हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस साल पंचांग भेद की वजह से 23 और 24 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। महाभारत युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। गीता में 18 अध्याय हैं, जिनमें करीब 700 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वह आज भी हमारी कई परेशानियां दूर कर सकता है। अगर गीता में बताई गई बातों को जीवन में उतार लिया जाए तो हम हमारे लक्ष्यों को आसानी से हासिल कर सकते हैं। यहां जानिए गीता की कुछ खास नीतियां…
विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:।
निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।।
अर्थ- जो व्यक्ति अपनी सभी कामनाओं को छोड़ देता है और अहंकार से मुक्त होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, उसे ही शांति मिलती है। यहां भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मन में किसी भी प्रकार की इच्छा और कामना रखते हुए व्यक्ति को शांति प्राप्त नहीं हो सकती। इसलिए शांति पाने के लिए मन से इच्छाओं को मिटाना होगा। हम जो भी कर्म करते हैं, उसके साथ फल की भी इच्छा करते हैं। जब अपनी पसंद का फल नहीं मिलता है तो हमारा मन और ज्यादा अशांत हो जाता है। इसीलिए कर्म करो, लेकिन फल की इच्छा न करो। तभी मन शांत रह सकता है।
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यश: कर्म सर्व प्रकृतिजैर्गुणै:।।
अर्थ- कोई भी व्यक्ति पलभर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है और उसके परिणाम भी देती है। बुरे परिणामों के डर से अगर ये सोच लें कि हम कुछ नहीं करेंगे, तो ये सोच व्यर्थ है। कुछ भी नहीं करना भी, एक तरह का कर्म ही है, जिसका फल हमें हानि और अपयश के रूप में मिलता है। इसलिए कभी भी आलस्य न करें, अपनी क्षमता और समझदारी के अनुसार काम करते रहना चाहिए।
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।।
अर्थ- योगरहित व्यक्ति में संकल्प करने की बुद्धि नहीं होती और उसके मन में ऐसी भावना भी नहीं होती है। ऐसे भावनारहित व्यक्ति को शांति नहीं मिलती और जिसे शांति नहीं, उसे सुख कैसे मिलेगा। हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसे सुख मिले, इसके लिए वह भटकता है, लेकिन सुख का मूल तो उसके मन में स्थित है। जिस मनुष्य का मन इंद्रियों यानी धन, वासना, आलस्य आदि में रमा हुआ है, उसके मन में आत्मज्ञान की भावना नहीं होती। जिसके मन में आत्मज्ञान की भावना नहीं है, उसे किसी भी प्रकार से शांति नहीं मिलती और जिसका मन शांत नहीं है, उसे सुख नहीं मिल सकता।
जब तक मन में इच्छाएं रहेंगी, तब तक हमें शांति नहीं मिल सकती
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