नई दिल्ली:डॉक्टरों के खिलाफ बढ़ती हिंसात्मक घटनाओं के खिलाफ स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से तैयार विशेष विधेयक गृह मंत्रालय की आपत्ति के बाद लटक गया है। इस आपत्ति के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस विधेयक पर अपने कदम पीछे खींच लिए हैं।
इस साल सितंबर की शुरुआत में स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘हेल्थकेयर सर्विस पर्सनल एंड क्लिनिकल एस्टेबलिस्मेंट (प्रोबीजन ऑफ वायलेंस एंड डेमेज प्रॉपर्टी) ऐक्ट- 2019’ का ड्राफ्ट जारी किया था। इसके तहत डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्य कर्मचारी, एंबुलेंस कर्मचारी या किसी भी तरह के अस्पताल पर हमला होने की स्थिति में आरोपी को 10 साल तक की जेल और 10 लाख रुपये का जुर्माने की सजा सख्त प्रावधान किया गया था। इसमें आरोपी द्वारा जुर्माने की राशि नहीं देने पर उसकी संपत्ति को बेचने का भी प्रावधान किया गया था।
लोगों से सुझाव मिलने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने विधेयक को कानून मंत्रालय के पास सत्यापन के लिए भेजा गया था, जहां से विधेयक को स्वीकृति मिल गई थी। वित्त मंत्रालय ने भी बिना किसी बदलाव के विधेयक को मंजूरी दे दी थी। हालांकि, जब यह विधेयक गृह मंत्रालय के पास भेजा गया तो गृह मंत्रालय ने इस पर आपत्ति लगा दी।
गृह मंत्रालय ने कहा था कि किसी एक व्यवसाय के लिए अलग से कानून बनाना युक्तिसंगत नहीं है। ऐसा हुआ तो आगे अन्य पेशे से जुड़े लोग अपने लिए आईपीसी और सीआरपीसी से अलग कानून मांगेंगे। गृह मंत्रालय ने कहा कि डॉक्टरों पर हमले से निपटने के लिए आईपीसी और सीआरपीसी में पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं। इस टिप्पणी के साथ गृह मंत्रालय ने विधेयक पर दोबारा चर्चा करने के लिए भेज दिया था। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गृह मंत्रालय की आपत्ति के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस विधेयक पर आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है।