मुम्बई। आ. रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. ने नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार में प्रवचन में ‘जैन मंदिर की ८४ आशातनाओं’ के बारे में समझाया।
जैन मंदिर में प्रवेश करते वक़्त निस्सीहि बोलने से लेकर बाहर निकलते वक्त आवस्सहि बोलने तक की सभी क्रिया और विधि को क्रमशः और विवेक के साथ किस तरह करनी चाहिए और करते वक़्त होने वाली ८४ आशातनाओं के बारे में बताया और उनसे बचने के तरीके भी समझाए।
पहली निस्सीहि बोल कर मंदिर में प्रवेश करना मतलब सांसारिक सभी विचारों, वस्तुओं, संबंधों, राग-द्वेष, आदि का त्याग करना। फिर 3 प्रदक्षिणा देकर भाव भरी स्तुति बोलना। पक्षाल बाकी हो तो वासक्षेप पूजा करना पर वासक्षेप अपने सिर पे नहीं डालना और ना ही अभिषेक के बाद वहीं से पक्षाल लेकर अपने पूरे बदन को लगाना चाहिए, जो भी द्रव्य प्रभु को छू जाए या प्रभु को अर्पण करें वो देव-द्रव्य बन जाता हैं, और हमें देव-द्रव्य भक्षण का पाप लगता हैं, वासक्षेप सिर्फ साधु भगवंतों के पास ही डलवाना चाहिए।
जिनेश्वर प्रभु पूजा को द्रव्य पूजा कहा जाता हैं और वो अष्ट प्रकारी पूजा होती हैं और उत्तम में उत्तम द्रव्यों से प्रभु पूजा करनी चाहिए, जिसमें जल-पक्षाल-अभिषेक पूजा, बरास-चंदन-केशर पूजा और फूल-पुष्प पूजा को अंग पूजा होती हैं क्योंकि ये तीनों पूजा प्रभु के अंगों को छूकर की जाती हैं और धूप पूजा, दीपक पूजा, अक्षत पूजा, नैवेद्य पूजा और फल पूजा अग्र पूजा होती हैं क्योंकि ये पांचों पूजा प्रभु सन्मुख की जाती हैं।
फिर दूसरी निस्सीहि बोल कर अंग पूजा का निषेध करके अग्र पूजा के बाद तीसरी निस्सीहि बोलकर अग्र पूजा का निषेध करके चैत्यवंदन करना चाहिए। अंत में सम्यग-दृष्टी, शासन रक्षक, अधिष्ठायक देव-देवी जो हमारे साधर्मिक भाई-बहन होते है, उनकी नव अंग पे पूजा नहीं की जाती और ना ही उनके ऊपर वासक्षेप फेंकना चाहिए, बहुमान स्वरूप देवों के कपाल में वासक्षेप से दाहिने अंगूठे से तिलक करना होता है और देवियों को दाहिनी तर्जनी उंगली से बिंदी करनी होती है, उनको सिर्फ दर्शन भी कर सकते हैं, उनको खमासमणे नहीं दिए जाते।
किशन सिंघवी के अनुसार ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारियों में अध्यक्ष वसंत भंसाली, पूर्व अध्यक्ष चंदनमल संघवी, राजमल जैन, महेंद्र मंडोत, पंकज मेहता, रसिक पालरेचा, देवीलाल संघवी, देवराज पुनमिया, ललित जैन, बस्तिमल बाफना, कमलेश गांधी, आदि मौजूद रहे और समर्पण ग्रुप, ठाकुरद्वार के कुणाल शाह, राहुल जैन, नमन जैन, मितेश जैन, रौनक निसर, विशाल दोशी, भरत पोरवाल, आदि मौजूद रहे, वहीं चन्दनमल सिंघवी, चांदमल सिंघवी, खूबीलाल सिंघवी, सोहन पामेचा, अमृत पामेचा, जेठमल कोठारी, हस्तीमल सिंघवी, चंदू पामेचा, गणेश सिंघवी, हेमंत सिंघवी, आदि की भी उपस्थिति रही।
आचार्य रविशेखर सूरीश्वर जी महाराज सा. ने समझाई ‘जैन मंदिर की ८४ आशातनायें’
Leave a comment
Leave a comment