निक्की शर्मा रश्मि।।
समय बदला, वक्त के साथ हम भी बदल रहें हैं और हमारे साथ बदल रही है परिभाषा रिश्तों की। जी हाँ.. रिश्तों की नयी परिभाषा है लिव इन रिलेशनशिप। बदलते समाज के साथ एक नया रिश्ता आया है लिव इन रिलेशनशिप का जिसने रिश्तों की परिभाषा ही बदल कर रख दी है। इसमें न दो परिवार एक दूसरे से जुड़ते हैं, न कोई रिश्तेदार जुड़ते हैं, जुड़ते हैं तो बस पार्टनर। इस रिश्ते में जिम्मेदारी का एहसास नहीं होता।
छोटे शहरों और कस्बों में अभी भी इसे सही नजर से नहीं देखा जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इन संबंधों को स्वीकृति दे दी है क्योंकि बालिग दो स्त्री पुरूष अपनी मर्जी से लिव इन में रह रहें हैं तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा। हॉलाकि आम लोगों के बीच लिव इन उतना कामयाब नहीं है। इस रिश्ते में जिम्मेदारी का अभाव होता है इसलिए इस रिश्ते में थोड़ी हिचक भी है कहीं न कहीं।
वॉलीवुड और बड़े शहरों में इसका चलन पुराना है। कयी जोड़े लिव इन में रहने के बाद अलग हो गए और कुछ आज तक साथ हैं। लिव इन में रहने वाले हर काम साथ मिलकर करते हैं यहां कोई बड़ा या मुखिया नहीं होता ब्लिक दोनों की अहमियत बराबर होती है और हर चीज में सहमती भी।
ऐसे लोगों का सोचना होता है की केवल रस्मों रिवाजों में बंधे होने के कारण वो किसी के साथ नहीं रह सकते। दिल से एक दूसरे के साथ रहना चाहते हैं तभी रह सकते हैं। कुछ साल साथ रहने पर एक दूसरे को जान लें फिर रिश्तों के बारे में सोचें। ये नयी सोच है आज के कुछ लोगों की।
ऐसे रिलेशनशिप में सिर्फ एक दूसरे के साथ शारीरीक संबंध होना नहीं इसमें जिम्मेदारी निभाने का साथ और शादी के पहले एक दूसरे को समझने का मौका देना है। जिससे शादी की मुश्किलें कम हो जाती है। केवल शारीरिक जरुरतों को पुरा करने के लिए साथ रहना उचित नहीं है। इसके साथ इसके जिम्मेदारियों को भी समझना जरूरी है।
दिल्ली मुम्बई जैसे बड़े शहरों में किराया ज्यादा होने की वजह से भी कयी लोग लिव इन में रहना पसंद करते हैं। जरूरत बन जाती है साथ रहना या फिर मजबुरी भी और तो और कयी बार उनके परिवार वाले को भी पता नहीं होता कयी दिनों तक की उनके बच्चे लिव इन में रह रहें हैं। भले ही वो बाद में शादी कर लें,पर परिवार वाले पसंद नहीं करते उनका इस तरह रहना।
सामाजिक स्वीकृति लिव इन को आज भी कयी जगह नहीं मिली है इसलिए इसे स्वीकारना बहुत मुश्किल होता है। भले ही हम खुद को कितना भी आधुनिक मान लें मगर ऐसे रिश्तों को पचाना आसान नहीं होता। सही भी है लिव इन में रहकर हम एक दूसरे को समझ कर शादी करें और शादी सफल हुई हो ऐसा भी नहीं है। लव मैरेज में भी शादी सफल नहीं होती। सफलता असफलता हर रिश्तों में है।
लिव इन जहां फायदेमंद है वहां नुकसानदायक भी है। पार्टनर थोड़े लापरवाह होते है। जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते बच्चों की । बच्चे तो रिश्ते की धुरी होते है और अगर बच्चे ही न हो तो रिश्ते कमजोर होते है शादी का फैसला आसानी से नहीं ले पाते।
लिव इन की स्थिति शहरों में थोड़ा बेहतर है इसकी वजह लोगों के पास समय न होना है। लोगों को खुद के लिए समय नहीं मिलता तो एक दूसरे की जिंदगी में झांकने का तो सवाल ही नहीं होता है और न मतलब।
