मुंबई। आचार्य रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने आज भी “18 पापस्थानक” के दूसरे पाप “मृषावाद” विषय से संबंधित “वाणी” पर प्रवचन दिया।
मृषावाद यानी झूठ बोलना। सभी इंद्रियों के सिर्फ 1 काम हैं पर जीभ के 2 काम हैं, स्वाद और वाद, स्वाद से शरीर और वाद से संबंध पर असर पड़ता हैं। सभी इंद्रियों में हड्डी होती हैं पर जीभ में हड्डी नहीं होती पर हड्डियां तुड़वा जरूर सकती हैं, जीभ स्त्री हैं और उसपे नियंत्रण के लिए दांतों के रूप में 32 पहरेदार हैं, संबंध बनाये रखने के लिए जीभ पर नियंत्रण चाहिए, सज्जन और दुर्जन की पहचान जीभ से हो जाती हैं।
वाणी के 8 गुण, 1. मधुरम यानी मीठा बोलना, 2. निपुण यानी होशियारी पूर्वक बोलना, 3. स्तोकम यानी अल्प या कम बोलना और 4. अवसरोचित यानी अवसर आने पर बोलना, 5. गर्वरहित यानी गर्व और अहंकार वादी शब्द नहीं बोलना, 6. तुच्छतारहित यानी तोछली (तुच्छ) जुबान से तोतली जुबान अच्छी, तुच्छ शब्दों का प्रयोग नहीं करना। 7. विचारपूर्वक यानी सोच-समझकर, तोल-मोल के, विचार करके बोलना, 8. धर्म संयुक्त यानी ऐसी वाणी का प्रयोग करना जिससे दूसरे का अहित नहीं होना चाहिए।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार प्रवचन पश्चात श्री ऋषभ महा-विद्या तप के एकासणे के लाभार्थियों का बहुमान किया गया। वहीं ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति रही।
संबंध बनाये रखने के लिए वाणी पर नियंत्रण चाहिएः ललितशेखरविजयजी म. सा.
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