मुंबई। आ. रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में प्रवचन में पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने “गुरु आज्ञा” विषय पर प्रवचन दिया।
4 शरण बताई गयी हैं, 1. आजीवन पापों से रहित शुद्ध जीवन जीने वाला सुपर मैन, 2. किये हुए पापों को स्वीकारना और पश्चाताप करने वाला क्लीन मैन, 3. पश्चाताप करने के बाद भविष्य में वो पाप फिर से नहीं होगा ऐसा संकल्प लेने वाला ग्रेट मैन और 4. पश्चाताप होने के बाद प्रायश्चित भले ही ना ले पर भीतर में दुख और वेदना हो और रोता रहे वो जेंटल मैन। गति, भव और शरीर बदलता हैं पर आत्मा के पाप नहीं बदलते इसलिए गति के पहले मति बदलनी चाहिए।
आध्यात्म जगत में 4 प्रकार की आंखें बताई गई हैं, 1. चर्म चक्षु, जो हैं वो दिखाते हैं, 2. विचार चक्षु, जो दिखता हैं उसकी ताकत और परिणाम दिखाते हैं, 3. जो नहीं हैं वो दिखाते हैं और 4. श्रद्धा चक्षु, जो भीतर में हैं और वो खोलने का काम गुरु करते हैं और खुलने के बाद ज्ञान के मार्ग द्वारा मोक्ष का मार्ग दिखता हैं। सगुरा यानी गुरु सहित या गुरु आज्ञा अनुसार चलने वाला और नगूरा यानी गुरु रहित या गुरु आज्ञा अनुसार नहीं चलने वाला। कुमारपाल राजा, आमराजा, सिकंदर, अकबर, तानसेन, आदि महापुरुषों के भी गुरु थे। गुरु के हृदय में बसेंगे तभी हम शिष्य कहलायेंगे।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार प्रवचन पश्चात साधारण फंड के लाभार्थियों का बहुमान किया गया। ‘ऋषभ महा-विद्या तप’ के चौबीसवें दिन के एकासणे की व्यवस्था भी बहुत अच्छे से सम्पन्न हुई। इन सभी मौकों पर ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं भी मौजूद रहे।
ललितशेखरविजयजी म. सा. ने बताया- आध्यात्म जगत में 4 प्रकार की आंखें
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