1950 में भारत गणराज्य घोषित किया गया। यही पहला साल था, जब देश में गणतंत्र दिवस की परेड निकाली गई। इस परेड में सशस्त्र बल के साथ तीन हजार जवान और सौ लड़ाकू विमान शामिल किए गए थे। जानिए कैसी थी पहली परेड और दशक दर दशक उसमें क्या बदलाव हुए…
शाम को निकली थी पहली परेड
आजादी के बाद तत्कालीन गवर्नर सी. राजगोपालाचारी ने 26 जनवरी 1950 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत को गणराज्य घोषित किया। छह मिनट के अंदर ही डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। गणतंत्र दिवस समारोह पहले से तय था। दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर राजेंद्र प्रसाद बग्घी में सवार होकर गवर्मेंट हाउस (राष्ट्रपति भवन) से निकले। कनॉट प्लेस जैसे नई दिल्ली के इलाकों का चक्कर लगाते हुए 3 बजकर 45 मिनट पर पुराने किले के पास स्थित नेशनल स्टेडियम पहुंचे।
31 तोपों से राष्ट्रपति को सलामी दी गई थी
नेशनल स्टेडियम तब इरविन स्टेडियम कहलाता था। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद उस समय 35 साल पुरानी शाही बग्घी में सवार थे। छह ऑस्ट्रेलियाई घोड़े उनकी बग्घी को खींच रहे थे। परेड स्थल पर राष्ट्रपति को शाम के वक्त 31 तोपों की सलामी दी गई थी। पहली परेड में सरकार ने जनता को भी शामिल किया था। उस दौरान जनता उम्मीद कर रही थी कि राजा और रजवाड़ों की शाही शान परेड में दिखाई देगी। इस वजह से सरकार ने कुछ सालों में इसकी रूपरेखा बदल दी और हाथी-घोड़े, ऊंट और सेना की ताकत दिखने लगी।
शुरुआती पांच सालों तक तय नहीं थी परेड की जगह
पहली परेड दिल्ली के प्रमुख इलाकों से होते हुए नेशनल स्टेडियम पहुंची थी। कई सालों तक इसकी जगह और रूट तय नहीं किए गए। नतीजा ये रहा कि ये अलग-अलग जगहों से होकर निकली। 1950 से 1954 तक परेड इरविन स्टेडियम, किंग्सवे (राजपथ), लालकिला और रामलीला मैदान पर होती रही। 1955 से तय हुआ कि परेड राजपथ से निकलेगी और लालकिले तक जाएगी।
इंडोनेशिया के प्रथम राष्ट्रपति बने पहले मुख्य अतिथि
गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि को बुलाने की परंपरा पहली परेड से ही थी। भारत सरकार अतिथि के तौर पर किसी देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या शासक को आमंत्रित करती थी। 26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो विशेष अतिथि बने थे। भारत अब तक 44 देशों के प्रमुखों को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित कर चुका है।
दशक दर दशक परेड में बढ़ता रहा देश का गौरव
-
1950-60 : मुशायरे की शुरुआत और आसमान से फूलों की बारिश
- पचास का दशक देश में बदलाव के लिहाज से अहम माना गया। यह भव्य समारोह के रूप में तब्दील होने लगी थी। 1955 से लाल किले पर मुशायरा के आयोजन की शुरुआत हुई।
- 1956 से रेडियो पर 14 भाषाओं के रचनाकारों का कवि सम्मेलन प्रसारित किया जाने लगा।
- कवि सम्मेलन में मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन, फिराक गोरखपुरी और साहिर लुधियानवी जैसे दिग्गजों की रचनाएं सुनीं गईं।
- 1959 से हेलिकॉप्टरों के जरिए परेड में आए दर्शकों पर फूल बरसाने की परंपरा शुरू हुई।
-
1961-70 : ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ ने देशवासियों में भरा जोश
- 1962 में भारत-चीन जंग के बाद परेड में सेना की टुकड़ियों की संख्या कम की गईं। एकता की मिसाल पेश करने के लिए पंडित नेहरू ने सांसदों के एक दल के साथ परेड की अगुवाई की। आगे नेहरू, उनके पीछे मंत्रिमंडल के सदस्य, सांसद और झांकियां थीं।
