मुंबई। आचार्य रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने आज “पर्युषण पर्व का अभिनंदन” विषय पर प्रवचन दिया। पर्व यानी गांठ यानी रुकने का स्थान, और जो भीतर के गर्व को खत्म कर वो हैं पर्व। खाने-पीने, घूमने-फिरने, मौज-मज़ा, आनंद-प्रमोद, आदि के जो पर्व होते हैं वो लौकिक पर्व होते हैं जिसमें दीवारें रंगते हैं, और आत्मा का लक्ष्य जिसमें रहता हैं वो होता हैं लोकोत्तर पर्व जिसमें दिल को रंगना हैं। पर्व के दिनों में श्रावक को पौषध की आराधना करनी चाहिए, 4 प्रकार के पौषध, आहार, शरीर सत्कार, ब्रह्मचर्य और व्यापार।
धर्म आराधना और क्रिया किस तरह की होनी चाहिए? 1. F से भावों का फ़ोर्स होना चाहिए यानी जब क्रिया का आदर, आनंद और अनुमोदना हो तब सच में हमारी आराधना फ़ोर्स पूर्वक हो रही हैं। 2. F से फ़ास्ट होनी चाहिए यानी उल्हासपूर्वक और आनंदपूर्वक होनी चाहिए। 3. F से फर्स्ट होनी चाहिए यानी धर्म में कभी देर नहीं करनी चाहिए, सबसे पहले और तुरंत करनी चाहिए। 4. F से फैंटास्टिक होनी चाहिए यानी उच्च से उच्च होनी चाहिए, द्रव्य, भाव, आदि उच्च होने चाहिए, जैसा द्रव्य वैसा भाव। 5. F से फेमस होनी चाहिए यानी जिस आराधना और क्रिया पे भगवान की मोहर लगी हो ऐसी करनी चाहिए जैसे सामायिक पुणिया श्रावक जैसी और तप धन्ना अणगार जैसा। 6. F से फैबुलस होनी चाहिए यानी ऐसी हो कि दूसरे भी अनुमोदना करे।
कुणाल शाह के अनुसार प्रवचन में ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे। वहीं स्थानक वासी समाज (मुम्बई) अध्यक्ष किशन परमार, कार्या अध्यक्ष चौथमल सांखला, महामन्त्री रोशन वडाला, कोषाध्यक्ष भगवती पोखरना, शोकीन पामेचा, मांगीलाल लोढ़ा, दिनेश वडालमिया, नरेश कराड, हीरालाल चौहान, रमेश सियाल, नरेश सियाल, मू. पू. संघ से किशन सिंघवी, हस्ती सिंघवी, चंदू पामेचा, सुरेन्द्र पामेचा, आदि गुरु दर्शन के लिए पधारे।
ललितशेखरविजयजी म. सा. ने बताया ‘पर्युषण पर्व का अभिनंदन’ की महिमा
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