अहिंसा परम धर्म है: आचार्य महाश्रमण
24-11-2019, रविवार, के.आर. नगर, मैसूर, कर्नाटक। अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी महामेघ के समान कर्नाटक के गांव-गांव में अमृत की वर्षा कर रहे हैं। जन-जन को सद्भावना नैतिकता व नशा मुक्ति की प्रेरणा देते हुए पूज्यवर ने आज प्रातः हुंसुर से 13.5 किलोमीटर का विहार कर गावड़गेरे के सरकारी प्राइमरी स्कूल में पधारे।
स्कूल के प्रांगण में उद्बोधन देते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि हमारे जीवन में दया का बड़ा महत्व है। दयालु आदमी अनेक पापों से बच सकता है। दया इस रूप में हो कि मेरे द्वारा किसी को कष्ट या हिंसा ना हो जाए। न मारने के संकल्प को दया कहा गया है। जीव अपने आयुष्य बल से जी रहा है, यह हमारी दया नहीं है और मर रहा है तो हिंसा या पाप नहीं है। जो सलक्ष्य, ससंकल्प से मारता है, वह हिंसा का भागीदार है। नहीं मारना दया है।
आचार्य प्रवर ने आगे कहा- “अहिंसा परमो धर्म” अर्थात अहिंसा परम धर्म है। पाप आचरणों से बचना भी दया है। समझदार आदमी को पापों से बचने का प्रयास करना चाहिए। त्याग करवाना धार्मिक दया है। मार्ग में चलते समय छोटे जीवो पर पांव न पड़ जाए। कबूतर चुगा कर रहे हैं तो दूर से निकल जावे ताकि वे भयभीत ना हो, खाने में तकलीफ ना हो। ऐसे हम जीवो की हिंसा से, जीवो को कष्ट संपादन से बचने का प्रयास करें। किसी के दुख को देख कर भी खुश नहीं होना चाहिए। अहिंसा के प्रति हमारी भावना बढ़ती रहे। पूज्य प्रवर कि अभीवंदना में हुंसुर कन्या मंडल ने अपने भावों की गीत से प्रस्तुति दी। आज शाम लगभग 6.5 किलोमीटर का विहार कर पूज्य प्रवर के.आर. नगर पधारे।