जालना (लीलाबाड़ी)। सांसारिक लोगों का जन्म महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। ऐसे लोग विरले होते हैं जो मृत्यु को महोत्सव का रूप देते हैं। बीड निवासी तेजराज जी समदड़िया ने ऐसा करके एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। बहुत वर्षों से उनकी भावना थी की वे अनशनपूर्वक देहत्याग करें ।उनकी इस भावना को पूरा करने में उनके सुपुत्र किशोर एवं पुत्रवधू रूपाली विशेष रूप से सहयोगी रहें। उनके ज्येष्ठ भ्राता उपासक सुभाष जी समदड़िया ने उन्हें अनशन का प्रत्याख्यान करवाया। आचार्यश्री महाश्रमणजी की विदुषी शिष्या साध्वीश्री निर्वाणश्रीजी ने समुपस्थित समदड़िया परिवार को संबोधित करते हुए ये उद्गार व्यक्त किए।
साध्वी श्री योगक्षेमप्रभाजी ने अपने वक्तव्य मैं कहा – यद्यपि श्रावक तेजराज जी से हमारा साक्षात् परिचय नहीं था, पर जैसा उनके विषय में जाना वे विशिष्ट साधनाशील श्रावक थें। नाना प्रकार के त्याग- प्रत्याख्यान से उनका जीवन सुसज्जित था। उन्होंने अपने पुत्र – पुत्रियों में भी धर्म के वैसे ही संस्कार भरें। उन्होंने बीड क्षेत्र का गौरव बढ़ाया है।
साध्वी मधुरप्रभाजी ने वैराग्यरस से ओतप्रोत गीत प्रस्तुत किया ।उपासक श्री सुभाष जी समदड़िया ने उनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए उनके अनशन के संदर्भ में प्राप्त पूज्यप्रवर के संदेश का वाचन किया ।उनकी पुत्रियों सरिता सेठिया एवं अमिता गोगड़ ने अपने भाव सुमन समर्पित किए। उनके सुपुत्र किशोरजी ने वर्ष पर्यंत संपूर्ण जमीकंद का परित्याग कर त्यागमय श्रद्धांजलि अर्पित की।
चतुर्दिवसीय इस अनशन से बीड का वातावरण अध्यात्ममय हो गया। तेरापंथ भवन में हर समय जप– स्वाध्याय आदि के स्वर गूंजते रहें। समदड़िया जी से मिलने आने वाले सैकड़ों भाई — बहिनों ने भी उनके अनशन के उपलक्ष्य में विविध त्याग प्रत्याख्यान स्वीकार किए। मंगल पाठ उच्चारण के साथ स्मृति सभा परिसंपन्न हुई। यह जानकारी किशोर समदड़िया ने दी।
अनशनपूर्वक देहत्याग जीवन की विशिष्ट उपलब्धिः साध्वी निर्वाणश्री
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