-राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रदान की राष्ट्रवासियों को पावन प्रतिबोध
-भारत के सर्वांगीण विकास की दिखाई राह, इन्द्रियों की परतंत्रता से मुक्ति का दिखाया मार्ग
-संस्कृत दिवस पर श्रीमुख से प्रस्फुटित हुई देववाणी संस्कृत, आह्लादित हो उठे श्रद्धालु
-आचार्य महाप्रज्ञ हाईस्कूल के विद्यार्थियों ने दी अपनी प्रस्तुति, प्राप्त किया आशीष
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): गुरुवार अर्थात् श्रावण शुक्ला पूर्णिमा का दिन। भारत के लिए दोहरे त्यौहार का दिन। एक ओर जहां पूरे देश में आजादी के जश्न में सराबोर तो दूसरी ओर पूरे भारत में भाई-बहनों के अटूट प्रेम का सूचक पर्व रक्षाबन्धन की धूम ऐसे में जन-जन को सत्पथ दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को ‘सम्बोधि’ ग्रन्थाधारित अपने पावन प्रवचन से मंगल संदेश प्रदान करते हुए कहा कि आदमी पंचेन्द्रिय प्राणी होता है और पशु भी पंचेन्द्रिय होता है। देव भी पंचेन्द्रिय होते हैं और नारकीय जीव भी पंचेन्द्रिय होते हैं।
‘सम्बोधि’ में बताया गया कि आदमी के पांच इन्द्रियां होती हैं, जिन्हें ज्ञानेन्द्रियां भी कहा कहा जाता है। एक आदमी अपने इन्द्रियों के वशीभूत हो जाता है और दूसरा इन्द्रियों को अपने वश में कर लेता है। इन्द्रियों को जितने वाला जितेन्द्रिय बन जाता है और जो इन्द्रियों के वशीभूत होता है, उसे वह इन्द्रियां कहां से कहां ले जाती हैं और क्या-क्या नहीं करवाती हैं। आदमी इन्द्रियों के वशीभूत होकर कभी अच्छा खाने के लिए दौड़ लगाता है तो कभी अन्य सुखों की चाह में अन्यत्र भटकता है। इन्द्रियों के सुख की चाह में आदमी दुःख को प्राप्त होता है। इस कारण आदमी न चाहते हुए भी दुःख के गर्त में गिरता चला जाता है। उदाहरण के तौर पर देखें तो आदमी मनोज्ञ भोजन के लिए कहां से कहां चला जाता है और जिह्वा के स्वाद के तृप्ति के लिए कभी आवश्यकता से अधिक खा लिया तो फिर तकलीफ भी पा जाता है। आदमी को अपनी इन्द्रियों का परतंत्र नहीं होना चाहिए, आदमी को इन्द्रियों को वश में करने और स्वयं स्वतंत्र रहने का प्रयास करना चाहिए।
आज 15 अगस्त का दिन भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है। आज भारत स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। भारत ने आज के दिन राष्ट्र की दृष्टि से स्वतंत्रता प्राप्त की थी, इस बात का भी महत्त्व है। आज के दिन आदमी को यह चिंतन करना चाहिए कि वह अपनी इन्द्रियों के वशीभूत होकर अनैतिकता और नशा आदि की परतंत्रता में तो जीवन नहीं जी रहा। जिस प्रकार भारत की आजादी के लिए कितने संघर्ष करने पड़े थे, उसी प्रकार आदमी को और भारत देश को भी अनैतिकता से आजादी पाने का प्रयत्न करना चाहिए। भारत के पास आध्यात्मिक संपदा भी है तो संतों की संपदा भी है। भारत के ग्रन्थों की भी संपदा है। भारत के लिए भौतिक विकास, आर्थिक विकास, शैक्षिक विकास आवश्यक है तो उसके साथ-साथ नैतिकता का विकास और आध्यात्मिकता का भी विकास हो जाए तो भारत का सर्वांगीण विकास संभव हो सकता है। आज के दिन राष्ट्र का दिन है वहीं आज रक्षाबन्धन भी है। भाई-बहनों के रिश्तों को मजबूती प्रदान करने वाला है। एक-दूसरे की रक्षा की भी बात हो सकती है। इसके साथ ही आदमी को अपनी आत्मा की रक्षा का भी प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आज के दिन को संस्कृत दिवस के रूप में बताते हुए देववाणी कही जाने वाली संस्कृत भाषा में मंगल पाथेय प्रारम्भ किया तो यह सौभाग्य प्राप्त कर मानों जन-जन का मन पुलकित और आनंद से भर गया। आचार्यश्री संस्कृत भाषा में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस भाषा में कितने-कितने महत्त्वपूर्ण धर्मग्रन्थ रचित हैं। बालमुनियों और साध्वियों को संस्कृत भाषा को सीखने का प्रयास करना चाहिए। संस्कृत भाषा के ग्रन्थों को पढ़ने, उन्हें कंठस्थ करने तथा उनका विवेचन करने का प्रयास होना चाहिए। प्राचीन समय में संस्कृत का ज्ञान आवश्यक होता था। संस्कृत को पढ़ने और इसे सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार संस्कृत भाषा की रक्षा करने की प्रेरणा संस्कृत दिवस से प्राप्त की जा सकती है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्य महाप्रज्ञ हाईस्कूल के विद्यार्थियों द्वारा विभिन्न प्रस्तुतियां दी गईं। इनमें छात्राओं ने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी पर रचित गीत का संगान किया। छात्रा गगना और सुषमा द्वारा अभिभाषण की प्रस्तुति हुई। छात्रों ने अणुव्रत गीत का भी संगान किया। छात्रा प्रणम्य डी. जैन ने संस्कृत भाषा में अपनी अभिव्यक्ति दी। छात्रों द्वारा योग के विभिन्न आयामों की प्रस्तुति दी गई। बच्चों ने जीवन-विज्ञान के संदर्भ में परिसंवाद प्रस्तुत किया। अणुव्रत के संदर्भ में भी विद्यार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। इन कार्यक्रमों का संचालन छात्रा सुषमा और तेजस्विनी द्वारा किया गया। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को पावन पाथेय प्रदान किया। विद्यालय के चेयरमेन श्री मनोहर भारती में अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री महाश्रमण चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नित्य की भांति आज भी अनेकानेक तपस्याओं का प्रत्याख्यान हुआ।