मुंबई। आ. रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में आज प्रवचन दौरान पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने “गुरु के वचनों की अवहेलना” विषय के बारे में बताया।
1 निरोगी व्यक्ति के 1 श्वासोश्वास में निगोद की आत्मा का साढ़े 17 बार जन्म मरण होता हैं, जब आत्मा का अव्यवहार राशि (निगोद) से निकल कर व्यवहार राशि में प्रवेश होता हैं तब भवि और अभवि आत्मा में आगे बढ़ती हैं, भवि आत्मा जलेबी की तरह जिसका आरम्भ और अंत दोनों होता हैं पर अभवि आत्मा चूड़ी की तरह जिसका कोई आरम्भ नहीं और कोई अंत नहीं, अनंतकाल के लिए भटकना हैं।
अभवि आत्मा उत्कृष्ट चारित्र पालन करती हैं, 8 तत्वों पे भरोसा होता हैं और 9वां तत्व मोक्ष को वो नहीं मानती इसलिए वो अचर्मावत में रहती हैं और उसको मोक्ष नहीं प्राप्त होता। भवि आत्मा जिसको संसार ही अच्छा लगता हैं उसके 1 से ज्यादा चक्कर बाकी हो वो अचर्मावत में रहती हैं, जिसको संसार और धर्म दोनों अच्छे लगते हैं उसका 1 चक्कर बाकी रहता हैं और वो चर्मावत में रहती हैं, जिसको सिर्फ धर्म ही अच्छा लगता हैं उसका आधा चक्कर बाकी रहता हैं और वो अर्ध-चर्मावत में रहती हैं और उसका मोक्ष नजदीक रहता हैं। सिर्फ धर्म करने से मोक्ष के निकट नहीं पहुच सकते, पहले पापों के डर के साथ पापों का त्याग जरूरी हैं। जन्म कुंडली में मध्य में बुध हो तो 100 दोष, शुक्र हो तो 1000 दोष और गुरु हो तो लाख दोष दूर होते हैं, पर जिस शिष्य के हृदय में गुरु बस जाए उसके अनंत दोष दूर हो जाते हैं। वीर विजयजी महाराज की समकित के 67 लक्षण वाली 67 बोल की सज्जाय में गुरु के कोटा-कोटि अनंत उपकार का बताया हैं, भोजन का दान देने वाले का उपकार 1 दिन तक का, कपड़े दान देने वाले का उपकार 6 महीने तक का, अभय दान देने वाले का उपकार आजीवन तक का, समाधि देने वाले का उपकार परलोक तक का, ज्ञान दान देने वाले का उपकार इस लोक और परलोक तक का पर समकित दाता यानी गुरु का उपकार जब तक मोक्ष ना मिले तब तक रहता हैं।
गुरु ब्रह्मा बनकर शिष्य के हृदय के वन को उपवन बनाये, विष्णु बनकर मर्यादा में रखकर शिष्य का संरक्षण करें, और महेश बनकर शिष्य की दुष्ट भावनाओं को खत्म करें। उत्तराध्यनन सूत्र में लिखा हैं कि ज्ञान प्राप्त करना हैं तो गुरु के आधीन में रहना चाहिये। शिष्य की गलती पर गुरु 4 प्रकार से उसके हितों की रक्षा करते हैं, सारणा (याद दिलाना), वारणा (रोकना-निषेध करना), चोयणा (धमकाना-अपशब्द बोलना) और पड़ी-चोयणा (मारना-पीटना)। गुरु के वचनों की अवहेलना करे तो देवलोक मिल सकता हैं पर मोक्ष नहीं।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार आज प्रवचन पश्चात साधारण फंड के लाभार्थियों का बहुमान किया गया, वहीं ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति रही।
गुरु के वचनों की अवहेलना करने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं: ललितशेखरविजयजी म. सा.
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