मशहूर लेखक विजयदान देथा की कहानी पर बनी फिल्म ‘कांचली’ नारी जीवन के कश्मकश को बखूबी बयां करने वाली फिल्म है। फिल्म में दर्शाया गया है कि किस तरह पुरुष एक महिला की भावनाओं को समझने की बजाए घर की जरूरतों, खेती-बाड़ी के इंतजाम व संबंधों को सबसे पहली प्राथमिकता देता है जबकि एक महिला के लिए घर परिवार की सार संभाल के बावजूद सबसे पहली प्राथमिकता उसका पति होता है और वह उस पुरुष पर अपना सबकुछ न्यौछावर कर देती है। संजय मिश्रा, ललित परिमू, शिखा मल्होत्रा और किशनपाल सिंह के शानदार अभिनय से सजी फिल्म ‘कांचली’ का निर्देशन दैदिप्य जोशी ने किया है।
कहानीः ‘कांचली’ की शुरुआत होती है राजस्थान के एक गांव से, जहां के ठाकुर दुष्यंत सिंह (ललित परिमू) हैं। एक जमाने में कभी उनकी तूती बोलती थी, लेकिन इस समय तंगहाल जिंदगी गुजार रहे हैं, बावजूद इसके उन्हें लगता है कि अगर अय्याशी नहीं किया तो ऊपर जाकर पुरखों को क्या मुंह दिखाऊंगा। गांव में अभी भी उनकी काफी इज्जत है। गांव के लोग उन्हें अन्नदाता के नाम से बुलाते हैं। उनका खास आदमी है भोजा (संजय मिश्रा), जो अपने घर में अकेले अपने तोते के साथ रहता है वह काफी रंगीन मिजाज व्यक्ति है और चाकरी ठाकुर की करता है। ठाकुर का हर आदेश उसकी सर आंखों पर होता है। गांव के ही एक किसान किशनु की शादी होती है, उसके घर कजरी (शिखा मल्होत्रा) ब्याह कर आती है। वह इतनी खूबसूरत है कि ठाकुर को लालच आ जाता है और वह हर हाल में कजरी को अपने बिस्तर पर देखना चाहता है। ठाकुर यह काम भोजा को सौंपता है। भोजा अपने काम में लग जाता है, लेकिन कजरी हाथ नहीं आती है। क्योंकि कजरी अपने पति किशनु को ही सबकुछ मानती है और वह उसके अलावा किसी पराए मर्द के बारे में सोचना भी पाप मानती है, वह चाहे जो भी हो। इसके बाद भी भोजा हार नहीं मानता। एक रात भोजा का तोता उससे कहता है कि अगर कजरी तुझे मिल जाए तो..! बात भोजा के दिल में घर कर जाती है और वह कजरी को हासिल करने की जुगत में लग जाता है और इधर कजरी ठाकुर और भोजा की बुरी नीयत के बारे में किशनु को बताती है लेकिन किशनु उसकी बातें इधर उधर में टाल देता है। कजरी के मन में आता है कि अगर कशनु भोजा को रंगेहाथ पकड़ ले तो शायद उसे बुरा लगे और वह भोजा को बुलाती है…! क्या कजरी का पति कुछ करता है? क्या कजरी भोजा को मिलती है या ठाकुर का मंसूबा पूरा होता है? सबसे बड़ी बात नारी की कांचली का क्या महत्व है? इसके आगे क्या होता है एक बार थिएटर जाकर खुद ही देखें।
एक्टिंगः फिल्म की केंद्रीय किरदार कजरी की भूमिका में शिखा मल्होत्रा ने बेहतरीन काम किया है। यह फिल्म उनके कैरियर की टर्निंग प्वाइंट हो सकती है। जहां तक फिल्म के हीरो की बात है तो वह हैं संजय मिश्रा। संजय मिश्रा तो हैं ही बेहतरीन कलाकार और उन्होंने ‘कांचली’ में भी बेहतरीन अदाकारी की है। ठाकुर के किरदार में ललित परिमू भी खूब जमे हैं। कशनु का किशनपाल सिंह ने निभाया है, वह भी एक किसान के किरदार में ठीक-ठाक रहे हैं। बाकी कलाकारों ने भी अपनी भूमिका को बड़े अच्छे ढंग से किया है। अगर निर्देशन की बात करें तो दैदिप्य जोशी ने लोकेशन और किरदारों से बढ़िया काम करवाने में कामयाब रहे हैं। फिल्म थोड़ी धीमी जरूर चलती है।
कुल मिलाकर ठीक ठाक फिल्म है। बिजनेस के एंगल से भले कमजोर रहे, लेकिन विषय वस्तु की प्रस्तुति अच्छी रही है।
सुरभि सलोनी से फिल्म को 3.5 स्टार।
- दिनेश कुमार [email protected]