स्वावलंबी हो जीवन : आचार्य महाश्रमण
ग्रामीणों ने स्वीकारे अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी
09-02-2020, रविवार, करिकट्टी, कर्नाटक। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ आज प्रातः सवदत्ती के तेरापंथ भवन से मंगल विहार किया। करुणासागर गुरुदेव ने महती कृपा कर सवदत्ती में एक तपस्वी बहन एवं एक रुग्ण श्राविका के निवास स्थान पर पधार कर मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। कई दिनों बाद आज प्रातकाल अच्छी ठंड महसूस हो रही थी। आसपास के खेतों की बहुलता होने के कारण हल्का कोहरा दृष्टिगोचर हो रहा था। स्टेट हाईवे संख्या 30 पर गतिमान शांतिदूत श्री महाश्रमण जी लगभग 12 किलोमीटर विहार कर करिकट्टी में स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पधारे।
विद्यालय प्रांगण में मंगल देशना देते हुए पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि – जीवन में विद्या का महत्व होता है। जो ज्ञानी होता है वह उपयोगी बन सकता है। जो विद्वान होता है, उसकी विद्वता सर्वत्र पूजी जाती है। विद्यार्थियों को, विद्या प्राप्त करने के इच्छुक को अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। घमंड ज्ञान प्राप्ति में बाधक होता है। व्यक्ति का ज्ञान के प्रति रुझान हो, आकर्षण हो, सम्मान के भाव हो तभी ज्ञान प्राप्त हो सकता है। अपनी आंख जैसे अपने काम आती है, उसी प्रकार अपना सीखा हुआ ज्ञान अपने काम आता है। ज्ञान के क्षेत्र में दूसरों पर आलम्बित नहीं रहना चाहिए।
शांतिदूत ने आगे एक कथानक द्वारा प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यक्ति को जहां तक हो सके परावलंबी नहीं होना चाहिए। जहां तक हो व्यक्ति स्वाबलंबी रहे। अपना काम अपने आप करें। अहंकार में आकर भी व्यक्ति खुद सक्षम होने पर भी कई बार स्वयं कुछ नहीं करता। अहंकार हमारे जीवन में न तो आए और अनावश्यक परावलंबिता से भी बचने का प्रयास हो।
तत्पश्चात अहिंसा यात्रा प्रणेता ने स्थानीय ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के तीनों उद्देश्यों – सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति की प्रेरणा देते हुए संकल्प स्वीकार करवाएं। मुनि राहुलकुमारजी ने कन्नड़ भाषा में अहिंसा यात्रा की जानकारी दी।