आदित्य तिक्कू।।
नमस्कार,
आप को जब तक यह खत मिलेगा तब तक में आप से दूर जा चुका होउंगा। जानता हूं आपको और मम्मी को बहुत दुख होगा, पर हर बार की तरह मैं इस बार भी विवश हूं। पहले अपनी पढ़ाई की आड़ में आपसे भागा था फिर भविष्य के नाम पर और इस बार सदा के लिए।
मैं जनता हूं जबसे सिड्नी पहुंचा था तबसे आप से बदतमीज़ी कर रहा था। आपको नज़रअंदाज़ कर रहा था। यह नहीं कहूंगा कि मैंने यह सब अनजाने में किया था। बस नाराज़गी थी, जिससे में लड़ता रहा। इंडिया के लिए निकलने तक दिमाग में बस गुस्सा था कि घर आउंगा और आपको दिखाऊंगा में कहां से कहां पहुंच गया। आप वहीं के वहीं रह गये। पर पापा पता नहीं कैसे, क्यों हल्की सी खांसी आयी और आपकी याद आ गयी। कैसे आप बचपन से मेरी खांसी से विचलित हो जाते थे। सिडनी से मुंबई आपके बारे में ही सोचता रहा। परत दर परत सारी ग़लतफ़हमिया दूर होती गयीं। बेटा कामयाब होता है ये उसकी सफलता नहीं, यह माँ – बाप के परिश्रम का परिणाम है जो इतना सक्षम बन पाया। पापा सच कहूं मैं बुरा नहीं था बस बचपन के डर से निकल नहीं पाया। 14 घंटे 30 मिनट में जब निकला तो देर हो गयी। पापा आप सही थे बच्चों को समय पर घर आ जाना चाहिए।
पापा जैसे ही दिल्ली एयरपोर्ट पर पता चला मैं कोरोना इनफेक्टेड हूं। में डर गया पापा, सच्ची। पापा कुछ समझ नहीं आ रहा है। सब कह रहे हैं घबराने की बात नहीं है। में बच जाऊंगा परन्तु एक छींक से भी सिहर रहा हूं,पापा मिसिंग यू।
पापा हर क्षण भय बढ़ता जा रहा है। मुझसे नहीं सहा जा रहा। खाली कमरे में मेरी छींक सनाटे और मुझे चीर रही है।
पापा थक गया … माँ सोता हूं।
आपका लाल