धीरे -धीरे ही इस रिश्ते को स्वीकार किया जा रहा है और किया जाएगा भी। हाँ ये बात है की इसमें स्त्रियों को काफी मसक्कत करनी पड़ती है। काफी कुछ सहना पड़ता है उनके लिए ये राह आसान नहीं होती। महिलाओं के हित में बहुत से कदम उठाए गए है। जैसे-जैसे समाज विकसित होता जाएगा अधिकारों को मान्यता देनी पड़ती है और पड़ेगी भी।
कानूनी मान्यता सामाजिक मान्यता पाने का पहला कदम होता है। कानूनी मान्यता मिल जाने पर भले ही देर से सही पर समाज धीरे- धीरे स्वीकार करने ही लगता है चाहे कितनी भी परेशानी क्यों न आऐ।
लिव इन में रहने से पहले पार्टनर का चुनाव सोच समझ कर करना चाहिए। एक दूसरे को जानने के बाद विवाह बंधन में बंध सकें। महिलाओं को अट्रैक्ट होकर या इमोशनली अटैच होकर तुरंत फैसला नहीं लेना चाहिए। सुरक्षा भी देखनी चाहिए केवल मजा और टाइम पास के लिए ऐसा रिश्ता सही नहीं साबित होता है।
क्योंकि ऐसे संबधों के टूटने से सबसे ज्यादा मानसिक पीड़ा और सामाजिक यातना महिलाओं को ही झेलनी पड़ती है। हर तरह की यातना सहन करनी पड़ती है तो ज्यादातर स्त्री को। कयी सालो तक पार्टनर के साथ रहने के बाद अगर आपस में नहीं जमती तो सबसे ज्यादा असर स्त्री पर पड़ता है क्योंकि वो इमोशनली अटैच होती है। जल्दी भूलना आसान नहीं होता उनके लिए। पुरुष किसी महिला से जुड़ जाते हैं। शादी भी कर लेते हैं वो आसानी से नये रिश्ते को अपना लेते हैं पर महिलाओं को सोचना पड़ता है। वो अंदर से टूट जाती है,बिखर जाती है,विश्वास टूट जाता है।
स्त्री के चरित्र पर अंगुली भी उठाई जाती है। कयी सवाल उनके सामने खड़े होते हैं। हर मोड़ पर हर सवाल उनका इंतजार कर रहा होता है पर पुरुषों से कोई सवाल नहीं होता। लिव इन जहाँ आजादी दर्शाता है वहाँ कठिनाई और परेशानी भी बढ़ाता है इसलिए सोच समझकर फैसला लेना ही समाधान है। लिव इन का फैसला उनका निजी फैसला होता है पर फिर भी स्त्री को एक बार सोच समझकर ही फैसला लेना उचित होगा। हालातों का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना होगा।
लिव इन नयी परिभाषा है रिश्तों की पर निभाना आपको ही है। विवाह का रिश्ता अनमोल होता है उनसे जुड़ाव होकर जो रिश्ता आता है वो टिकाऊ होता है क्योंकि विवाह के रिश्ते के साथ जुड़ते हैं कयी रिश्ते जो आपके साथ आजीवन जुड़ जाते हैं। आपके साथ सुख दुःख में हमेशा साथ होते हैं। दो परिवार एक हो जाते हैं जो हर कठिनाई हर खुशी में आपके साथ होते हैं। हर अच्छे, बुरे पल में आपके पीछे आपके साथ कयी लोग खड़े होते हैं। आपका सहारा बनकर आपके साथ खड़े होते हैं। हर रिश्ता बेखुबी निभाते हैं।
लिव इन रिश्तों में नया रिश्ता तो जुड़ा है पर ये सफल नहीं होने पर आप अकेलेपन शिकार होते हैं क्योंकि ये रिश्ता केवल दो लोगों के साथ है परिवार के साथ नहीं। ये रिश्ता अकेलेपन का रिश्ता होता है जो दो पार्टनर के सहमति से बना है। पार्टनर से अलग होने पर आप बिल्कुल अकेले हो जाते हैं। मानसिक, शारीरीक परेशानी सब में अकेले जुझना पड़ता है। इसलिए नये रिश्ते लिव इन को अपनाने से पहले विचार जरूर करें, रिश्ते सभी अच्छे हैं पर उनमें होना चाहिए तो विश्वास,प्यार,टिकाऊपन, और जिम्मेदारी का एहसास।
लिव इन को सरकारी मान्यता तो मिल चुकी है सामाजिक मान्यता भी मिल रही है धीरे धीरे, पर आप कैसे अपनाते हैं आपकी नजर,आपकी मर्जी और आपका निजी फैसला होगा। सोच समझ जरूरी है। हर रिश्तों को अपनाये मगर प्यार से।