मराठा सेना के सेनापति पेशवा लड़ाका सदाशिव राव भाऊ और अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़े गए तीसरे पानीपत युद्ध पर आधारित फिल्म “पानीपत” बेहद भव्य और अच्छी फिल्म बन पड़ी है। अर्जुन कपूर, संजय दत्त और कृति सेनन अभिनीत “पानीपत” के जरिये आसुतोष गोवारीकर ने एक बार फिर से इतिहास के पन्नों को फिल्मी पर्दे पर पलटने की शानदार कोशिश की है, जिसमें वे सफल भी रहे हैं।
कहानीः सदाशिव राव भाऊ (अर्जुन कपूर) युद्ध जीतकर आते हैं, जहां नाना साहब पेशवा (मोहनीश बहल) के दरबार में स्वागत किया जाता है और उनकी खूब वाहवाही होती है, जो नाना साहेब पेशवा की पत्नी गोपिका बाई (पद्मिनी कोल्हापुरे) को अच्छा नहीं लगता और नाना साहेब पर सदाशिव भाऊ को धनमंत्री बनाने के लिए दबाव बनाती हैं। सदाशिव को धनमंत्री बना दिया जाता है इसी बीच राज्यवैद्य की बेटी पार्वती बाई (कृति सेनन) जो सदाशिव राव भाऊ से प्रेम करती है उनसे विवाह का प्रस्ताव रखती हैं, जिसे वे यह कहकर मना कर देते हैं कि हम सैनिकों की जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, जो तकलीफ हमने सहा है, हम नहीं चाहते कि उसका सामना तुम भी करो। यह सुनकर पार्वती बाई नाराज होकर अपने गांव लौट जाती हैं, लेकिन बाद में सदाशिव भाऊ उन्हें मनाने जाते हैं और मनाकर लाते हैं फिर शादी कर लेते हैं। इस बीच दिल्ली की गद्दी हथियाने के लिए नजीबुद्दौता (मंत्रा) अपगानिस्तान के बादशाह अहमद शाह अब्दाली (संजय दत्त) के पास जाकर दिल्ली हथियाने का षडयंत्र रचता है जिसके लिए अब्दाली मान जाता है और मराठा योद्धाओं के खिलाफ जंग लड़ने के लिए तैयार हो जाता है। नाना साहेब पेशवा को पता चलता है तो वे सदाशिव राव भाऊ को बुलाते हैं, यह बात बताते हैं और काफी चर्चा के बाद उन्हें जंग के लिए भेजते हैं। दोनों तरफ की सेनाएं आगे बढ़ती हैं लेकिन बीच में बहती नदी की तेज धाराओं की वजह से सेनाएं नदी के दोनों तरफ रुक जाती हैं। इस बीच सदाशिव राव भाऊ ने सूझबूझ से एक रास्ता निकाला और एक-एक किला जीतते हुए दिल्ली पर भी कब्जा जमा लिया। जिसे सुनकर अब्दाली आग बबूला हो जाता है। लेकिन इसी बीच अब्दाली का बेटा उसके लिए एक बुरी खबर लेकर आता है जिसकी वजह से वह जंग नहीं लड़ने और वापस अफगान लौटने का मन बनाता है, जिसके लिए सदाशिव भाऊ को सुलह हेतु संदेश भेजता है लेकिन सदाशिव भाऊ के सामने अब्दाली सुलह की जो शर्तें रखता है, उसे वह मानने से इंकार कर देते हैं जिससे बौखलाया अब्दाली जंग लड़ने की ठान लेता है। बाकी थिएटर जाकर आप खुद देखें।
निर्देशन/अभिनय़/संगीतः आशुतोष गोवरिकर ने अच्छे निर्देशन के साथ ही भव्य सेट बनाए हैं। अपनी पिछली फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी आशुतोष गोवरीकर दर्शकों को बांधने में कामयाब रही है। उन्होंने जिस उद्देश्य से फिल्म बनाया उसमें लगभग कामयाब रहे हैं। यदि अभिनय की बात करें तो सदाशिव राव भाऊ के किरदार में अर्जुन कपूर अच्छे लगे हैं, हालांकि उनमें काफी गुंजाइश बची रही कि किरदार को और शानदार बना सकते थे। पार्वतीबाई के किरदार में कृति सेनन ने भी बढ़िया किया है। पूरे फिल्म में जो सबसे शानदार किरदार रहा है वह अहमद शाह अब्दाली की भूमिका में संजय दत्त की। हाव-भाव, चलने, उठने, बैठने, संवाद अदायगी का ढंग सबकुछ लाजबाव है। बाकी किरदारों में मोहनीश बहल, पद्मिनी कोल्हापुरे, सुहासिनी मुले, जीनत अमान, अभिषेक निगम आदि ने भी बेहतरीन किया है। संगीत की बात करें तो वह भी फिल्म के हिसाब से काफी अच्छा बन पड़ा है।
सुरभि सलोनी की तरफ से फिल्म को 4 स्टार।
- दिनेश कुमार ([email protected])