हद से ज्यादा अपनी प्राइवेसी की चिंता करती है और वहां इसके लिए सख्त कानून भी हैं। पर्सनल प्राइवेसी को कोरियाई लोग भी महत्व देते हैं, पर जब जनता को यह एहसास हुआ कि यह आपदा का वक्त है, तो सबने सहयोग किया। सबका डेटा सरकार के पास है और वह इसकी सही तरीके से मॉनिटरिंग करती है। माइक्रो इन्फॉर्मेशन का मतलब है, हर घर, कालोनी के आसपास कोई कोरोना पॉजिटिव है तो उसकी हर गतिविधि की उस पूरे इलाके के लोगों को तुरंत और लगातार जानकारी देना। इससे यह होता है कि आसपास के लोग सख्ती से नियमों का पालन करते हैं। अमेरिका में यह नहीं हो रहा है, इस वजह से वहां महामारी विकराल रूप ले चुका है।
5. दक्षिण कोरिया में संदिग्ध मरीजों की हर गतिविधि मापी जाती है। कोरोना मैप्स है क्या और कैसे काम करता है?
दक्षिण कोरिया के आईटी के छात्रों ने मिलकर कोरोना मैप्स पर काम करना शुरू किया। बाद में उनके इस अभियान में कई इंजीनियर और प्राइवेट कंपनियां भी साथ आ गईं। ये एप मरीजों की मूवमेंट बताते हैं। वे इमजेर्ेंसी अलर्ट देते रहते हैं। लोगों को खास जगह पर जाने से मना करते हैं। हर दिन का डेटा अपलोड होता है और सही खबरें लोगों तक पहुंचाई जा रही हैं। कोरियाई हेल्थ सर्विस पर कम पैसा देते हैं, पर उन्हें बेहतर हेल्थ केयर सर्विस उपलब्ध है। सरकार पब्लिक हेल्थ केयर के लिए ज्यादा पैसे रखती है और हर आपदा के लिए तैयार रहती है। इससे अपनी कालोनी के आसपास के मरीजों की जानकारी तुरंत मिल जाती है, जो अमेरिका में नहीं हो पा रहा है।
6. दक्षिण कोरिया की सिविल सोसाइटी किस तरह से इस महामारी से लड़ने के लिए आगे आई?
शुरुआत में कई ऐसे लोग थे, जो सरकार की जम कर आलोचना कर रहे थे। लेकिन इनमें से कई ऐसे थे, जो सार्स और मर्स के बाद चेत गए थे। जब मामला गंभीर होता नजर आया और सरकार ने सख्त कदम उठाने शुरू किए, तो एक समय ऐसा भी आया, जब अस्पतालों में जबरदस्त भीड़ बढ़ने लगी। ऐसे समय में जब तक कि टेस्टिंग लैब की संख्या नहीं बढ़ जाती, फोन सर्विस के जरिये मरीजों को चेताया गया कि किन लोगों को वास्तव में टेस्ट की जरूरत है। एक बात और, यहां किसी ने अपने घर में जरूरी सामानों की जरूरत से ज्यादा खरीदारी नहीं की। सबको यह यकीन बना रहा कि जरूरत पड़ने पर उन्हें सामग्री मुहैया करवा दी जाएगी।
7. दक्षिण कोरिया में पढ़ने वाले अमेरिकी और दूसरे देशों के छात्र जानना चाहते हैं कि क्या अब वहां जिंदगी सामान्य हो गई है? टेस्टिंग बंद हो गई है?
एक अमेरिकी छात्रा कुछ दिनों पहले ही दक्षिण कोरिया से लौटी है। उसने कभी सोशल डिस्टेंसिंग नहीं रखी। अमेरिका में लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे। उसे लगा कि यहां सब ठीक हो गया है, पर वह पॉजिटिव निकली। यह गलती यहां के छात्र नहीं करते। यह सही है कि हमने महामारी को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया है, पर वे अनुशासन में रहते हैं। हमेशा मास्क पहनते हैं, बिना जरूरत बाहर नहीं निकलते। फिलहाल तो 6 अप्रैल तक यही स्थिति रहेगी। अभी यह खत्म नहीं हुआ है, इस समय अनुशासन और सावधानी की सख्त जरूरत है। अमेरिका से आने वाले छात्रों को लेकर चिंता है कि कहीं वे इस महामारी को फिर से यहां लेकर न आ जाएं।
8. इस मुहिम के रियल हीरो कौन हैं?
