पुणे। आचार्य महाश्रमण की सूशिष्य मुनि जिनेश कुमार जी के सानिध्य में संवत्सरी महापर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। करीबन 10 घंटे तक कार्यक्रम चला । पुणे में पहली बार इतने लंबे समय तक प्रवचन चला। इस कार्यक्रम में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मुनि जिनेश कुमार ने कहा मनुष्य स्वभाव से चंचल होता है। चंचल मन को स्थिर वह अपनी आत्मा को देखने वाला ही अपना विकास कर सकता है। विकास का मूल सूत्र है – आत्मनिरीक्षण। पर्युषण आत्मनिरीक्षण का पर्व है। पर्युषण पर्व का प्राण तत्व है – संवत्सरी। संवत्सरी जिन शासन की दिवाली है। यह उपशम व आध्यात्मिक विकास का दिन है। पर्युषण इंद्रिय और मन को वश में रखने का पर्व है। संवत्सरी के दिन भगवान महावीर का जीवन दर्शन बताते हुए कहा कि भगवान महावीर अलौकिक दिव्य पुरुष थे। अप्रितम ज्ञान व निर्भीक चेतना के धनी थे। उन्होंने तीस वर्ष की उम्र में दीक्षा ली। साधना काल में कष्टों को सहन किया और भीषण तप तपा। उनको केवल ज्ञान हुआ और तीर्थ की स्थापना कर वे तीर्थंकर हुए। वर्तमान में भगवान महावीर का शासन चल रहा है। मुनि ने आगे कहा संवत्सरी ग्रंथी मोचन व मैत्री का पर्व है। आज के दिन यदि साधु, श्रावक मन में बैर की ग्रंथि रखें और मन को मलिन रखता है वह विशिष्ट शक्ति को गवा देता हैं। विचार भेद हो सकते हैं लेकिन मन भेद नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को उपशम की साधना करनी चाहिए। क्रोध व्यक्ति की गति को बिगाड़ देता है। क्रोध उपशम के लिए ध्यान साधना करनी चाहिए। संवत्सरी का पूरा इतिहास बताते हुए कहा कि संवत्सरी का इतिहास पुराना है। कब से प्रारंभ हुआ यह बताना तो मुश्किल है लेकिन जिन्होंने भी प्रारंभ किया वह ससीम नहीं असीम ज्ञानी थे। वे वर्तमान दर्शी नहीं त्रिकालदर्शी थे क्योंकि हजारों वर्ष के बाद भी जैन धर्म का यह विशिष्ट पर्व चल रहा है। कुछ स्वरूप और समय में जरूर अंतर आ गया है। यह पर्व खमतखमणा का पर्व है। सुब जीवों से खमतखमणा कर अपने आप को हल्का कर लेना चाहिए। मुनि ने आचार्य पटावली के बारे में बताया। मुनि परमानंद ने तीर्थंकरों के बारे में बताते हुए संवत्सरी के महत्व को प्रतिपादित किया। संवत्सरी के दिन 180 8 ,6 ,4 प्रहरी पौषध हुए। संवत्सरी महापर्व की आराधना हेतु तेरापंथ सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल द्वारा सक्रिय योगदान दिया गया।