– अहिंसा यात्रा का तरिकेरे में भव्य स्वागत
– श्रद्धालुओं पर अनुग्रह वर्षा कर की बीस किलोमीटर की पदयात्रा
14-12-2019, शनिवार, तरिकेरी , कर्नाटक। जनकल्याण के लिए समर्पित अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तरिकेरे की धरती पर अपने चरण रखे तो भक्तों का हर्ष और उल्लास परवान को छूने लगा। ‘जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण’ के बुलन्द घोषों से वातावरण गुंजायमान हो उठा। तरिकेरे सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की सुवास से महक उठा, चहक उठा धरती का कण-कण और धड़क उठी भक्त हृदयों की धड़कन। लगभग आधी शताब्दी बाद अपने आराध्य को अपने शहर में पाकर तरिकेरेवासी श्रद्धालु फूले नहीं समा रहे थे। अन्य जैन एवं जैनेतर समाज भी प्रसन्नता से सराबोर बना हुआ था।
बरगद, सुपारी, नारियल आदि के हजारों वृक्षों के कारण छायादार और रमणीय बने हुए मार्ग से लगभग 11.3 किलोमीटर की यात्रा कर आचार्यश्री तरिकेरे पहुंचे तो विधायक श्री डी.एस.सुरेश के नेतृत्व में सैंकड़ों तरिकेरेवासियों ने उनका भावपूर्ण स्वागत किया। भक्तिभावों से ओतप्रोत विधायक श्री सुरेश कई किलोमीटर आचार्यश्री के साथ पैदल चले। आचार्यश्री ने तरिकेरे के जैन भवन के भी निकट पहुंचकर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान किया।
अरुणोदय हाई स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित जनमेदिनी को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि थोड़े लाभ के लिए बहुत नुकसान को स्वीकार कर लेना नासमझी की-सी बात होती है। जिसमें लाभ हो, नुकसान न हो वह कार्य अथवा जिसमें लाभ ज्यादा और नुकसान कम हो, वह कार्य करना तो फिर भी उचित हो सकता है। लेकिन जिसमें नुकसान हो और लाभ न हो अथवा नुकसान ज्यादा और लाभ कम हो, वैसा कार्य करना उचित नहीं होता। कुछ चीजें तात्कालिक रूप में भले अच्छी लगें, किन्तु दीर्घकाल में वे नुकसानदेह हो सकती हैं। इसलिए आदमी को किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व उसके संभावित परिणाम पर ध्यान देना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि पैसो के लिए ईमानदारीरूपी सम्पत्ति को नहीं खोना चाहिए। ‘श्री’ शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं-लक्ष्मी धन-सम्पत्ति और आभा। जहां सच्चाई होती है, उस व्यक्ति के जीवन में आभा रहती है। उस सच्चाई के सामने पैसा गौण होता है। हम तरिकेरे में आए। यहां दुकानें आदि दिखाई दीं। दुकानों मेें अन्य सामान के साथ ईमानदारी भी प्रतिष्ठित रहनी चाहिए। ईमानदारी रहती है तो मानना चाहिए कि दुकान में आभा है, विभा है। ईमानदारी के बिना दुकानदारी में कमी की बात होती है। ग्राहक भी ईमानदार रहे और दुकानदार भी ईमानदार रहे है तो बाजार अच्छा रह सकता है। बाजारों, दुकानों को बाह्य चीजों से सजाया जाता है, किन्तु ईमानदारी बाजारों और दुकानों की वास्तविक सज्जा होती है।
उन्होंने कहा कि आदमी को हर जगह अड़कर नहीं रहना चाहिए। कहीं कड़ा रहना, कहीं खड़ा रहना और कहीं बड़ा रहना उचित हो सकता है तो कहीं झुकना, नम्र रहना उपयुक्त हो सकता है। परिस्थिति के अनुरूप अपने विवेेक से अपने आपको ढालने का प्रयत्न करने वाला सुखी हो सकता है।
आचार्यश्री ने तरिकेरे के निवासियों को अहिंसा यात्रा के विषय में जानकारी प्रदान कर सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति को स्वीकार करने का आह्वान किया तो बड़ी संख्या में जैन एवं जैनेतर लोगों ने अपने स्थान पर खडे़ होकर संकल्पत्रयी स्वीकार की।
स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री सुरेश चैपड़ा, श्रीप्रवीण नाहर, श्रीमती पिंकी गादिया और मूर्तिपूजक समाज की ओर से श्री गौतम श्रीश्रीमाल ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी।
जैन समाज की महिलाओं ने समूहस्वर में स्वागत गीत को प्रस्तुति दी। कन्याओं ने गीत का संगान कर आचार्यश्री की अभ्यर्थना की। नाहर परिवार के सदस्यों ने आचार्यप्रवर के स्वागत में गीत प्रस्तुत किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति के माध्यम से श्रीचरणों में अपने भावसुमन अर्पित किए।
कार्यक्रम में स्थानीय विधायक श्री डी.एस.सुरेश ने आचार्यश्री के दर्शन को अपना सौभाग्य बताते हुए कहा कि ऐसे महापुरुष के आगमन से हमारा शहर पवित्र हो गया। हम सभी धन्य हो गए।