तारेक फतह।।
ऐसे कुख्यात शब्द सुने अरसा हो गया था। वर्ष 1956 में सोवियत प्रधानमंत्री निकिता ख्रुश्चेव ने पश्चिमी देशों को धमकाया था, ‘हम आपको दफ्ना देंगे।’ लेकिन इसके बाद दुनिया के नेताओं ने किसी देश को अपने परमाणु हथियारों के जोर पर ऐसी धमकी देते नहीं सुना था। इतिहास गवाह है, लगभग 63 साल पहले ख्रुश्चेव ने मास्को में पश्चिमी देशों के राजदूतों को दिए गए एक भोज के दौरान इन कुख्यात शब्दों का इस्तेमाल किया था और अब इस्लामी राज्य पाकिस्तान ने भी ऐसा ही कहकर दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। उसके प्रधानमंत्री इमरान खान ने परमाणु युद्ध का खतरा जताते हुए कहा है कि अगर यह हुआ, तो पूरी दुनिया को लपेट लेगा।
पिछले दिनों इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के कम भरे सभा भवन में अपना भाषण दिया। उनके संबोधन में धमकी कोई दबी-छिपी नहीं थी। उन्होंने साफ तौर पर यही बताने की कोशिश की कि भारतीय कश्मीर के लिए लड़ाई चल रही है और पड़ोसी देश भारत के खिलाफ जेहाद करने की उनकी इच्छा पर अगर ध्यान नहीं दिया गया, तो भारत-पाकिस्तान के बीच एक परमाणु युद्ध छिड़ जाएगा और पूरी दुनिया उसके शिकंजे में आ जाएगी। इमरान ने कहा, ‘अगर दोनों देशों के बीच पारंपरिक युद्ध शुरू होता है,… तो कुछ भी हो सकता है। लेकिन अपने पड़ोसी (भारत) से सात गुना छोटा देश (पाकिस्तान) ऐसे में क्या करेगा, या तो आत्मसमर्पण करेगा या अपनी आजादी के लिए जी जान से लड़ेगा। हम क्या करेंगे? मैं खुद से यह सवाल पूछता हूं… और हम लड़ेंगे। और जब एक परमाणु शक्ति संपन्न देश अंत तक युद्ध लड़ता है, तो उसके नतीजे सीमाओं के पार भी पहुंचेंगे।’
इमरान खान कश्मीर में इस तरह से ‘रक्त स्नान’ की धमकी क्यों दे रहे हैं? भारत ने किया क्या है? भारत सरकार ने अपने एक क्षेत्र को अपने साथ पूरी तरह से मिलाने के लिए नियम-कायदे के तहत सांविधानिक संशोधन किए हैं। भारतीय संविधान के तहत ही उसके अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाया गया है। भारत सरकार ने सभी राज्यों में भारतीयों के लिए समान अधिकार तय कर दिए हैं। भारतीयों को मिले सभी अधिकार उस क्षेत्र में भी लागू कर दिए गए हैं। भारत में ऐसे प्रावधानों को हटाया गया है, जिसके कारण भारत के इस क्षेत्र को देश के अन्य 29 राज्यों की तुलना में ज्यादा स्वायत्तता हासिल थी।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में आए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने स्वयं को ऐसे दर्शाया, मानो वह पूरी इस्लामी दुनिया के नेता हों और उन्हें भारत के कश्मीरी मुस्लिमों के बारे में बोलने का भी हक हासिल है। अपनी एक भड़काऊ टिप्पणी में इमरान खान ने एक अतिरेकी सवाल भी उठा दिया, ‘क्या मैं ऐसे ही जीना पसंद करूंगा?’ फिर खुद ही अपने सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने एलान किया, ‘मैं बंदूक उठाऊंगा।’
धमकी देने के साथ ही लगे हाथ इनकार करते हुए अपना बचाव करके उन्होंने प्रशंसा पाने की भी कोशिश की। उन्होंने कहा, ‘मैं यहां परमाणु युद्ध के बारे में धमकी नहीं दे रहा हूं। यह एक चिंता का विषय है। यह संयुक्त राष्ट्र के लिए एक परीक्षा है। आप (संयुक्त राष्ट्र) वही हैं, जिसने कभी कहा था कि कश्मीर को आत्म-निर्णय का अधिकार हासिल है। यह म्यूनिख में 1939 की तरह तुष्टीकरण का समय नहीं है।’(म्यूनिख समझौते में नाजी जर्मनी और हिटलर को एक क्षेत्र देकर युद्ध से बचने और जर्मनी को खुश करने की कोशिश हुई थी।)
सवाल यह है कि क्या इमरान खान नाजी जर्मनी के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की तुलना कर रहे थे? क्या वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एडॉल्फ हिटलर के बीच समानता बता रहे थे? ऐसा किसी को भी लग सकता है। यह विडंबना है, तालिबान खान के नाम से पुकारे जाने वाले इस शख्स ने भारतीय नेता पर फासीवादी होने का आरोप लगा दिया? वह भूल गए कि ठीक उसी समय कुछ पाकिस्तानी अमेरिकी न्यूयॉर्क की सड़कों पर जमा होकर सांप्रदायिक नारे लगा रहे थे और इन्होंने वहां बलूचिस्तान व सिंध के जेहाद विरोधी निर्वासित लोगों पर हमला बोल दिया था। वहां सभी ने देखा, बलूच और सिंध के लोग पाकिस्तान में आए दिन होने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे।
इमरान खान की परमाणु युद्ध की धमकी का भारत की कूटनीतिज्ञ विदिशा मैत्रा ने पूरी तसल्ली से और मुकम्मल जवाब दिया।
पाकिस्तान को जवाब देने के अपने अधिकार के तहत महासभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा असामयिक परमाणु तबाही का खतरा बताना राजनय (या राज्य कौशल) का द्योतक नहीं है, बल्कि विचलन, अस्थिरता का द्योतक है। यह बात उस देश के नेता की ओर से आई है, जिसका आतंकवाद के उद्योग की पूरी मूल्य शृंखला पर एकाधिकार है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा आतंकवाद का औचित्य सिद्ध करना बेशर्म और आग लगाऊ कृत्य है।
भारतीय राजनयिक ने इसके आगे यह भी जोड़ा कि दुर्भाग्य से, संयुक्त राष्ट्र में हमने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से जो कुछ भी सुना, वह दोहरे अर्थों में पेश किया गया दुनिया का निर्मम चित्रण है। हम बनाम वह, गरीब बनाम अमीर, विकसित बनाम विकासशील, मुसलमान बनाम अन्य। उनका भाषण एक ऐसी पटकथा है, जो संयुक्त राष्ट्र में विभाजन को बढ़ावा देती है। परस्पर मतभेदों की धार तेज करती है और घृणा बढ़ाने की कोशिश करती है। इसे केवल घृणा भाषण कहा जा सकता है।
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