जलगांव। आहार और जीवन का संबंध अनादि कालीन है।जीवन जीना है तो आहार अपेक्षित है। आहार का स्वास्थ्य और साधना से गहरा संबंध है। हित, मित्र और सात्विक भोजन स्वास्थ्य के साथ मन को भी स्वस्थ रखता है। यह उदगार आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी साध्वी श्री निर्वाण श्री जी ने कनेक्शन Connection with Food Science Workshop में उपस्थित संभागीयो के समक्ष व्यक्त किए।
साध्वी श्री निर्वाण श्री जी ने food science के आध्यात्मिक पक्ष को उजागर करते हुए कहा- जिस व्यक्ति के शरीर की जो प्रकृति है, उसे समझते हुए भोजन करना जरूरी है। अपने शरीर की चिकित्सा व्यक्ति खुद कर सकता है,यदि आहार विवेक जग जाए।
कार्यशाला की प्रमुख वक्ता प्रबुद्ध साध्वी श्री डॉ. योगक्षेम प्रभा जी ने कहा-भोजन विवेक साधना और स्वास्थ्य का मूल आधार है। जीवन की गाड़ी भोजन रूपी इंजन से चलती है। गरिष्ठ, मिर्च मसालो वाला तथा तला-भुना भोजन शरीर के लिए हितावह नहीं है।बार-बार खाना, बातें करते खाना, जल्दी-जल्दी खाना यह शरीर के लिए अच्छा नहीं है। भोजन संयम के लिए ऊनोदरी, रसपरित्याग, उपवास ये विशेष तत्व है।
डाइटिशियन विद्या जी चौधरी ने कहा- श्रेष्ठ आरोग्य के लिए अपने शरीर की जरूरतों पर ध्यान देना जरूरी है ।भोजन शरीर के अवयवों को शक्ति और पोषण देने के लिए है। अन्न की कॉस्मिक पावर को पहचाने व शरीर को दें। शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन,विटामिन, मिनरल्स आदि संतुलन देते हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल की बहनों ने मंगलाचरण “हो संकल्प सत्य शिव”के गीत से किया। मंडल की अध्यक्ष श्रीमती निर्मला छाजेड़ ने साहित्य से विद्या जी चौधरी का स्वागत किया। मंच संचालन श्रीमती अमिता सेठिया ने कुशलता से किया।धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती प्रिया दुग्गड़ ने किया। कार्यशाला में भाई बहनों की अच्छी संभागिता रही। इस अवसर पर धूलिया से सें समागत देवीदास जी जीरे का 11 दिन तप के उपलक्ष में सभा की ओर से अभिनंदन पत्र दिया गया।
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