आदित्य तिक्कू।।
मुझे सब पता है, जो मुझे पता है.. वही सही है की मानसिकता का ज्वलन्त उदाहरण है नागरिकता संशोधन कानून। इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? पता नहीं -कहीं पढ़ा नहीं, परन्तु विरोध निश्चित करना है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ देश के कई राज्यों में प्रदर्शन जारी हैं। इस बीच, सिक्किम हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस प्रमोद कोहली और इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज एसएन श्रीवास्तव ने कहा कि इस कानून को लेकर कई तरह की अफवाहें फैलाई जा रही हैं। इससे किसी भी भारतीय नागरिक के अधिकारों का हनन नहीं होगा। पूर्व चीफ जस्टिस कोहली ने कहा कि सीएए के बारे में गलत सूचनाएं पहुंचाकर समाज के एक वर्ग को गुमराह किया जा रहा है। इस तरह के प्रदर्शन समाज के हित में नहीं हैं। कानून विरोधी प्रोपेगेंडा में कुछ राजनीतिक दल भी शामिल हो सकते हैं। प्रदर्शन करने वाले ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि वे किसके लिए विरोध कर रहे हैं। भारतीय समाज पर इस संशोधन का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए लोगों को गलतफहमियां दूर करने और कानून को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए आगे आना होगा ।नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में पूर्वोत्तर के विभिन्न क्षेत्रों में उग्र प्रदर्शन और हिंसा यही बताती है कि किसी मसले पर लोगों को गुमराह करने के क्या नतीजे होते हैं? पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध का औचित्य इसलिए नहीं बनता, क्योंकि इस क्षेत्र के ज्यादातर भाग इस विधेयक के दायरे में ही नहीं आते। गृहमंत्री अमित शाह ने इसे लोकसभा और साथ ही राज्यसभा में बार-बार स्पष्ट भी किया। इतना ही नहीं, उन्होंने पूर्वोत्तर के कुछ उन इलाकों को भी इस विधेयक के दायरे से बाहर करने का स्पष्ट आश्वासन दिया जहां के नागरिक इससे आशंकित थे कि बाहर से आए लोग उनके यहां बस सकते हैं। कायदे से इस सबके बाद असम, त्रिपुरा और अन्य हिस्सों में नागरिकता विधेयक के विरोध में धरना- प्रदर्शन करने की कहीं कोई आवश्यकता नहीं थी, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो इसी कारण संकीर्ण राजनीतिक कारणों से लोगों को बरगलाया और उकसाया गया। यह काम पूर्वोत्तर के बाहर भी किया जा रहा है। राजनीतिक शरारत के तहत यह झूठा प्रचार किया जा रहा है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद भारतीय मुसलमानों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
कुछ राजनीतिक दलों के रुख-रवैये से यह साफ है कि वे नागरिकता विधेयक की आड़ लेकर भारतीय मुसलमानों को गुमराह करने के लिए छल-प्रपंच का सहारा लेने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। इस छल-प्रपंच में कुछ कथित बुद्धिजीवी भी शामिल हैं, वे ऐसी फर्जी कहानियां गढऩे में लगे हुए हैं कि उनके गांव-घर के मुस्लिम आशंकित होकर यह पूछ रहे हैं कि उनके पास कितना समय है अथवा अब उन्हें क्या करना होगा? इस तरह की झूठी कहानियां गढऩे वाले निंदा और भत्र्सना के पात्र बनाए जाने चाहिए। आखिर जब इस विधेयक का भारत के किसी भी नागरिक से कोई लेना-देना ही नहीं और यह बाहर से प्रताडि़त होकर आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान है, न कि किसी भारतीय की नागरिकता छीनने का तब फिर यह माहौल बनाने का क्या मतलब कि भारतीय मुसलमानों के लिए खतरा बढऩे वाला है? यह माहौल बनाने वाले केवल झूठ फैलाने का ही काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि देश के अमन-चैन से भी खेल रहे हैं।
मेरी समझ से परे है कि कोई गैरकानूनी ढंग से आप के देश की सीमा में घुसे लोगों को बहार निकलने में हर्ज क्या है? हमारा क्या लेना-देना? हम अपने देश को क्यों जला रहे है? विश्व के एक राष्ट्र का नाम बताइए जहां गैरकानूनी ढंग से घुसे लोगों को नागरिकता दी जाती हो ? या वहां के नागरिक गैरकानूनी ढंग से घुसे लोगो के पक्ष में अपने देश में अराजकता फैलाते हों?
घुसपेठियों को नागरिकता क्यों दें?
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