आज ही के दिन 9 अगस्त 1945 को फैटमैन नामक बम ने जापान के नागासाकी शहर को पूरी तरह से तबाह कर दिया था। इस वजह से इतिहास के पन्नों में 9 अगस्त का दिन नागासाकी दिवस के नाम से दर्ज है। अमेरिका द्वारा 9 अगस्त को दक्षिणी जापान के बंदरगाह नगर नागासाकी पर 11 बजकर, 1 मिनट पर 6.4 किलो. का प्लूटोनियम-239 वाला ‘फैट मैन’ नाम का बम गिराया था। इससे पहले 6 अगस्त को ही अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर ‘लिटिल बॉय’ नाम का यूरेनियम बम गिरा दिया था। इन दोनों बमों की वजह से इन दोनों शहरों में लगभग एक लाख चालीस हज़ार लोग मारे गए थे।
अमेरिका ने जब जापान के नागासाकी शहर पर प्लूटोनियम परमाणु बम गिराया गया, उसके 43 सेकंड के बाद ज़मीन से 1,540 फीट की ऊंचाई पर यह बम फटा, इसके फटने के बाद 21 किलोटन टी.एन.टी. के बराबर धमाका हुआ। बम फटने के बाद 3900 डिग्री सेल्सियस की ऊष्मा उत्पन्न हुई और हवा की गति 1005 किमी. प्रति घण्टे तक पहुंच गयी। इससे इस शहर में तत्काल लगभग 65000 लोगों की मौत हो गई। बम की चपेट में आए हजारों लोग बीमार हुए, 1945 के अन्त तक इस बम विस्फोट से मौत का आंकड़ा 80,000 तक जा पहुंचा।
क्या है इतिहास
हर ताकतवार देश विश्व विजयी बनना चाहता है उसका यही सपना होता है। हिटलर ने भी यही सपना देखा था। 1 सितंबर 1939 को पोलैंड पर अचानक हमला करके हिटलर ने इस सपने को पूरा करने की शुरुआत की। इसे एक तरह से द्वितीय विश्वयुद्ध की भी शुरुआत माना गया था। जापान का राजवंश भी इसी सपने को पूरा करने की लालसा में अपना विस्तार कर रहा था। जल्दी ही वह भी द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल हो गया। हिटलर ने ताव में आकर 22 जून, 1941 को सोवियत संघ (रूस) पर आक्रमण कर उसे छेड़ दिया था।
इसी तरह से जापान ने भी 7 दिसंबर, 1941 को प्रशांत महासागर में स्थित अमेरिकी नौसैनिक अड्डे ‘पर्ल हार्बर’ पर लगातार बमबारी कर अमेरिका को चुनौती दे दी थी। जब जापान में पहले हमला कर दिया तो अमेरिका के लिए ये चुनौती हो गई। अमेरिका के ऊपर हमला करने का मतलब यह था कि जापान द्वितीय विश्वयुद्ध में कूद चुका है, अब वो आरपार युद्ध चाहता है।
तय हो गई थी जर्मनी की हार
जापान के नागासाकी शहर पर परमाणु बम हमले के एक महीने पहले तक मॉस्को में जापान के राजदूत ने सोवियत विदेशमंत्री से मिलकर अनुरोध किया कि उनका देश मित्र देशों के नेताओं के साथ शांति-वार्ताएं करना चाहता है। शुरुआत में दोनों देश शांति वार्ता के लिए आगे बढ़े मगर बात बनी नहीं। इस बीच जर्मनी का यूरोप के एक बड़े हिस्से पर कब्जा हो गया। उधर जापान एशिया-प्रशांत महासागर के बहुत बड़े भू-भाग पर अपना विस्तार कर चुका था, लेकिन 1942 में हवाई के पास जापानी सेना की और 1943 में स्टालिनग्राद में जर्मन सेना की पराजय के बाद किस्मत का पहिया इन दोनों देशों के लिए उल्टा घूमने लगा। इस वजह से अगले दो सालों में ही जर्मनी की हार तय हो गई।
प्रेमिका से रचाई शादी, फिर किया सुसाइड
