पुणे। पर्युषण पर्व का पाचवाँ दिन अणुव्रत चेतना दिवस के रूप में मनाया गया। भारतीय संस्कृति व्रत प्रधान संस्कृति रही है। व्रत जीवन का धन है। व्रत जीवन में गाड़ी के ब्रेक के समान है। जिसके जीवन में व्रत नियम होते हैं, वह हलु कर्मी, अल्पइच्छा व पापभीरु होता है। व्रत स्वयं को स्वयं से जोड़ने की शक्ति है। व्रत मन की पवित्रता का सर्वोत्तम साधन है। व्रत हर समस्या का समाधान है। भगवान महावीर ने दो प्रकार का धर्म बताया आगार और अनगार । जिसके सीमा होती है वह आगार होता है जिसके कोई प्रकार की सीमा नहीं होती है वह अनगार होता है। साधु अनगारी होते हैं। श्रावक आगरी होते हैं। हर गृहस्थ साधु नहीं हो सकता। इसलिए भगवान ने अणुव्रत, बाहर व्रतों का विधान किया ताकि गृहस्थी में भी रहकर अपने जीवन की दिशा व दशा को बदल सकता है और जीवन का निर्माण व उत्थान कर सकता है। जैन धर्म के प्रभावक आचार्यो में आचार्य तुलसी का नाम बड़े आदर व गरिमा के साथ लिया जाता है। उन्होंने चारित्रिक उन्नयन व नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया। अणुव्रत का अर्थ है छोटे-छोटे नियम जैसे – मैं निरपराध प्राणी की हिंसा नहीं करूंगा, पर्यावरण को दूषित नहीं करूंगा, व्यवसाय में प्रामाणिकता रखूंगा, मिलावट नहीं करूंगा, तोड़फोड़ और हिंसात्मक प्रवृतियों में भाग नहीं लूंगा, आहारशुद्धि व्यसनमुक्ती की साधना करूंगा, मैं आक्रमण नहीं करूंगा, मानवीय एकता में विश्वास रखूंगा, सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखूंगा आदि – आदि। यह सब जीवन शुद्धि की न्यूनतम आचार सहिता है। केवल आचार सहिता ही नहीं अपितु पूरा जीवन दर्शन है। अणुव्रत धर्म और व्यवहार का सेतु है। ह्रदय की पवित्रता है और अणुव्रत का उद्घोष है संयम खलु जीवनम् – संयम ही जीवन है। देश को अणुबम कि नहीं, अणुव्रत की आवश्यकता है। अणुबम सृष्टि का विनाश करता है। अणुव्रत व्यक्ति का निर्माण के साथ समाज सुधार व मानवीय एकता की बात करता है। अणुव्रत की साधना से व्यक्ति पावनता को प्राप्त करता है। इस समय पर मुनि परमानंद ने भी अपने विचार रखे।