-‘सम्बोधि’ व्याख्यानमाला का एक-एक मनका फेर आचार्यश्री प्रदान कर रहे पावन सम्बोध
-आचार्यश्री ने पाप-पुण्य का किया विवेचन कहा, पूर्वकृत पुण्य करते हैं आदमी की रक्षा
-‘महात्मा महाप्रज्ञ’ के माध्यम से आचार्यश्री महाप्रज्ञ के जीवन के प्रसंगों को किया विवेचित
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जन-जन का कल्याण करने वाले, लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का पावन संदेश प्रदान करने वाले, लोगों को सन्मार्ग पर लाने के लिए निरंतर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का दक्षिण भारत का दूसरा चतुर्मास तथा कर्नाटक की धरती का प्रथम चतुर्मास कर्नाटक की राजधानी व पूरे दुनिया में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में स्थान रखने वाली, फूलों की नगरी कहने जाने वाले महानगर बेंगलुरु में हो रहा है। अन्य विशेषताओं वाला यह यह महानगर अब आचार्यश्री के पावन प्रवास को पाकर एक धर्मस्थली के रूप में भी ख्याति को प्राप्त हो रहा है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण करने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हो रहे हैं और अपनी जीवन की दशा और दिशा को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
नित्य की भांति प्रातः के मुख्य मंगल प्रवचन में आचार्यश्री की अमृतवाणी का रसपान करने के लिए उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में सुख भी प्राप्त होता है और दुःख भी आ सकता है। जीवन में सुख-दुःख के आने के पीछे पुण्य और पाप का हाथ होता है। एक आदमी शरीर से मजबूत है, कोई भी कार्य मंे सक्षम है, उसके शरीर में कोई रोग नहीं है तो मानना चाहिए कि यह उसके पुण्य का उदय है, सातवेदनीय कर्म का परिणाम है। वहीं कोई आदमी जो शरीर से कमजोर है, रोगी हो, कोई भी कार्य करने में असमर्थ हो, ज्यादा मेहनत उससे न हो पाए तो उसके पाप कर्मों के कारण और असातवेदनीय कर्मों के उदय का परिणाम होता है। शक्ति, समर्थता और असमर्थता पुण्य-पाप के ही परिणाम है। एक आदमी की वाणी को सुनने के लिए लोग लालायित होते हैं, उसकी बातों को लोग मान भी लेते हैं, और किसी व्यक्ति को लोग सुनना भी नहीं चाहते तो भला उसके आदेश को कौन मान सकता है। यह सब उसके व्यक्ति के पूर्वकृत पुण्य और पाप का प्रतिफल होता है। पूर्वकृत पुण्य आदमी की रक्षा करते हैं। फिर वह आदमी कहीं भी अकेला हो, भीड़ में हो, लोग उसके आगे-पीछे घूमते हैं और किसी के पाप का उदय होता है तो लोग उसे पूछते भी नहीं। विपदाओं से भी पुण्य आदमी की रक्षा करता है। आदमी के जीवन में अनुकूलताएं हैं तो उसमें पुण्य का योग है और यदि किसी आदमी के जीवन में प्रतिकूलताएं हैं तो वह उसके पाप के योग के कारण से है। समाज, देश व राज्य में शासन सत्ता की प्राप्ति भी बिना पुण्य के योग के प्राप्त नहीं होती। भौतिक संदर्भों में सुखानुभूति, पुण्य के बिना संभव नहीं है। तीर्थंकर बनना भी पुण्य का ही प्रतिफल होता है। हालांकि साधना के क्षेत्र में पुण्य की कामना तथा निदान की कामना नहीं करना चाहिए। आदमी को साधना करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने स्वरचित ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ ग्रन्थ के माध्यम से आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के बालमुनि अवस्था में अध्ययन में कम लगने और बातों में अधिक लगने की घटना प्रसंगों का सरसशैली में वर्णन किया। उन्होंने कहा कि उनका मन पढ़ने में बहुत कम लगता। जब मुनि तुलसी कहीं बाहर पधारते तो मुनि नथमल अन्य बालमुनियों के साथ वार्तालाप करने में लग जाते, किन्तु मुनि तुलसी द्वारा निरंतर मिलती प्रेरणाओं के माध्यम से इस आदत का भी परिष्कार होता चला गया। वे मुनि तुलसी को सदा प्रसन्न रखने का प्रयास करते थे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री विमल कटारिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी को तपस्याओं की भेंट चढ़ाने वाले श्रद्धालुओं की इतनी होड़ मची हुई है कि बेला, तेला, चोला, पंचोला, अठाई और इससे कम की तपस्वियों की तो गिनती करना ही मुश्किल यहां तो दिन प्रतिदिन आचार्यश्री की पावन सन्निधि में मासखमण की तपस्याओं की भेंट समर्पित कर रहे हैं। आज श्रीमती उषा तातेड़ ने 29 दिन की तथा श्रीमती कुसुमलता हिरण ने 30 की तपस्या का प्रत्याख्यान कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। साध्वी स्वास्तिकप्रभाजी ने आध्यात्मिक कक्षाओं के संदर्भ में श्रद्धालुओं को जानकारी दी।