गुवाहाटी: नेशनल सिटिजन रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम लिस्ट शनिवार जारी कर दी। अब असम के 41 लाख लोग जान सकते हैं कि वे भारतीय नागरिक हैं या विदेशी। यह लिस्ट इंटरनेट और राज्य के 2500 एनआरसी सेवा केंद्रों, 157 अंचल कार्यालय और 33 जिला उपायुक्त कार्यालयों में उपलब्ध होगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की वजह से कोई भी अधिकारी लिस्ट के बारे में बोल नहीं सकता।
वहीं, असम में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है। हिंसा और सांप्रदायिक झड़पों की आशंकाओं को देखते हुए राज्य सरकार और गृह मंत्रालय ने लोगों से शांति की अपील की है। पुलिस द्वारा जारी एडवाइजरी में लोगों से अफवाहों, सुनी-सुनाई बातों, फेक न्यूज पर विश्वास न करने की अपील की गई है। गुवाहाटी समेत 5 जिलों में धारा 144 लागू है। पिछले साल 21 जुलाई को जारी की गयी एनआरसी सूची में 3.29 करोड़ लोगों में से 40.37 लाख लोगों का नाम नहीं शामिल था। अब अंतिम सूची में उन लोगों के नाम शामिल किए जाएंगे, जो 25 मार्च 1971 से पहले असम के नागरिक हैं या उनके पूर्वज राज्य में रहते आए हैं।
राज्य में अफवाहों का दौर जारी
एनआरसी को लेकर राज्य में कई अफवाहें फैली हुई हैं। अफवाह है कि जिनके नाम अंतिम लिस्ट में नहीं होंगे, उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा या बांग्लादेश भेजा जाएगा। प्रशासन सोशल मीडिया पर नजर बनाए हुए है। असम के सीएम सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि असम में बसे किसी भी भारतीय को डरने की जरूरत नहीं है, राज्य सरकार उनके साथ है। अंतिम सूची में जिनका नाम नहीं होगा, उनकी चिंताओं पर राज्य सरकार ध्यान देगी। सुनिश्चित करेगी कि कोई परेशान न हो। जब तक अपीलकर्ता की याचिका ट्रिब्यूनल में विचाराधीन है, तब तक उन्हें विदेशी नहीं माना जा सकता। लोगों से अपील है कि वे शांति और अमन बनाए रखें।
राज्य में 200 ट्रिब्यूनल बनाए गए
- एनआरसी की अंतिम सूची के प्रकाशित होने से पहले असम में 20 हजार अतिरिक्त पैरामिलिट्री फोर्स को तैनात किया गया है।
- सरकार के मुताबिक एनआरसी से बाहर होने वाले लोगों के मामले की सुनवाई के लिए राज्य में एक हजार ट्रिब्यूनल बनाए जाएंगे।
- राज्य में 100 ट्रिब्यूनल बनाए जा चुके हैं, 200 सितंबर पहले हफ्ते में शुरू हो जाएंगे। लोग इनमें 120 दिन तक अपील कर सकेंगे।
4 साल से 62 हजार कर्मचारी एनआरसी लिस्ट बनाने में जुटे थे
एनआरसी लिस्ट जारी होने के साथ 4 साल से जारी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। इस काम में 62 हजार कर्मचारी 4 साल से लगे थे। असम में एनआरसी कार्यालय 2013 में बना था, पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम 2015 से शुरू हुआ। पहली लिस्ट 2017 और दूसरी लिस्ट 2018 में प्रकाशित हुई थी।
लोगों में विदेशी कहलाने का डर
जोरहाट के व्यवसायी गजेंद्र जैन बेचैन हैं। कहते हैं कि यदि उनका नाम लिस्ट में नहीं आया तो क्या होगा? क्या उन्हें जबरन डिटेंशन कैंप में रखा जाएगा या बांग्लादेश भेज दिया जाएगा। उनका परिवार करीब 100 साल से असम में रह रहा है। वे मूलत: राजस्थान के हैं। पिछली बार उन्होंने सभी जरूरी डॉक्यूमेंट्स जमा किए थे। फिर भी परिवार का नाम लिस्ट में नहीं आया। ऐसी ही स्थिति यूपी के चित्रकूट के सत्यनारायण मिश्र की है। वे 25 साल से असम में हैं। उन्होंने स्थानीय युवती से शादी कर ली। पिछली लिस्ट में पत्नी, बेटा और एक बेटी का नाम है, पर उनका और बेटी का नाम गायब हो गया। उन्होंने इस बार भी दस्तावेज जमा किए हैं, पर आज को लेकर चिंतित हैं। बिहार के भागलपुर के रविकांत 1990 में नौकरी के लिए गुवाहाटी आए थे। उनके पूरे परिवार का नाम लिस्ट में नहीं था। इन दिनों उनका ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है। रात में नींद नहीं आती है। उन्हें डर है कि पुलिस पकड़कर ले जाएगी। इस वक्त असम में ऐसी आशंकाओं के बीच लाखों लोग जी रहे हैं।