मुंबई। आचार्य रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में पंन्यास ललितशेखरविजयजी म. सा. ने शुक्रवार को “18 पापस्थानक” के चौथे पाप “मैथुन” विषय के संदर्भ में “ब्रह्मचर्य की महिमा” के बारे में समझाया और बताया कि कैसे आहार सभी काम-वासनाओं का बाप है।
उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि मैथुन चौथा पाप हैं और उसके सामने ब्रह्मचर्य चौथा व्रत हैं। ब्रह्मचर्य यानी ब्रह्म के अंदर चरण करना यानी आत्मा में रमवाण होना। स्पर्शन, शब्द और रस, गंध, रूप और श्रवण ये 5 इंद्रियों के विषय हैं, इन सबकी आसक्ति से विरक्त होकर मर्यादित पापों को रखकर आत्म भाव में लीन होकर जीना यानी ब्रह्मचर्य। B से बर्थ और D से डेथ के बीच C से कंट्रोल यानी जो मर्यादा में रहेगा उसका जीवन सफल होगा वरना हर पल मौत हैं।
भगवान ने मनुष्य भव की प्रशंसा की और दुलभ इसलिए बताया हैं क्योंकि सिर्फ मनुष्य भव में ही मर्यादा का पालन हो सकता हैं और उससे आत्म कल्याण हो सकता हैं। देव, नारकी और तिर्यंच भव सिर्फ दौड़ने के भव हैं और मनुष्य भव दिशा नक्की करने का भव हैं, मनुष्य, देव, तिर्यंच या नारकी इन चारों में से जिस दिशा (भव) में जाना हो उस तरह का प्रयत्न करना। पांचों इंद्रियों को मनुष्य की तरह देव और तिर्यंच भी भोगते हैं पर अगर मनुष्य को आत्म कल्याण की दिशा पकड़नी हैं तो इंद्रियों पर नियंत्रण, मर्यादा और संयम रखना पड़ेगा। व्यवहार, वचन और वस्त्रों की मर्यादा ज्ञानियों ने बताई हैं, जो सब मर्यादाओं में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करे देवता भी उसे नमस्कार करते हैं।
1. स्पर्शनेन्द्रिय में आसक्त हुए हाथी, पर्वत राजा, आदि, 2. रसनेन्द्रिय में आसक्त हुए मछली, कंडरिक मुनि, आदि, 3. घ्राणेन्द्रिय में आसक्त हुए भंवरा, सुबुद्धि मंत्री, आदि, 4. चक्षुरिन्द्रिय में आसक्त हुए पतंगिये, रूपसेन, आदि और 5. श्रोतेन्द्रिय में आसक्त हुए हिरण, शैयापालक, आदि की मृत्यु या दुर्गति होती हैं। आमराजा ने बप्पभट्टसुरी महाराज को गुरु बनाने से पहले उनकी परीक्षा लेने के लिए नर्तकी को भेजा पर बप्पभट्टसुरी महाराज के एक रूवाटे में भी विकार नहीं आया, उनके गुरु ने उन्हें महा-ब्रह्मचारी होने का आशीर्वाद दिया था। भगवान महावीर के 20 वें पाठ पे आये मानदेवसूरि महाराज ने आजीवन 6 विगइयों त्याग और भक्त के घर की गोचरी नहीं लेने का संकल्प किया तब 19वें पाठ पे आये उनके गुरु प्रद्योतनसूरि महाराज ने उन्हें आचार्य पदवी दी। आहार सभी काम-वासनाओं का बाप हैं, आहार पे संयम, नियंत्रण, मर्यादा सद्गति का कारण बनती हैं।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार प्रवचन में ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति रही।
आहार सभी काम-वासनाओं का बाप हैः ललितशेखरविजयजी म. सा.
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