कांदिवली। दिव्य पुरुष आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमलकुमार जी व शासन श्री साध्वी सोमलता जी के सान्निध्य में भव्य व आकर्षणक पिता-पुत्र सेमिनार आयोजित हुआ। कार्यक्रम का शुभारम्भ आदिनाथ भगवान की स्तुति से हुआ। प्रेक्षा ध्यान का प्रयोग करवाया गया। सामज्जस्व की अनुप्रेक्षा करवाई गई।
शासन श्री साध्वी सोमलता जी ने मनोवैज्ञानिक शैली में वर्तमान में घटित होने वाली घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा- आज समाज अनेक समस्याओं से पीड़ित है उसमें से एक समस्या है पिता-पुत्र के बीच में दूरियां। पिता-पुत्र से पुत्र-पिता से पास में बैठकर बात-चीत नहीं करना चाहता क्यों? इस जटिल समस्या का समाधान करते हुए आपने कहा- जब तक पिता अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकालेगा प्रेम से वार्तालाप और प्रोत्साहन नहीं करेगा उनके अरमानों को नहीं सुनेगा तब तक वह अपने पिता को उपेक्षा पूर्ण दृष्टि से देखेगा और हर समय हर पल पिता दूर रहने की कोशिश करता रहेगा। इसलिए जो पिता बन चुके हैं वे इस बात का ध्यान रखे अपने बालक में बचपन से ही सदगुणों का सिंचन करें, उनके लिए टाइम निकालें। उनकी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए प्रयास करे लेकिन उन अंकुश भी रखें।
आपने पुत्रों को भी संबोधित करते हुए कहा – प्रत्येक पुत्र का कर्तव्य होता है वे बड़ों की बातों का सम्मान करें, विनय भाव से स्वीकार करे। बेकवर्ड कहकर उपेक्षा न करे।
उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमलकुमार जी स्वामी ने ओजस्वी वाणी में कहा- पिता – पुत्र एक उम्र के बाद मित्रवत रहे। पिता का दायित्व होता है कि वह सबको एक आंख से देखें। समानता पूर्ण व्यवहार करें। घर के वातावरण को स्वस्थ बनाए रखें। आवेश में आकर कोई काम न करवाये बल्कि प्रेम से शांति से वार्तालाप करे। और पुत्र भी अपने संस्कार दाता पिता की भावनाओं को नहीं ठुकराएं। उनके आशीर्वाद से ही कोई भी कार्य करोगे तो सफलता तुम्हारे पास स्वयं आयेगी। कुल के गौरव को बढ़ाने के लिए हमेशा सत्संगी करनी चाहिए। असहाय आस्था में श्रवण कुमार की तरह माता – पिता की सेवा करके ही मेवा को प्राप्त कर सकोगे क्योंकि कोई भी पिता अपने पुत्र के अहित की कल्पना नहीं करता इसलिए उनके सुख को शाश्वत बनाने के लिए पुत्र की बात का बहुमान देना चाहिए।
साध्वी संचितयशा जी ने विषय में प्रवेश करवाया।
मुनि श्री नमिकुमार जी ने अपने विचार रखे। मुनि श्री अमनकुमार जी, साध्वी शकुन्तला कुमारी जी, जाग्रतप्रभा जी व रक्षित यशा जी ने अपने भावों की प्रस्तुति दी।
कांदिवली में पिता-पुत्र सेमिनार, कैसे रहे साथ-साथ
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