नई दिल्ली:पाकिस्तान के साथ राजनीतिक वार्ता के फिलहाल कोई आसार नहीं हैं। पड़ोसी देश में बदले राजनीतिक घटनाक्रम और बातचीत को लेकर जताई गई उनकी इच्छा के बावजूद कूटनीतिक जानकार लोकसभा चुनाव के पहले भारत-पाक बातचीत की संभावना नहीं देखते। जानकारों का कहना है कि यह संभव है कि सीमा पर शांति और सकारात्मक माहौल बनाने के लिए परदे के पीछे कूटनीति जारी रहे। लेकिन समग्र वार्ता को लेकर कोई भी रुख भारत में आम चुनाव के बाद ही तय हो सकता है।
संबंध सुधारने की कवायद : सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तान में नई सरकार बनने की वजह से पर्दे के पीछे विभिन्न स्तरों पर संबंध सुधारने की कोशिश नजर आ सकती है। भारत ने खुद इस तरह की इच्छा जाहिर की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को लिखा गया पत्र इसी सद्भावना का संकेत है।
पूर्व राजदूत एनएन झा ने कहा कि राजनीतिक स्तर पर कोई भी वार्ता पाकिस्तान के रुख को देखकर और अपने देश के अंदरूनी राजनीतिक घटनाक्रमों पर ही तय होगा। कूटनीतिक जानकार आगाह कर चुके हैं कि भारत को बातचीत को लेकर किसी तरह की जल्दबाजी दिखाने की जरूरत नहीं है।
सिंधु जल समझौते पर वार्ता तकनीकी जरूरत : सिंधु जल समझौते पर दोनों देशों के बीच लाहौर में प्रस्तावित बातचीत को सूत्र भारत के रुख में किसी तरह की नरमी से जोड़कर नहीं देख रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि पिछले साल मार्च में भी दोनों देशों के बीच सिंधु जल समझौते को लेकर दिल्ली में बातचीत हुई थी। यह बैठक अंतरराष्ट्रीय संधि की तकनीकी अपरिहार्यता के चलते हो रही है।
एनएसए स्तर पर वार्ता संभव
सूत्रों ने कहा कि समग्र वार्ता से पहले दोनों देश तय फार्मूले के तहत एनएसए स्तर की वार्ता को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर सकते हैं। पाकिस्तान में नई सरकार बनने के पहले गुपचुप तरीके से दोनों देशों के एनएसए के बीच संपर्क हुआ था। सूत्रों ने कहा कि एनएसए स्तर पर बतचीत का तंत्र बना हुआ है।
आतंकवाद का मुद्दा अहम
सूत्रों ने कहा कि आतंकवाद के मुद्दा भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस पर पाक में आयोजित सार्क सम्मेलन रद्द करना पड़ा था। भारत को इस मसले पर सार्क के अन्य देशों के अलावा वैश्विक स्तर पर काफी समर्थन मिला है। भारत चाहता है कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाक ठोस कार्रवाई का संदेश दे।
भारत-पाक राजनीतिक वार्ता अभी मुश्किल
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