आदित्य तिक्कू।।
सुबह सुबह चाय की चुस्की के साथ खबर देख व सुन रहा था। पढ़ना तो काफी समय से त्यागा हुआ है। कई बार तो खुद का लिखा हुआ भी नहीं पढ़ता। आउटडेटेड सी फीलिंग आने लगती है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की कई देशों को तबाह करने की इच्छा व्यक्त करने से लेकर मेरे देश के विकास रथ को रोकते हुए ना जाने कहां से टीवी पर नकारात्मक खबर सामने आ गयी। पता नहीं लोगो को विश्व शांति और राष्ट्र प्रगति से क्या बैर है, जो नकारात्मक और उपदेश हीन खबरें और रिपोर्ट फैलाते रहते हैं।
यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के प्रत्येक तीन में से एक बच्चा कुपोषण या ज्यादा वजन का शिकार है। इससे दुनियाभर में कुपोषित आहार के परिणामों के प्रति सतर्क कर दिया है। यूनिसेफ ने 15 अक्टूबर को प्रकाशित रिपोर्ट में चेतावनी दी कि करोड़ों बच्चे अपनी जरूरत से बहुत कम खाना खाते हैं और जिसकी जरूरत नहीं होती है उसे अत्यधिक मात्रा में खाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया, “दुनियाभर में बीमारियां फैलने के पीछे अब मुख्य खतरा खराब आहार है। ”यूनिसेफ के अनुसार, इनमें से कई बच्चों पर दिमाग के अल्प विकास, याद करने में परेशानी, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता और संक्रमण तथा बीमारियों का खतरा है।यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने कहा, “बेहतर विकल्प नहीं होने के कारण करोड़ों बच्चे अस्वास्थ्यकर भोजन से ही गुजारा करते हैं।” रिपोर्ट में कुपोषण के तीन बोझ बताए- अल्पपोषण, छिपी हुई भूख और अधिक वजन।
यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार, साल 2018 में दुनियाभर में पांच साल से कम के 14.9 करोड़ बच्चे अविकसित और लगभग पांच करोड़ बच्चे कमजोर थे। आम धारणा के विपरीत, ज्यादातर कमजोर बच्चे आपातकाल का सामना कर रहे देशों की तुलना में एशिया में ज्यादा थे।इसके अलावा, पांच साल से कम के 34 करोड़ बच्चे जरूरी विटामिनों और अन्य खनिज पदार्थों की कमी से पीड़ित हैं और चार करोड़ बच्चे मोटापा या ज्यादा वजन से पीड़ित हैं। मोटापा या ज्यादा वजन पिछले कुछ सालों में बच्चों में महामारी के रूप में फैला है।
यूनिसेफ के आंकड़ों से मन उबरता की एक और शोध ने दस्तक देदी की पर्याप्त पोषण को अच्छे स्वास्थ्य और देश के विकास का एक महत्वपूर्ण सूचक माना जाता है। हालांकि, भारत में पिछले दो दशकों में सामाजिक और आर्थिक स्थितियों में बदलाव के बावजूद लोगों के पोषण की स्थिति में सुधार देखने को नहीं मिला है। भारत, अमेरिका और कोरिया के वैज्ञानिकों के एक शोध में यह बात सामने आई है। शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बड़ी संख्या में परिवार न्यूनतम वांछित कैलोरी से वंचित हैं।
इस अध्ययन में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। अध्ययन में अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के अनुसार प्रति व्यक्ति औसत कैलोरी उपभोग के साथ अपर्याप्त पोषक आहार के स्तर में भी विविधता देखी गई है। साल 1993-94 तथा 2011-12 के दौरान किए गए इस अध्ययन में एक लाख से अधिक शहरी एवं ग्रामीण परिवारों को शामिल किया गया है।
इसमें परिवारों की संपन्नता, परिवार के मुखिया की शिक्षा, जाति एवं व्यवसाय जैसे सामाजिक-आर्थिक आधारों के साथ-साथ उपभोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थों और उनकी मात्रा की जानकारी शामिल की गई है। यह अध्ययन दिल्ली स्थित आर्थिक विकास संस्थान और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने अमेरिका की वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ तथा दक्षिण कोरिया के सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर किया है।
प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर एस.वी. सुब्रमण्यन ने बताया कि भारतीय लोगों में अभी भी पर्याप्त कैलोरी की कमी की समस्या है। पोषण संबंधी नीतियों और शोधों में वृहत पोषक तत्वों के आंकड़ों को एकत्रित करने और उनकी कमी को दूर करने की जरूरत है।
ग्रामीण और शहरी परिवारों में प्रति व्यक्ति औसत पोषक ऊर्जा उपभोग में काफी समानता पाई गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि बीस वर्षों में दोनों क्षेत्रों में सामाजिक आर्थिक विकास के बावजूद प्रति व्यक्ति औसत ऊर्जा उपभोग में कमी आई है। वर्ष 1993-94 में ग्रामीण परिवारों में प्रति व्यक्ति औसत पोषक ऊर्जा उपभोग 2280 किलो कैलोरी तथा शहरी परिवारों में 2274 किलो कैलोरी था, जबकि 2011-12 में यह गांवों में 2210 किलो कैलोरी तथा शहरों में 2202 किलो कैलोरी हो गया।
पब्लिक हेल्थ न्यूटिशन जर्नल में प्रकाशित हुए शोध में बताया गया है कि भारत में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति को औसत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 2400 किलो कैलोरी और शहरी क्षेत्रों के लिए 2100 किलो कैलोरी तय की गई है। इससे 80 प्रतिशत से कम उपभोग को अपर्याप्त ऊर्जा की श्रेणी में रखा जाता है। यह पाया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 33 प्रतिशत और शहरों में लगभग 20 प्रतिशत परिवार अपर्याप्त ऊर्जा का उपभोग करते हैं।
समझ नहीं आ रहा क्या लिखूं! विश्व शांति पर या पाकिस्तान के पतन पर या भारत के सवर्णिम इतिहास और भविष्य पर। क्योंकि ट्रेंड में तो यही है। भुखमरी कुपोषण पर लिखना व बात करना भी दाकियानूसी ही लगता है। जैसे बुलेट ट्रेन के समय में कोई साइकिल के हक़ की बात करे। जैसे कोई कहे बैंक में पैसे थे वो गुम हो गये। जैसे कोई कहे प्रगति कुपोषित हो गयी।
लिखने के लिए कुछ है नहीं, सब सकुशल है पर सोचिये भूख और भुखमरी के बारे में। कहीं वह हमारी तरफ तो नहीं बढ़ रही?
प्रगति कुपोषित हो गयी
Leave a comment
Leave a comment