मुंबई। आ. रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने आज भी “18 पापस्थानक” के चौथे पाप “मैथुन” विषय पर प्रवचन दिया।
मिथुन यानी जोड़ा और जोड़े के द्वारा राग-द्वेष के कारण आसक्ति से आत्मा जो प्रवृति करती हैं वो होता हैं मैथुन। शरीर अनंतकाल तक मिलता हैं, मैथुन में प्रधान स्पर्शनेन्द्रिय होती हैं। चौथे पाप मैथुन का चौथा व्रत हैं स्वदारा संतोष विरमण व्रत यानी मैथुन से अटकने का व्रत। सदाचार यानी पांचों इंद्रियों पे नियंत्रण। कच्छ भद्रेश्वर के विजय सेठ और विजया सेठानी ने शादी के दिन से ही आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था, जिनदास श्रेष्ठी के पूछने पर उनकी तारीफ खुद कपिल केवली ने की थी। पैथडशा ने 32 वर्ष की उम्र में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। ब्रह्मचर्य पालन करने वाले के मंत्र फलते हैं, जश मिलता हैं, देवता सानिध्य करते हैं, आदि। अलग अलग दृष्टांतों और उदाहरणों के माध्यम से समझाया के मैथुन पाप किस तरह दुर्गति में ले जाता हैं और पांच महा पापों में इसे चौथे स्थान पर रखा गया हैं।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति रही।
सदाचार यानी पांचों इंद्रियों पर नियंत्रण: ललितशेखरविजयजी म. सा.
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