अहिंसा परम धर्म है : आचार्य महाश्रमण
16-03-2020, सोमवार, वाढेगांव, सोलापुर, महाराष्ट्र। अहिंसा यात्रा द्वारा महाराष्ट्र की धरा पर शांति का प्रसार कर रहे तेरापंथ के 11वें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आज प्रातः कमलापुर गांव के सिंघड़ इंस्टिट्यूट से मंगल विहार किया। कोल्हापुर, सांगली के बाद सोलापुर जिले में विचरण कर रहे आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ नेशनल हाईवे संख्या 166 पर विहार करते हुए वाढेगांव में पधारे। यहां के ग्राम वासियों एवं विद्यार्थियों ने अहिंसा यात्रा प्रणेता का भक्तिपूर्वक स्वागत किया। लगभग 13 किमी विहार कर ज्योति चरण उदयसिंह देशमुख विद्यालय में प्रवास हेतु पधारे।
प्रवचन सभा में अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाने वाले ज्ञान का प्रकाश करते हुए आचार्य श्री ने कहा अहिंसा को परम धर्म कहा गया है। ज्ञानी के ज्ञान का सार है कि वह किसी की हिंसा नहीं करता। व्यक्ति यह सोचे जैसे मुझे सुख प्रिय है और दुख अप्रिय है उसी प्रकार दूसरे प्राणियों को भी दुख पसंद नहीं। सुख प्रिय है। मैं जीना चाहता हूं मरना नहीं चाहता वैसे कोई और प्राणी मरना नहीं चाहता। जीवन सबको प्रिय है। दुनिया में अहिंसा है तो हिंसा भी है। हिंसा मूढ़ता है। हिंसा अनेक रूपों में उभर सकती है। हम अंधकार को मिटाने का प्रयास करें। हिंसा को रोकने का प्रयास करें। हिंसा के माहौल में अहिंसा का प्रयास हो तो हिंसा रुक सकती है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि अहिंसा तो परिणाम है, प्रवृत्ति है। उस से पूर्व भीतर राग-द्वेष की वृत्ति होती है। वृत्ति पर भी ध्यान देना आवश्यक है। लोभ की वृत्ति, आक्रोश, भय की वृत्ति यह सब हिंसा की नींव है। कारण समाप्त होता है तो कार्य भी समाप्त हो जाता है। आक्रोश, भय समाप्त हो तो अहिंसा साकार हो सकती है। हिंसा के तीन प्रकार होते हैं खेती-बाड़ी करना, खाने के लिए हिंसा करना आरंभजा हिंसा है। वहीं देश के लिए मातृभूमि के लिए सैनिक रक्षा करते हैं, हथियार उठाते हैं वह प्रतिरक्षा के लिए होती है। परंतु तीसरी संकल्पजा हिंसा लोभ के लिए, गुस्से में की जाने वाली हिंसा से बचना चाहिए। हमारी जीवन शैली में अहिंसा जुड़े यह काम्य है।
पूज्यवर तत्पश्चात ग्रामवासियों एवं विद्यार्थियों को अहिंसा यात्रा के संकल्प स्वीकार कराएं। इस अवसर पर विद्यालय संस्थापक पूर्व विधायक दीपक अब्बा साहब सांलुके, सरपंच नंदकुमार दिधे, ग्राम पंचायत से धनंजय पंवार, प्रधानाचार्य अनंत कुलकर्णी एवं संस्था सचिव सुभाष लउलकरसर ने अपने विचार रखे।