दुनिया भर में महामारी के कहर के बीच 25 मार्च से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत रही है. हिंदू धर्म में नवरात्रि का खासा महत्व होता है लेकिन इस साल इसपर महामारी कोरोना का ग्रहण लगा हुआ है. लेकिन लोगों की आस्था को आज तक किसी भी तरह की मुसीबत कम नहीं कर पाई है और न उनकी भक्ति को हिला पाई है. कोरोनावायरस के कारण मंदिर और बाजारों में नवरात्रि की रौनक गायब हो सकती है लेकिन देवी दुर्गा के भक्त अपने घरों में विधि-विधान से पूजा कर सकते हैं.
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री ने बताया कि इस बार की नवरात्रि में भी कई विशेष संयोग बन रहे है। उन्होंने कहा कि इस बार के नवरात्रि में 178 साल पहले बने दुर्लभ संयोग फिर बन रहा है। इस साल के नवरात्रि में गुरु धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश किया था जो इस बार भी गुरु धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश कर रहा है जो एक परिपूर्ण योग माना जाता है।
पंडित अतुल शास्त्री ने बताया कि देवालयों और घरों में नवरात्रि के पहले दिन विधि-विधान के साथ कलश स्थापना की जाती है। कलश में आम के पत्ते और जौ के दाने के साथ सूखा नारियल भी रखा जाता है, और आदिशक्ति की उपासना के लिए ज्योत प्रज्ज्वलित की जाती है। इस बार चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि 24 मार्च दोपहर 2:57 बजे से शुरु होकर 25 मार्च दोपहर 5:26 बजे तक रहेगी। महामाया मंदिर में घट स्थापना का अभिजीत मुहूर्त 25 तारीख को सुबह 11 बजकर 36 मिनट से लेकर 12 बजकर 24 मिनट तक है। उन्होंने बताया कि इस बार के नवरात्र में खास बात यह है कि इस बार चैत्र नवरात्रि के व्रत में किसी भी तिथि का क्षय नहीं है। जिसकी वजह से माता के भक्त पूरे नौ दिनों तक मां की पूजा अर्चना और व्रत कर पाएंगे।
चार सर्वार्थ सिद्धि योग समेत बन रहे कई योग
पंडित अतुल शास्त्री ने बताया कि यह नवरात्रि सभी के लिए बहुत ही अच्छे योग और संयोग लेकर आ रही है। इस नवरात्रि में इस बार चार सर्वार्थ सिद्धि योग, 6 रवि योग, दो अमृत सिद्धि योग और एक द्वीय पुष्कर योग और एक गुरु पुष्य अमृत योग बन रहा है। जो हर मनोकामना को पूर्ति करने के साथ ही सभी के लिए हितकारी भी है। उन्होंने बताया कि हिंदू नव वर्ष भी चैत्र नवरात्रि के पहले दिन से ही शुरु होता है।
चैत्र नवरात्र पूजन का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है. शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. तथा “दुर्गा सप्तशती” का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए. इस वर्ष घट स्थापना 06 बजकर 23 मिनट से लेकर 07 बजकर 14 मिनट तक रहेगा. इसके पश्चात अभिजित मुहुर्त में भी स्थापना की जा सकती है.
क्यों करते हैं कलश स्थापना ?
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा से पहले गणेशजी की आराधना करते हैं। हममें से अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि देवी दुर्गा की पूजा में कलश क्यों स्थापित करते हैं ? कलश स्थापना से संबन्धित हमारे पुराणों में एक मान्यता है, जिसमें कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं। पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।
कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। माँ दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है और माँ का श्रृंगार रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से करते हैं। पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है।
माता में श्रद्धा और मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए बहुत-से लोग पूरे नौ दिन तक उपवास भी रखते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के समान माना जाता है, श्रद्धा से भोजन कराई जाती है और दक्षिणा आदि दी जाती है। चैत्र नवरात्रि में लोग लगातार नौ दिनों तक देवी की पूजा और उपवास करते हैं और दसवें दिन कन्या पूजन करने के पश्चात् उपवास खोलते हैं।
देवी दुर्गा की पूजा गुप्त नवरात्रि में भी की जाती है, आषाढ़ और माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले इस नवरात्र को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। हालांकि अधिकांश लोगों को न तो इसकी जानकारी है और न ही वो गुप्त नवरात्र को मनाते लेकिन तंत्र साधना और वशीकरण आदि में विश्वास रखने या उसे इस्तेमाल करने वालों के लिए गुप्त नवरात्रि बहुत ज्यादा महत्व रखती है। तांत्रिक इस दौरान देवी मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी साधना भी करते हैं।
– ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री