भारतीय राजनीति का वह चेहरा जो किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा वह नाम है शीला दीक्षित। शनिवार 20 जुलाई 2019 को उन्होंने दिल्ली में आखिरी सांस ली। उनके निधन के बाद से कांग्रेस का बड़ा नुकसान हुआ है। शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च, 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ था।
शादी के बाद शुरू हुआ था राजनीतिक करियर
शीला दीक्षित की शादी वरिष्ठ IAS विनोद दीक्षित के साथ हुई थी। 1962 में शीला दीक्षित और विनोद दीक्षित ने एक दूसरे के साथ पावन परिणय बंधन में बंधे थे। शादी के बाद इनका राजनीतिक करियर शुरू हुआ। इनके ससुर ही इन्हें राजनीति में लेकर आए इसके बाद शीला दीक्षित ने कन्नौज लोकसभा का चुनाव लड़ा। कन्नौज से सांसद बनने बाद वह दिल्ली आईं।
शीला का दिल्ली में बजा डंका
शीला दीक्षित ने जब दिल्ली में कदम रखा तब वह भी यह नहीं जानती थीं कि दिल्ली से उनका इतना गहरा रिश्ता बना जाएगा। शीला दीक्षित दिल्ली ही नहीं पूरे देश में कांग्रेस का जाना माना चेहरा बन गई थीं। दिल्ली में विधानसभा चुनाव में शीला दीक्षित ने कांग्रेस का काफी मजबूत किया और वह लगातार 15 साल दिल्ली की कुर्सी पर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहीं। शीला 1998 से 2013 तक लगातार 15 सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री के पद पर रहीं। हालांकि इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया दिया मगर इस पद पर वह ज्यादा दिन तक नहीं रह सकीं। अगस्त, 2014 में उन्होंने इस पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।
दिल्ली के विकास को लगे थे पंख
शीला दीक्षित के 15 साल के कार्यकाल में पांच साल केंद्र में भाजपा सरकार के साथ मिलकर काम किया। उस समय केंद्र में भाजपा की अटल सरकार थी। शीला ने बेहतर सामंजस्य स्थापित कर मेट्रो, हाईवे, बिजली समेत तमाम ऐसे प्रोजेक्ट पास कराए जिससे दिल्लीवालों की जिंदगी में बड़े बदलाव आए।
शीला के कार्यकाल में दिल्ली में आधुनिक मेट्रो सेवा की शुरुआत हुई थी। 2002 में शाहदरा-तीस हजारी के बीच दिल्ली की पहली मेट्रो सेवा चली थी। इसके बाद से दिल्ली में मेट्रो ट्रैफिक का सबसे बड़ा और मॉडर्न साधन बन चुकी है। शीला दीक्षित 2013 तक दिल्ली की सीएम रहीं। इस दौरान दिल्ली मेट्रो के फेज-1 औऱ फेज-2 का काम पूरा हुआ, रिंग रोड मेट्रो और तीसरे फेज के लिए प्रस्ताव को मंजूरी मिली। उनके कार्यकाल में ही राजधानी के एक बड़े हिस्से तक मेट्रो की पहुंच हुई।
उनके कार्यकाल में ही सीएनजी की शुरुआत की गई थी। डीजल और पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों की जगह सीएनजी से चलने वाली बसें और ऑटो ने दिल्ली को क्लीन एनर्जी के रास्ते पर आगे बढ़ाया। 2009 में शीला दीक्षित ने दिल्ली में लो-फ्लोर बसों की शुरुआत की। 2010 में शीला दीक्षित की सरकार ने दिल्ली में पहली बार सीएनजी हाइब्रिड बसों की शुरुआत की।
शीला के काल में सड़कों और फ्लाईओवर्स का जाल बनाकर परिवहन और यातायात की सुविधाओं का विकास किया। इससे राजधानी में ट्रैफिक जाम की समस्या कम हुई। इसके बाद मुनिरका, आईजीआई एयरपोर्ट, अक्षरधाम, धौलाकुआं जैसी ज्यादा ट्रैफिक वाली जगहों पर फ्लाईओवर का जाल बनवाकर ट्रैफिक को नियत्रित किया और जाम घटाया।
2019 का वर्ष उनके लिए रहा खराब
लोकसभा चुनाव में शीला दीक्षित पर कांग्रेस ने फिर से दांव लगाया मगर कांग्रेस को वह सफलता दिलाने में सफल नहीं हो पाईं। मोदी लहर में कांग्रेस ताश के पत्ते की तरह ढह गई। शीला दीक्षित बतौर प्रदेश अध्यक्ष इस बात के लिए कांग्रेस पार्टी को जरूर आश्वस्त करना चाहतीं थी कि वह ही एकमात्र पार्टी हो जो भाजपा का विकल्प दे सकती है जिसमें वह काफी हद तक कामयाब भी रहीं। नजीतजन दिल्ली में कांग्रेस का वोट प्रतिशत काफी बढ़ा। हालांकि इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली।