–कर्त्तव्य से च्यूत होने वाले का हो सकता है अनिष्ट
-‘सम्बोधि’ के माध्यम से आचार्यश्री ने दी कर्त्तव्यनिष्ठ बनने की प्रेरणा
-उपासक-उपासिकाओं को आचार्यश्री ने प्रदान की उपसंपदा
23.07.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अग्रणी बेंगलुरु, भारत की सिलिकाॅन वैली के नाम से प्रसिद्ध बेंगलुरु और साल भर अपने सुहावने मौसम के लिए पूरी दुनिया को आकर्षित करने वाला बेंगलुरु वर्तमान में लोगों के लिए आध्यात्मिकता की दृष्टि से भी आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। इसका कारण है जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले, लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे कल्याणकारी सूत्रों समझाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भारतीय ऋषि परंपरा के महान संत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2019 का चतुर्मास बेंगलुरु महानगर में कर रहे हैं। ऐसे महापुरुष के आगमन से ही बेंगलुरु की धरती अध्यात्ममय हो गई है। आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में प्रवास कर रहे महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगलवाणी से नित्य प्रवाहित ज्ञानगंगा लोगों को आध्यात्मिकता के रस से सराबोर कर रही है। यहीं कारण है कि देश के कोने-कोने से लोग यहां सहज ही खींचे चले आ रहे हैं और आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं।
चतुर्मास प्रवास स्थल में बने भव्य ‘महाश्रमण समवसरण’ में मंगलवार को उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने ‘सम्बोधि’ के माध्यम से पावन सम्बोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में कर्त्तव्य बोध का बड़ा महत्त्व होता है। जो अपने कर्त्तव्य को नहीं जानता अथवा अपने कर्त्तव्य से च्यूत होता है, वह अनिष्ट को प्राप्त हो सकता है। आदमी भौतिक सुखों और सुविधाओं में आसक्त हो जाता है और कई बार अपने कर्त्तव्यों से च्यूत भी हो जाता है। सम्बोधि के दूसरे अध्याय ‘सुख-दुःख मिमांसा’ में मुनि मेघ भगवान महावीर से प्रश्न करता है कि अल्प समय के लिए प्राप्त इस मानव जीवन के सुखों से विमुक्त होकर कष्टोें को सहे, यह उचित है क्या? भगवान महावीर ने मुनि मेघ को सम्बोध प्रदान करते हुए कहा कि हां, यह उचित है। आदमी को अपने कर्त्तव्यों का बोध होना चाहिए। जिस आदमी को अपने कर्त्तव्य का बोध होता है और वह उसका अनुपालन करता है तो वह सुखी और अपने कर्त्तव्य को न जानने वाला और उसका नहीं पालन करने वाला दुःखी बनता है।
जो आदमी भौतिक सुखों में आसक्त हो जाता है, भोग-विलासता में मस्त हो जाता है, सुखासक्त हो जाता है, वह दुःखों को प्राप्त कर सकता है। इसलिए सभी को अपने कर्त्तव्य का बोध होना चाहिए।
इसी प्रकार राजा के तीन कर्त्तव्य बताए गए हैं-सज्जनों की रक्षा करना, असज्जनों पर शासन करना, उन्हें दंड देना और अपनी समस्त प्रजा का भरण-पोषण करना। यदि राजा लापरवाह हो जाए, भोगासक्त हो जाए तो वह स्वयं और उसका राज्य भी विनाश को प्राप्त हो सकता है। राजा का कर्त्तव्य जनता की सेवा करना होता है और वह ऐसा न करे तो वह अपने कर्त्तव्यों से च्यूत हो जाता है। इस कारण उसे पद से भी च्यूत होना पड़ सकता है। आदमी को अपने जीवन को कठोर बनाने का प्रयास करना चाहिए। ज्यादा सुखासक्त और भोग-विलासता में लिप्त होने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में परिश्रम करने का प्रयास करना चाहिए और अपने कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के पश्चात् जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित उपासक प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने पहुंचे उपासक-उपासिकाओं को आचार्यश्री ने अपने श्रीमुख से उपसंपदा प्रदान कर उन्हें कर्त्तव्यनिष्ठ बनने की प्रेरणा प्रदान की।