यह सच है कि केसीडीसी ने सराहनीय काम किया है। दूसरी बात सरकार की। शुरू में उनसे गलतियां हुईं, कुछ गलत निर्णय हुए, देरी भी हुई, लेकिन सरकार ने कभी अपनी गलतियों पर परदा नहीं डाला। मीडिया और आम जनता ने उनकी आलोचना भी की, पर वह उससे नहीं घबराई और न ही जवाब दिया। हालांकि इस मुहिम के असली हीरो तो दक्षिण कोरिया के लोग हैं, जिन्होंने समय पर सरकार, मेडिकल सेक्टर, केसीडीसी, प्राइवेट कंपनी और मरीजों का साथ दिया। उन्होंने नियमों का सख्ती से पालन किया। उन्हीं की वजह से हालात इतनी जल्दी सुधर पाए।
शुरू में सरकार की काफी आलोचना हुई, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पर उंगली उठी, पर आलोचना को सरकार, डॉक्टर, विपक्ष, प्राइवेट सेक्टर, सबने पॉजिटिव तरीके से लिया। अब सब मान रहे हैं कि सरकार ने अच्छा काम किया है। समय पर आईटी आगे आई, कई एप्स बनाए, जरूरी हैशटैग मूवमेंट शुरू किए। इस तरह एकजुट पहल के बलबूते ही यहां सफलता की कहानी लिखी जा सकी।
कोरोना के खिलाफ दक्षिण कोरिया के चार अहम कदम
1. नए संक्रमण से जुड़ी सूचनाएं शेयर करने में पारदर्शिता बरती गई। कब, कहां, कैसे यह संक्रमण फैला, इसकी पूरी सूचना लोगों तक पहुंचाई गई।
2. दिसंबर में जब चीन में वायरस की खबर फैली, दक्षिण कोरिया में तभी से उसे काबू करने के प्रयास शुरू कर दिए गए। संक्रमित लोगों की पहचान करने और उन्हें अलग रखने पर जोर दिया गया।
3. 2015 में मर्स के हमले के समय वहां ‘ट्राई एज एंड ट्रीटमेंट’ विकसित किया गया था। गंभीर मामलों के लिए पांच अस्पताल बनाए गए। हल्के मामलों को स्थानीय अस्पतालों में भेजा गया। जिम, होटल और आवासीय केंद्रों में नए हॉस्पिटल बेड बनाए गए।
4. जांच किट, बड़े स्तर पर स्क्रीनिंग, मोबाइल टेस्ट सेंटर प्रमुख हथियार रहे। चौबीस घंटे जांच करने वाली 100 प्रयोगशालाओं के जरिये सप्ताह में 4.3 लाख के करीब जांच क्षमता का नेटवर्क बनाया गया।
मिथक और सच्चाई
दावा- किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ दस मिनट रहने पर ही संक्रमण होता है।
हकीकत : इस बात में कोई शक नहीं कि योग से हम सभी सेहतमंद जीवन जीने की ओर आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन यह कोविड-19 संक्रमण का बचाव नहीं है। संक्रमण होने पर तुरंत विशेषज्ञों की निगरानी में आना बहुत जरूरी है।
दावा- कोविड-19 अब तक का सबसे घातक वायरस
हकीकत : वैज्ञानिक कहते हैं कि कोविड-19 (सार्स-कोव-2) संक्रमण, एन्फ्लुएंजा से ज्यादा गंभीर संक्रमण दिखता जरूर है, पर अब तक हमारा सामना जितने भी वायरस से हुआ है, उनमें यह सबसे घातक नहीं है।
दावा- योग से ठीक हो सकता है कोविड-19 संक्रमण
हकीकत : वैज्ञानिक साक्ष्यों की मानें तो हम कोविड -19 से संक्रमित किसी व्यक्ति के साथ जितनी देर तक रहेंगे, संक्रमित होने की आशंका उतनी बढ़ जाएगी। लेकिन यह संक्रमित व्यक्ति के साथ 10 मिनट से कम रहने पर भी हो सकता है।