मुंबई:शिवसेना ने मुखपत्र ‘सामना’ के जरिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और सांसद अनंत कुमार हेगड़े पर निशाना साधा है। ‘सामना’ में लिखा है कि गांधी जी अंग्रेजों के एजेंट थे। गांधी का स्वतंत्रता आंदोलन प्रायोजित था, ऐसा भाजपाई सांसद अनंत कुमार हेगड़े कहते हैं। ऐसा जो कहते हैं, उन्हें पाकिस्तान में व्याप्त अराजकता को देखना चाहिए। वहां बैरिस्टर जिन्ना सुखी और यहां गांधी बदनाम हैं, ऐसा दौर चल रहा है!
शिवसेना ने मुखपत्र में कहा है कि महात्मा गांधी की और कितनी बार हत्या करने वाले हैं। ये अब हमें ही ठहराना होगा। गांधी के विचारों से जो सहमत नहीं हैं उन्हें भी अब ये स्वीकार करना होगा कि गांधी की टक्कर का नेता पूरे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दूसरा कोई नहीं हुआ। गांधी का स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ा योगदान था। यह स्वीकार करके नथुराम गोडसे ने पहले गांधी के चरण स्पर्श किए और बाद में गांधी पर गोलियां चलार्इं। गोडसे के प्रेमियों को गांधी पर असभ्य टिप्पणी करते समय गोडसे की सभ्यता भी स्वीकार करनी चाहिए। कर्नाटक के भाजपाई नेता अनंत कुमार हेगडे ने घोषित किया है कि ‘गांधी अंग्रेजों के एजेंट थे और उनका स्वतंत्रता आंदोलन प्रायोजित था।’ यह बयान विचलित करने वाला है। भोपाल से भाजपाई सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ने भी बीच के दौर में गांधी पर थूकने की कोशिश की थी व गोडसे उनके आदर्श हैं, ऐसा कहा था। लेकिन गांधी के संबंध में हेगडे और साध्वी प्रज्ञा के विचार उनके निजी होने की घोषणा भाजपा ने की है। बीच के दौर में महाराष्ट्र में गोडसे की पुण्यतिथि मनाई गई तो उत्तर प्रदेश में गांधी की प्रतिमा पर गोलियां बरसाकर गोडसे को श्रद्धांजलि दी गई। हिंदुस्थान में गांधी जन्मे इसकी बड़ी कीमत वे हत्या के 40 वर्षों बाद भी चुका रहे हैं।
पाकिस्तान फिर लाओ!
गांधी जी को समझना हेगडे जैसों के लिए संभव नहीं है। हिंदुत्व का विचार सभी को मान्य है लेकिन तालिबानी पद्धतिवाला हिंदुत्व देश को अफगानिस्तान बना देगा। गोडसे को श्रद्धांजलि देने के लिए गांधी जी को गाली देना जरूरी नहीं है। गांधी की प्रतिमा पर गोलियां बरसाकर विकृत आनंद पाने की आवश्यकता नहीं है। देश का विभाजन हुआ, ऐसा जिन्हें लगता है उन्हें पार्टी की बैठकों में मोदी और शाह को कहना चाहिए कि तोड़ा गया पाकिस्तान वापस जीत लें। अखंड हिंदुस्थान का सपना साकार करें और उस अखंड हिंदुस्थान के प्रतीक के रूप में लाहौर, कराची, इस्लामाबाद में वीर सावरकर का इतना बड़ा पुतला स्थापित करें कि दुनिया की आंखें चौंधियां जाएं।
गोडसे ने अखंड हिंदुस्थान के ध्येय के लिए गांधी पर गोलियां चलार्इं। उस अखंड हिंदुस्थान का निर्माण करें, ऐसा करने का साहस किसी में है क्या? वर्ष 1931 में महात्मा गांधी गोलमेज परिषद के लिए इंग्लैंड गए थे। एक पत्रकार परिषद में स्वतंत्र हिंदुस्थान में किस तरह की राज व्यवस्था व संविधान की आपकी कल्पना है। इस पर गांधी ने कहा था, ‘हिंदुस्थान हर तरह की गुलामी और दैन्य अवस्था से मुक्त करनेवाला तथा आवश्यकता पड़ने पर पाप करने का अधिकार भी दिलानेवाला संविधान निर्माण होगा। ऐसा मैं हरसंभव प्रयत्न करूंगा। अति दरिद्र व्यक्ति को भी ‘यह मेरा देश है और उसका भविष्य निर्धारित करने में मेरे शब्दों का भी महत्व है। ऐसा महसूस होगा, ऐसे हिंदुस्थान की मुझे रचना करनी है।’ ऐसा गांधी जी ने दावे के साथ कहा था, वो भी अंग्रेजों की भूमि पर। गांधी जी की यथेच्छ बदनामी करना, उनके प्रति जानबूझकर आशंका जताना, चरित्र पर कीचड़ उछालना, उनके पुतले तोड़ना, पुतले पर गोलियां बरसाना, ये पाप है। लेकिन हेगडे और प्रज्ञा को यह पाप करने की आजादी और अधिकार गांधी के कारण ही प्राप्त हुआ, इसे याद रखना चाहिए।
