गीता जगाती है कर्तव्य परायणता और आत्मविश्वास
वसई। जीवन दृष्टा जैन साध्वी विश्व वंदना का मानना है कि श्री कृष्ण वे पहले भगवान हैं जिन्होंने धरती को हंसता मुस्कुराता हुआ धर्म दिया ,धर्म की नीरसता को नृत्य ,भक्ति रासलीला द्वारा सरसता, में बदलकर प्राणी मात्र के लिए उपयोगी बनाया। वे मखन की मटकीयों को फोड़ने के बहाने जन्म जन्म के पापों की मटकिया फोड कर लोगों को निष्पाप बना देते थे ।उनका निवास ना तो वैकुंठधाम में है ना मंदिरों में ,वह तो लोगों के दिलों में रहते हैं ।जो दिल से पुकारते हैं वे उन्हें हर जगह पा लेते हैं ,नहीं तो तीर्थ और वृंदावन जाकर भी रिते के रिते ही रह जाते हैं।
वसई के वर्धमान स्थानकवासी स्थानक में शुक्रवार को जैन साध्वियों के सानिध्य में जन्माष्टमी का भव्य एवं विराट महोत्सव मनाया ।इस अवसर पर श्री कृष्ण की बाल लीला, रासलीला और कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश का सटीक वर्णन किया गया तो ऐसा लग रहा था जैसे 5 हजार साल बाद फिर कृष्ण का साक्षात हो गया हो। इस महोत्सव में कृष्ण -राधा बनकर आए बच्चे आनंद की फूहारे बरसा रहे थे ।साध्वियों ने कृष्ण भक्ति से जुड़े सूरदास और मीरा- गोपियों के प्रेरक प्रसंग सुनाए तो श्रधालुओ की आंखें प्रेम रस से भीग उठी और “हे श्याम तेरी मुरली पागल कर देती है— मीठे रस से भरो री राधा रानी लागे— बड़ी देर भई नंदलाला तेरी राह तके बृजबाला ,तथा छोटी छोटी गईया छोटे छोटे ग्वाल जैसे सुरीले और मधुर भजन सुनाए तो स्थानक गोकुलधाम और वृंदावन सा साकार हो उठा ।
साध्वी विश्ववंदना ने इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक ही घर में जन्मे दो महापुरुषों में से एक नेमिनाथ भगवान ने 22वें तीर्थंकर के रूप में जैन धर्म पर राज किया और दूसरे भगवान कृष्ण ने हिंदू धर्म पर ।इतिहास में कृष्ण ही ऐसे महापुरुष हुए जिन्होंने ना तो सन्यास लिया और ना ही कोई साधना की, फिर भी वह भगवान की तरह पूजे गए। उन्होंने जो किया वह इतिहास बना ,जो कहा वह गीता बनी, और जो जिया वह रासलीला बन गई ।श्री कृष्ण ने सलाखों में जन्म लेकर भी धरती को प्रेम और माधुर्य का संदेश दिया और दुश्मन के घर में जन्म लेकर दुश्मन को पछाड़ा।
गीता जगाती है आत्मविश्वास
धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी परमेष्ठी वंदना ने कहा कि गीता आत्मविश्वास को जगा कर कर्म करने की प्रेरणा देती है ।खाली बैठना अच्छा तो लगता है पर उसका परिणाम कभी अच्छा नहीं आता। जीवन का कायाकल्प कर्म योग से होगा ,कर्म योग कल्पवृक्ष की तरह है ।हम जीवन के खंडप्रस्थ को श्रम, कर्म और समर्पण से इंद्रप्रस्थ बनाने की कोशिश करें ।गीता भीतर में पलने वाले महाभारत को समाप्त कर व्यक्ति को अरिहंत बढ़ने की प्रेरणा देती है।
उन्होंने कहा कि स्वार्थ के शकुनी, दुर्बुद्धि के दुर्योधन ,घमंड के शिशुपाल और दू :शील के दुशासन को दूर करने की प्रेरणा है गीता। गीता भारतीय धर्म शास्त्रों की नीव है। गीता यानी भारत और भारत यानी विजय का विश्वास ।उन्होंने कहा कि हम बच्चों को हुनर सिखाएं ,स्कूल खोलने, गरीब विद्यार्थियों की सहायता करें, और 24 घंटों में 24 मिनट प्रभु के नाम समर्पित करें । प्रभु को पुष्प चढ़ाने की बजाय जीवन के पापों को चढ़ाएं ,ताकि वह हमें पाप मुक्त कर सकें । इस अवसर पर श्री संघ के अध्यक्ष श्री मांगीलाल बोल्या ने कहा कि हमे भी हमारे जीवन मे कृष्ण की तरह मिठास को गोलना चाहिए और हमेशा सब के साथ प्रेम भाव के साथ रहना चाहिए। इस श्री कृष्ण जन्माष्ठी पर बच्चों ने कृष्ण की लीला पर आधारित कई कार्यक्रम प्रस्तुत किए। ओर सब को कृष्ण के जीवन से कुछ गुणों को हमारे जीवन मे उतारने का संदेश भी दिया।