नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक घर में नजरबंद रखने का आज आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि असहमति लोकतंत्र का ‘‘सेफ्टी वाल्व’’ है। कार्यकर्ताओं वरवर राव, वेरनन गोंसाल्विज, अरूण फरेरा, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को राहत देते हुए शीर्ष अदालत ने उनकी तरफ से राहत की मांग करने वाली इतिहासकार रोमिला थापर तथा चार अन्य याचिकाकर्ताओं के इस मामले से संबंध को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार के विरोध पर विचार नहीं किया।
महाराष्ट्र पुलिस ने इन सभी को पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव-भीमा गांव में भड़की हिंसा के मामले में दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में गिरफ्तार किया था।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने भीमा-कोरेगांव घटना के करीब नौ महीने बाद इन व्यक्तियों को गिरफ्तार करने पर महाराष्ट्र पुलिस से सवाल किये।
पीठ ने खचाखच भरे अदालतीकक्ष में कहा, ‘‘असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है और यदि आप इन सेफ्टी वाल्व की इजाजत नहीं देंगे तो यह फट जायेगा।’’ राज्य सरकार की दलीलों पर कड़ा संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह (गिरफ्तारी) वृहद मुद्दा है। उनकी (याचिकाकर्ताओं की) समस्या असहमति को दबाना है।’’
पीठ ने सवाल किया, ‘‘भीमा-कोरेगांव के नौ महीने बाद, आप गये और इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया।’’ पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की इस दलील पर गंभीर रूप से संज्ञान लिया कि उनकी गिरफ्तारी प्राथमिकी के अनुरूप हुई।
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार और राज्य पुलिस को नोटिस जारी करके याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की इस दलील पर विचार किया कि गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को नजरबंद रखा जाए।
सिंघवी ने कहा कि दो उच्च न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों के बाद दो गिरफ्तार व्यक्ति सुधा और गौतम फिलहाल नजरबंद हैं जबकि तीन अन्य ट्रांजिट रिमांड पर हैं। उन्होंने कहा कि अंतरिम उपाय के तहत, पांचों को ‘‘अपने अपने घर में नजरबंद’’ रखा जाए। पीठ ने उनका यह अनुरोध मान लिया।
सिंघवी ने कहा कि इन पांच में से किसी भी व्यक्ति को भीमा-कोरेगांव हिंसा के संबंध में दर्ज प्राथमिकी में आरोपी नहीं बनाया गया है। उन्होंने कहा कि अगर नागरिकों को इस तरह से गिरफ्तार किया जाएगा तो यह ‘‘लोकतंत्र का अंत’’ होगा।
सिंघवी के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह, दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण और वृंदा ग्रोवर ने इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस की कार्रवाई का कड़ा विरोध किया। याचिकाकर्ताओं में प्रभात पटनायक और देविका जैन भी शामिल हैं।
महाराष्ट्र सरकार के वकील ने इस याचिका की विचारणीयता पर सवाल उठाते हुये कहा कि मामले से सरोकार नहीं रखने वाले, उन कार्यकर्ताओं के लिये राहत नहीं मांग सकते जो पहले ही उच्च न्यायालयों में याचिका दायर कर चुके हैं।
महाराष्ट्र पुलिस ने कल देशव्यापी कार्रवाई करके हैदराबाद से तेलुगू कवि वरवर राव को गिरफ्तार किया था जबकि वेरनन गोंसाल्विज और अरूण फरेरा को मुंबई से गिरफ्तार किया गया था। इसी तरह पुलिस ने ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को हरियाणा के फरीदाबाद और सिविल लिबर्टी कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नयी दिल्ली से गिरफ्तार किया था।
पीठ ने राज्य सरकार से याचिका पर जवाब देने को कहा तथा याचिकाकर्ताओं को अगर हो तो प्रत्युत्तर दायर करने की आजादी दी। इस मामले में अब छह सितंबर को आगे सुनवाई होगी।
असहमति लोकतंत्र का ‘सेफ्टी वाल्व’ है: शीर्ष अदालत
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