संघर्ष की धार
गांधी जी का जीवन अन्याय के खिलाफ लड़ने में व्यतीत हुआ। 1949 में स्वतंत्रता मिलने तक उनका अधिकतर समय स्वतंत्रता आंदोलन तैयार करने और कारावास में ही बीता। आजादी के 5 महीने बाद उनकी हत्या हो गई। गांधी जी को सत्ता का मोह नहीं था। उनका जीवन समर्पित था। गांधी जी को शासक बनकर सत्तासुख भोगने की इच्छा नहीं थी। अपने समर्पित जीवन से उन्होंने जनता को कब का जीत लिया था। गांधी जी के जीवन का सार व कार्यपद्धति की विशेषता उनकी ‘अहिंसा’ में थी। परंतु खेद की बात ऐसी है कि जनता वास्तविक अर्थों में अहिंसा भक्त बिल्कुल भी नहीं बनी। स्वराज्य के पहले वर्ष में लाखों लोगों की हत्या और तबाही को हमने मौन रहकर देखा तथा अहिंसा के मुख्य सेवक गांधी जी का कत्ल भी इस देश में हुआ।
गांधी जी जैसे महान व्यक्ति ने इस देश में जन्म लिया लेकिन उनके गुणों का पूरा सदुपयोग हम नहीं कर सके। गांधी जी में देशभक्ति और ईश्वरभक्ति इन दोनों गुणों का सुंदर मिश्रण था। एक बेहद महत्वपूर्ण योजना उन्होंने अपने आखिरी दिनों में व्यक्त की थी। उनके राजनीतिक इच्छा-पत्र को ‘Last will and testament’ कहते हैं। इसमें उन्होंने कहा है, ‘राजनीतिक संस्था के रूप में कांग्रेस नामक संस्था का कार्य समाप्त हो जाने के कारण इस संस्था को राजनीति से निवृत्त हो जाना चाहिए तथा नैतिक, सामाजिक और आर्थिक कार्य करते रहना चाहिए।’ इस घोषणा का आध्यात्मिक व राजनीतिक महत्व कांग्रेस क्या कोई नहीं समझ पाया। सत्ता के लिए बेचैन व सत्ता से पेट भरने के लिए कोई भी ‘पाप’ करनेवाली कई राजनीतिक संस्थाएं गांधी जी के राजनीतिक अध्यात्म का मार्ग स्वीकार कर लें तो देश में शांति आ जाएगी। लेकिन हमने गांधी जी का कत्ल कर दिया तथा मरने के बाद भी उन्हें गोली मारने की मूर्खता करते रहते हैं। जिनका आजादी की लड़ाई में योगदान नहीं था वे सभी स्वतंत्रता संग्राम को ‘प्रायोजित’ व गांधी जी को अंग्रेजों का एजेंट कहने लगे।
गांधी पर गर्व महसूस करने की बजाय कुछ लोग उन्हें कलंक लगने लगे। यह तकलीफदेह है। प्रभु श्रीराम खुद पर हुए अन्याय के खिलाफ लड़े। उस राम का मंदिर हम बना रहे हैं लेकिन गांधी का संघर्ष भी अन्याय के खिलाफ था। उसके लिए वे लड़े और अपनी जान गंवाई। गांधी का जीवन भी अंत तक ‘राममय’ था। इसे आधुनिक रामभक्तों को समझना चाहिए। गांधी को हम रोज मारते हैं। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अत्यंत व्यथित होकर कहा था।
‘हर हिंदी भाषी के हाथों पर गांधी जी के खून के दाग हैं!’
गांधी जी के कारण देश टूटा, ऐसा जिन्हें लगता है वे उसे पुन: अखंड बना दें। ऐसा करने से उन्हें किसी ने रोका नहीं है। वहां पाकिस्तान में बैरिस्टर जिन्ना कब्र में शांति से विश्राम कर रहे हैं। पाकिस्तान स्पष्ट रूप से ‘नर्क’ बन गया है लेकिन इसका दोष कोई बै. जिन्ना के माथे पर नहीं मढ़ता। परंतु गांधी-नेहरू ने एक आधुनिक हिंदुस्थान का निर्माण किया, उन्हें रोज मारा जाता है। ये भी एक आजादी ही है। हिंदुस्थान की अवस्था पाकिस्तान जैसी नहीं हुई इसका श्रेय गांधी-नेहरू व पटेल जैसे कांग्रेसी नेताओं को जाता है। उन पर ‘कीचड़ उछालने’ का ‘पाप’ जो लोग कर रहे हैं। ये ‘पाप’ करने की आजादी भी गांधी जी ने ही दिलाई, इतना तो ध्यान रखें।