कालबादेवी में पर्युषण पर्व का तीसरा दिन अभिनव समायिक के रूप में मनाया गया

मुंबई। साध्वी श्री अणिमा श्रीजी एवं साध्वी श्री मंगलप्रज्ञा जी के सांनिध्य में महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल के विशाल परिसर में पर्युषण महापर्व का तीसरा दिन सामयिक दिवस के रूप समायोजित हुआ । हजारो व्यक्तियो ने अभिनव सामयिक को चित्ताकर्षक अनुष्ठान से जुड़कर समता की साधना व आराधना की।
साध्वी श्री अणिमा श्रीजी ने अपनी अनोखी प्रवचन शैली में परिषद को संबोधित करते हुए कहा आध्यात्म का प्रथम सोपान है, सामयिक आश्रव को रोकने की सक्षम विधि है। समायिक संयम की आराधना का महत्वपूर्ण पड़ाव है। सामयिक आवेश व आवेग पर नियंत्रण करने की संजीवनी है समायिक । समायिक के बिना साधना , आराधना, उपासना, पार्थना सिद्ध के द्वारा तक नही पहुंच सकती । समायिक ग्रहण करने पर श्रावक भी साधु जैसा हो जाता है। आध्यात्मिक उच्च अवस्था को प्राप्त करता है। अतः श्रावक को अधिकाधिक समायिक करनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह समय आत्मविश्लेषण करने का है। मनुष्य जीवन की श्रेष्ठता , जेष्ठता का आकलन न पद प्रतिष्ठा से है, न पैसे से होगा। उसका आकलन होगा उसकी साधना से देखना है, जीवन मे तप त्याग की चमक कितनी है। समता की दम कितनी है। निस्संदेह वह व्यक्ति महिमा मंडित है। जिसके ह्रदय में सरलता है,मन से समता है भावो में निर्मलता है।
साध्वी श्री मंगलप्रज्ञा जी ने अभिनव समायिक समायिक का प्रयोग करवाया। जप योग की साधना जब चल रही थी तब लग रहा था। पूरा ध्यान प्राण ऊर्जा से भर गया है। ध्यान योग की तल्लीनता से लग रहा था। मानो अंतर्यात्रा के द्वारा उद्घाटित हो रहे है। स्वाध्याय योग के अंतर्गत नवकार मन्त्र का विश्लेषण किया। साध्वी कर्णिका श्रीजी ने कहा पर्युषण का यह समय अंतरात्मा को परमात्मा की दिशा में अग्रसर होने का समय है, उसका साधना है, समायिक । साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने मंच संचालन करते हुए कहा यह समय साधना का समय है। साधना एक ऐंसा कल्पवृक्ष है, जो हर कल्पना को यथार्थ की धरती पर उतार सकता है। व्यक्ति साधना के पथ पर निरन्तर गतिशील रहे। साध्वी सुधाप्रभाजी ने अपने विचार व्यक्त किए। साध्वी स्मतव्यशाजी ने स्वरांजलि प्रस्तुत की। बांद्रा तेयुप व महिला मंडल ने गीतिका का संगान किया। यह जानकारी दक्षिण मुंबई मीडिया प्रभारी नितेश धाकड़ ने दी।

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