मुंबई। आ. रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में प्रवचन में पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने बताया कि उपाध्याय यशोविजयजी महाराज “दुष्कृत की निंदा” विषय पर समझाते हैं कि अनंतकाल से आत्मा पे पापों के संस्कार पड़े हुए हैं, उन्हें खत्म करने का सबसे सरल उपाय हैं कि पापों के प्रति तिरस्कार या धिक्कार भाव लाना।
हम पापों को खत्म करने के लिए बहुत धर्म करते हैं पर धर्म में ये 4 बातें हैं तो वो थोड़ा धर्म भी ढेरों पापों को खत्म करके मोक्षदायी बनेगा, वरना ढेरों धर्म करने से भी फायदा नहीं होगा, 1. पांचों इंद्रियों के 25 विषयों के प्रति वैराग्य भाव होना चाहिए, सभी इंद्रियों की प्रवृत्ति हम हरदम नहीं कर सकते जैसे 24 घंटे लगातार खाते रहना, सुनते रहना, बोलते रहना, आदि पर वृत्ति का पाप तो लगते ही रहता हैं, पर ये सब करना बंद ज़रूर कर सकते हैं, इनसे जितने समय के लिए निवृत्ति या वैराग्य लेंगे उतना पाप कम होते जाएगा, 2. क्रोध, मान, माया और लोभ, इन 4 कषायों का त्याग भाव होना चाहिए, मन को जो पसंद हैं उससे होता हैं पक्षपात, वचन को जो पसंद हैं उससे होती हैं प्रशंशा और काया को जो पसंद हैं उससे होती हैं प्रवृत्ति, इन सबके प्रति त्याग का भाव होना चाहिए, 3. गुणों का अनुराग होना चाहिए और दुर्गणों की निंदा होनी चाहिए, हम पदार्थों को प्रेम करते हैं पर इंसानों को नहीं, एक ही इंसान में 1 या ज्यादा गुण हो सकते हैं पर कोई सर्वगुण सम्पन्न नहीं हो सकता, जिसमें जो गुण हैं उसका अनुराग करो, विनम्र बनने से दूसरों के गुण दिखते हैं, अभिमानी को किसी में कोई गुण नहीं दिखता, प्रशंशा मुह और होठों से होती हैं और इसमें स्वार्थ भी हो सकता हैं, और अनुमोदना बंद होठों से पर दिल से होती हैं, और 4. धर्म क्रियाओं के प्रति अप्रमाद होना चाहिए, सभी धर्म क्रियाएं अल्पांश होगी तो चलेगा पर उनमें रुचि, आनंद और अप्रमादता होने से वो सर्वांश फल देने वाली बन जाती हैं।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार आज सुबह ऋषभ महा-विद्या तप के तपस्वियों का पारणे में बियासणा करवाया गया और तपस्वियों का बहुमान भी किया गया। तपस्वियों के पारणे का लाभ श्रीमान शा. खुबिलालजी भंवरलालजी सिंघवी (झालो की मदार) परिवार को मिला और प्रवचन पश्चात लाभार्थी परिवार का बहुमान भी किया गया। इन मौकों पर ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों तपस्वी और श्रावक-श्राविकाओं की भी उपस्थिति रही।
पाप को खत्म करने का सरल उपाय है उनका तिरस्कार व धिक्कार करें: ललितशेखरविजयजी म. सा.
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