- इसी साल लता मंगेशकर ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया था। लता और दिलीप कुमार ने कार्यक्रम कर प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए पैसा इकट्ठा किया था। इस गाने में जवानों के साथ पूरे देशवासियों में देश की रक्षा के लिए जोश भरने का काम किया था। धीरे-धीरे परेड में जवानों की टुकड़ी बढ़ती गई।
- 1962 से परेड में शामिल होने के लिए 50 पैसे, तीन रुपए और पांच रुपए का टिकट तय कर दिया गया। साथ ही हाथियों पर बच्चों को बैठाने की शुरुआत हुई।
- चीन से युद्ध के 7 साल बाद 1969 में हुई परेड में वायुसेना के 164 विमानों ने फ्लाई पास्ट में हिस्सा लिया था। पहली बार मिग-21 श्रेणी के लड़ाकू विमान परेड में शामिल हुए। हालांकि बाद के वर्षों में विमानों की संख्या कम कर दी गई। हाथियों को भी राजपथ पर लाने की परंपरा भी खत्म कर दी गई।
-
1971-1980 : अमर जवान ज्योति पर श्रद्धांजलि देने की परंपरा शुरू हुई
- 1971 में पाकिस्तान से जंग के बाद गणतंत्र दिवस समारोह में सुरक्षा को लेकर कई बदलाव किए गए।
- 1973 के समारोह से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति पर जाकर श्रद्धांजलि देने की परंपरा शुरू की। तब से यह परंपरा है कि परेड की शुरुआत से पहले हर प्रधानमंत्री अमर जवान ज्योति पर जाता है।
- अस्सी के दशक से भारत आतंकवाद और उग्रवाद का शिकार होता चला गया। इस वजह से परेड में लोगों की संख्या सीमित रखने की व्यवस्था की गई। सुरक्षा साल-दर-साल कड़ी होती गई।
-
1981-90 : पहली बार हुई रंगीन वीडियो रिकॉर्डिंग
- 80 के दशक में हुई गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाले अतिथियों में लैटिन अमेरिकी और पश्चिमी यूरोप के नेताओं को आमंत्रित किया जाने लगा।
- 1982 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड की रंगीन वीडियो रिकॉर्डिंग हुई थी।
- 26 जनवरी 1988 को हुई परेड में पहली बार बोफोर्स तोप को शामिल किया गया था।
-
1991 से 2000 : थीम बेस्ड निकलने लगी झांकियां, मनाई गई गोल्डन एनिवर्सिरी
- 1996 में हुई 47वें परेड में पहली बार पृथ्वी मिसाइल को परेड में शामिल किया गया।
- 90 का दशक परेड में निकलने वाली झाकियों में बड़ा परिवर्तन लेकर आया। खासकर दिल्ली की झाांकियों में। इसमें गंगा-जमुनी तहजीब, भारतीय मेले, त्योहार, विरासत और शिक्षा की थीम को शामिल किया गया।
- 2000 में बारिश की बूंदों के बीच गणतंत्र दिवस परेड की गोल्डन एनिवर्सिरी सेलिब्रेट की गई।
- करगिल युद्ध में विजय मिलने के बाद झाकियों में वीरों की शौर्य गाथा पेश की गई। युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले MI-8s हेलीकॉप्टर फूलों की बारिश करते हुए गुजरे। इसमें भारतीय तिरंगा समेत आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के झंडे लहरा रहे थे।
-
2001 से आज तक : साल दर साल भव्य होता गया आयोजन
- 2004 में हुई परेड में सफेद, हरे और केसरिया रंग के गुब्बारे के साथ तिरंगे को छोड़ा गया था। गुब्बारे के साथ होने के कारण तिरंगा हवा में लहरा रहा था।
- साल दर साल परेड की भव्यता बढ़ती गई। आरटीआई में मिली जानकारी के मुताबिक, 2001 की परेड में 145 करोड़ और 2014 में 320 करोड़ रुपए का खर्च आया था।
- एक आंकड़े के मुताबिक, 2001 से 2014 के बीच हुई परेड के खर्च में 54.51 की फीसदी की बढ़ोतरी हुई।