जैन साधना का हृदय है सामायिकः मुनि जिनेश कुमार

पुणे में अभिनव सामायिक का सफल प्रयोग

पुणे। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्वावधान में आयोजित अभिनव सामायिक में 404 भाई बहनों ने भाग लिया। जीवन की सफलता का महत्वपूर्ण सूत्र है वर्तमान में जीना। जागरूकता व राग द्वेष से परे होकर जीना । समता से जीना। क्षमता के विकास का साधन है सामायिक। सामायिक अहं से अर्हम की यात्रा है। विभाग से समभाव की यात्रा है । जैन साधना पद्धति की आधारशिला है सामायिक । सामायिक की प्रक्रिया जैन साधना का हृदय है ।सामायिक का अर्थ है आत्मा में रमण करना व समता का विकास। चित्त  की प्रसन्नता का आधार सामायिक है। जब व्यक्ति का मन अशांत होता है तब व्यक्ति के भीतर राग द्वेष की तरंगे उठती है। वह तरंगे मन को अशांत करती है। अशांत मन समस्याओं का जन्म देता है  । समस्या से मुक्ति पाने का आधार सामायिक है । सामायिक से स्वतः ही विवाद समाप्त हो जाते हैं । 48 मिनट की  पापकारी प्रवृत्ति का त्याग कर आत्म साधना व समता का विकास करना सामायिक का उद्देश्य है। सामयिक वर्तमान में जीने की कला सिखाती है  व संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती है  ।
इर्ष्या, प्रतिशोध , वैर, नफरत, घृणा , कषाय भोग,  वासना , हर्दयहीनता, विचारों की भीड़ , एकांत के अभाव से मुक्ति पाने का एक साधन सामायिक है सामायिक से अनासक्ति, अभय, पाप भीरुता का विकास होता है । सामायिक, संवर और निर्जरा की साधना है । सामायिक से क्रियात्मक पाप रुकता है और कृत पापो का शोधन होता है । भगवान महावीर ने सामायिक को साधना का सबसे बड़ा आलंबन बताया है सामायिक 2 करण 3 योग से होती है। सामायिक 10 मन के 10 वचन के 12 काया के दोष टाल कर की जाती है। जैन धर्म में पूनिया श्रावक की सामायिक को श्रेष्ठ बताया है । क्योंकि उसकी सामायिक प्रायः शुद्ध होती थी। सामायिक का मूल्य अमूल्य है । कोई स्वर्ण और हीरों के ढेर से आकाश को छू ले तथापि सामायिक का मूल्य चुकाया नहीं जा सकता । सामायिक में गणवेश का भी बहुत मूल्य होता है। गणवेश में की गई सामायिक साधुता का भाव उत्पन्न करती है । सबको सामायिक करनी चाहिए । मुनि परमानंद जी ने अभिनव सामायिक का प्रयोग करते हुए विचार रखे। इस अवसर पर तेरापंथी सभा पुणे के अध्यक्ष सुरेंद्र जी कोठारी एवं तेरापंथ युवक परिषद पुणे के अध्यक्ष दिनेश जी खिवेसरा ने भी अपने विचार रखे ।

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