हिटलर काफी परेशान हो गया था। अपने 56 वां जन्मदिन मनाने के 10 दिन बाद, 1945 में 29-30 अप्रैल के बीच वाली रात हिटलर बर्लिन के अपने भूमिगत बंकर में पहुंचा, वहां पहले उसने अपनी प्रेमिका एफ़ा ब्राउन से शादी रचाई, उसके कुछ घंटे बाद दोनों ने आत्महत्या कर ली। मरने से पहले हिटलर ने अपनी वसीयत में लिखवाया- मैं और मेरी पत्नी भगोड़े बनने या आत्मसमर्पण की शर्मिंदगी के बदले मृत्यु का वरण कर रहे हैं। हिटलर की आत्महत्या के एक ही सप्ताह बाद, 7 मई से 8 मई की मध्यरात्रि को जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। इस तरह यूरोप में तो द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत हो गया, किंतु एशिया में वह चलता रहा। जापान की भी कमर तो टूट चुकी थी, पर वह घुटने टेकने में टालमटोल कर रहा था।
विशेष बम-फैट मैन के इस्तेमाल की तैयारी
25 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने फिलिप्पीन सागर में स्थित तिनियान द्वीप पर तैनात अमेरिका की प्रशांत महासागरीय वायुसेना के मुख्य कमांडर को आदेश दिया कि 3 अगस्त तक ‘विशेष बम’ के इस्तेमाल की तैयारी कर ली जाए। जिस विशेष बम – ‘लिटल बॉय’ – को 3 अगस्त को गिराने की बात ट्रूमैन कर रहे थे, वह यूरेनियम बम था। इसके साथ ही एक दूसरा बम ‘फैट मैन’ भी तैयार हो रहा था। यह प्लूटोनियम बम था, जिसे ‘ट्रीनिटी’ परीक्षण के दो सप्ताह बाद तैयार कर लिया गया था। हालांकि उसका पूर्ण परीक्षण अभी बाकी था।
जापान की हरकतों से परेशान राष्ट्रपति ट्रूमैन और उनके सलाहकार जापान पर परमाणु बम गिराने के अपने इरादे पर अटल थे। उनका कहना था कि दो अरब डॉलर लगा कर इन बमों का विकास क्या इसलिए किया गया है कि उनका कभी इस्तेमाल ही न हो। यह जानने के लिए कि दोनों में से कौन कितना संहारक है, दोनों प्रकार के बम जापान के दो शहरों में गिराए जाने तय कर लिए गए थे। इसके लिए जापान के चार शहरों की सूची तैयार की गई। लक्ष्यों की पहली सूची में हिरोशिमा के अलावा कोकूरा, क्योतो और निईगाता के नाम थे।
क्योतो में मनाया था हनीमून इस वजह से नहीं गिरवाया बम
नागासाकी अमेरिका के निशाने पर नहीं था। अमेरिका के तत्कालीन युद्धमंत्री स्टिम्सन के कहने पर जापान की पुरानी राजधानी क्योतो का नाम संभावित शहरों की सूची से हटा कर उसकी जगह नागासाकी का नाम शामिल कर लिया गया। स्टिम्सन ने अपनी पत्नी के साथ क्योतो में कभी हनीमून मनाया था और वे नहीं चाहते थे कि जहां से उनकी ये यादें जुड़ी हुई वो शहर परमाणु बम से मटियामेट हो जाए।
अमेरिका के जनरल ड्वाइट आइज़नहावर और लेओ ज़िलार्द जैसे भौतिकशास्त्री किसी शहर पर इस तरह के परमाणु बम गिराने के विरुद्ध थे। उनका कहना था कि इससे सोवियत संघ के साथ परमाणु हथियारों की होड़ चल पडेगी। उनका यह भी मानना था कि यूरोप में जर्मनी की पराजय के बाद से जापान इतना कमज़ोर हो गया था कि देर-सवेर वह अपने आप घुटने टेक ही देगा। लेकिन राष्ट्रपति ट्रूमैन और उनके सलाहकार जापान पर परमाणु बम गिराने के अपने इरादे पर अटल रहे। उनका कहना था कि दो अरब डॉलर लगा कर इन बमों का विकास क्या इसलिए किया गया है कि उनका कभी इस्तेमाल ही न हो!
बम गिराने पर जापान करेगा आत्म समर्पण
जापान पर परमाणु बम गिराने पर तर्क दिया गया कि इन बमों की मार से जापान जल्द ही आत्मसमर्पण कर देगा। अमेरिकी सैनिकों का कटना-मरना बंद हो जाएगा। अमेरिका के लिए अपने सैनिकों की यह अतिरिक्त चिंता जापानी सैनिकों के उस जीवट से भी निकली थी, जिसके बूते उन्होंने जुलाई, 1945 में ओकीनावा की लड़ाई में 12,500 अमेरिकी सैनिकों का सफाया कर दिया था। तब तक पूरे प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में करीब 80,000 अमेरिकी सैनिक मारे जा चुके थे।
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