महावीर की जरूरत सबसे ज्यादा अबः विश्ववंदना
महावीर को दीवार पर नहीं दिल में बसाएं
वसई। वर्धमान स्थानक को आज जोरदार सुंदर रंगीन फरियों से सजाया गया था ।ढोल एवं गाजे-बाजे बज रहे थे, महिलाएं मंगल गीत गा रही थी और चारों और लोग- लुगाइयां एक दूसरे को बधाई हो बधाई की सौगातें दे रही थी। हर तरफ माता त्रिशला के महल में भगवान महावीर के जन्म को लेकर हर्ष- हर्ष, जय-जय के नाद से गूंज रहे थे। इस प्रकार शुक्रवार को जैन वर्धमान स्थानकवासी समाज ने भगवान महावीर का जन्म उत्सव मनाया।
इस अवसर पर जीवनदृष्टा साध्वी विश्ववंदना ने श्रावको के बीच कहा कि ढाई हजार वर्ष पूर्व एक महान आत्मा ने जन्म लिया था ,जिसे हम आज भगवान महावीर के नाम से जानते हैं। साधु-संतों, ऋषि-मुनियों, योगी -फकीरों, कवियों -दार्शनिकों के इस देश में भगवान महावीर जैसे महापुरुष तो यदा-कदा ही जन्म लेते हैं ।किंतु ऐसे महापुरुष जब भी उत्पन्न होते हैं तो पृथ्वी का रूप निखर आता है ।उसका सस्य श्यामला रत्नगर्भा नाम सार्थक हो जाता है और मानवता का मस्तक गौरव से दमक उठता है।
साध्वी ने कहा महान देश की संस्कृति भी उसके गौरव के अनुकूल महान है, भारतीय संस्कृति का दिव्य संदेश है कि इस विश्व में मानव से महान कुछ भी नहीं है ।यह एक ऐसा रहस्य सूत्र है जिसके आधार पर हम विकास के चरम शिखर पर पहुंच सकते हैं ।सृष्टि की समस्त सिद्धियां मनुष्य के अंदर में ही निवास करती है। आवश्यकता केवल इसी बात की है कि मनुष्य अपनी शक्तियों को पहचान ले और अपने इस ज्ञान के आधार पर आगे बढ़े ।जब-जब भी मानव ने अपने आप में ही निहित अपने इस महानता को पहचाना है ,वह एक-एक चरण आगे बढ़ता हुआ सिद्धि के चरम बिंदु पर पहुंच गया है। वस्तुतः अपने समस्त सद्गुणों और क्षमताओं को आत्मसात कर लेना ही मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि है।
उन्होंने कहा जिन्हें हम आज महापुरुषों के रूप में पहचानते हैं उनमें ऐसी ही सिद्धि विद्यमान थी। भारतीय संस्कृति के इस रहस्य -सूत्र को उन पुरुषों ने भली प्रकार आत्मसात किया कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है ,विश्व में उसे महान अन्य कुछ भी नहीं है। समस्त ऊंचाइयां और सिद्धियां उसकी आत्मा में ही अवस्थित है ।भगवान महावीर के जीवन में उक्त कथन चरितार्थ हुआ दिखाईदेता है। उनके जीवन पर दृष्टिपात करने से हमें यह ज्ञात हो जाता है कि उन्होंने जीवन भर अपने आत्मगुणों को संपूर्णत: आत्मसात करने का यत्न किया ,उसमें वे पूर्णत सफल हुए और इस प्रकार सदा सदा के लिए एक ऐसे आलोक स्तंभ बन गए जिससे प्रकाश प्राप्त करके मनुष्य अपना खोजता रहेगा।
साध्वी ने कहा महावीर कभी आउट ऑफ डेट नहीं हो सकते ,महावीर जिस किसी भी युग में रहेंगे वह तो अप टू डेट रहेंगे। आज भी महावीर की उतनी ही आवश्यकता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी ।महावीर हमारी जिह्वा पर नहीं ,हमारे जीवन में रहे। महावीर को दीवार पर लिखने की बजाए दिल में रखने की कोशिश करें। महावीर उपदेश नहीं ,महावीर तो क्रिया है ।वह व्यक्ति को अतिक्रमण से मुक्त करके प्रतिक्रमण का मार्ग देता है।
साध्वी परमेष्ठी वंदना ने कहा महावीर हमसे पांच चीजें चाहते हैं। पहला हिंसा नहीं करेंगे और ना ही जुबान से कड़वी जुबान बोलेंगे। महावीर चाहते हैं कि हम खुद भी जिएं और अपनी ओर से औरों को भी जीने दें। उन्होंने कहा कि महावीर ने अपनी चार पंक्तियों में संपूर्ण धर्मों का सार दे दिया कि जो तुम अपने लिए चाहते हो वही तो औरों के लिए भी चाहो, जो तुम अपने लिए नहीं चाहते वह तुम औरों के लिए भी मत चाहो। महावीर संकल्प दिलाते हैं कि झूठ नहीं बोलेंगे, चोरी नहीं करेंगे। हम व्यभिचार नहीं करेंगे और व्यसन नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चों में गलत संस्कार ना पड़े तो कृपया अपने जीवन में दुर्व्यसनों का त्याग कर दें ।निष्पाप जीवन जीने के लिए सीधा सरल धर्म है कि हर व्यक्ति आज यह पांच संकल्प लें कि वह इंसान झूठ ,चोरी, व्यभिचार और व्यसन को जीवन का पाप समझकर त्याग करता है। इस अवसर पर अनवरत रूप से 28 उपवास कर रही जानवी का रंजीतलाल ठाकुर एवं अध्यक्ष मांगीलाल बोलिया ने बहूमान किया। साथ ही मासखमण, ग्यारह ,अठाई, पांच, तेला एवं बेला करने वाले तपस्वीयों का भी बहू मान किया गया।