चेन्नई (ईएमएस)। एम करुणानिधि 49 सालों से जिस पद पर काबिज़ रहे हैं, उस पद पर एमके स्टालिन की मंगलवार को ताजपोशी होने वाली है। डीएमके अध्यक्ष के रूप में स्टालिन के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनके अपने बड़े भाई एमके अलागिरी ही हैं, जो उन्हें किसी भी तरह डीएमके की कमान संभालते नहीं देखना चाहते। तमिलनाडु की राजनीति हमेशा से नाटकीय रही है। अलागिरी ने करुणानिधि की मौत के एक सप्ताह बाद ही स्टालिन को पार्टी की कमान सौंपे जाने पर सवाल उठाया था। यहां गौर करने वाली बात यह है कि सन 2014 में जब दोनों भाइयों के बीच बढ़ती दरार को पाटना मुश्किल हो गया था, तो करुणानिधि ने अलागिरी को पार्टी से बाहर कर दिया था। तब से लेकर अब तक स्टालिन ही पार्टी का कामकाज देखते रहे हैं। इस दौरान स्टालिन ने पार्टी में हर स्तर पर अपने लोगों को तैनात कर दिया है। पिछले चार सालों से सक्रिय राजनीति से दूर रहने वाले अलागिरी बिना शक्ति परीक्षण रास्ते से हटने को तैयार नहीं दिखाई देते। उन्होंने अब स्टालिन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसीलिए करुणानिधि के समाधि स्थल मरीना बीच पर उन्होंने दावा किया था कि डीएमके के मुख्य कार्यकर्ता उनके साथ हैं। उन्होंने कहा कि स्टालिन कार्यकारी अध्यक्ष हैं, लेकिन काम नहीं करते और उनमें पार्टी को जिताने की क्षमता भी नहीं है।
अलागिरी ने ऐसा कहकर स्टालिन की दुखती रग पर हाथ रख दिया था। दरअसल 2014 का लोकसभा चुनाव डीएमके ने स्टालिन की अगुवाई में ही लड़ा था, लेकिन पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। इसके अलावा सिर्फ दो साल बाद 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में भी पार्टी एआईएडीएमके को सत्ता से बाहर नहीं कर पाई थी। अब 2019 का चुनाव स्टालिन के लिए लिटमस टेस्ट की तरह है। लगातार तीन चुनाव हारना उनके लिए खतरे की घंटी हो सकता है। अलागिरी पांच सितंबर को चेन्नई में रैली करने वाले हैं।
सन 1980 में दोनों भाइयों के बीच बढ़ती दरार को कम करने के लिए करुणानिधि ने अलागिरी को दक्षिण तमिलनाडु में पार्टी की कमान संभालने के लिए भेज दिया था। अब चेन्नई में रैली करके अलागिरी, स्टालिन को एक तरह से उन्हीं के क्षेत्र में ललकार रहे हैं। अलागिरी का कहना है कि उनके साथ रैली में करीब एक लाख लोग होंगे। हो सकता है यह बात बढ़ा-चढ़ा कर कही गई हो, लेकिन इस बात में संदेह नहीं है कि विपक्षी पार्टियां डीएमके में पड़ी फूट का फायदा उठाने के लिए अलागिरी की मदद करें।
हालांकि इस बात की संभावना नहीं के बराबर है कि वह डीएमके के किसी धड़े को अपने साथ मिला पाएंगे। युवाओं से जुड़ने के लिए स्टालिन टीम ने करीब दो साल पहले अपने पहनावे में भी बदलाव किया था। उन्होंने वेष्टि की जगह पतलूम और सफेद शर्ट की जगह रंगीन कपड़े पहनना शुरू कर दिया है। लेकिन सिर्फ इन्हीं चीज़ों से मतदाता डीएमके की ओर खिंच आएंगे, इसकी संभावना कम ही लगती है। स्टालिन को मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने के लिए अपने पिता से भी बेहतर गवर्नेंस का नया मॉडल देना पड़ेगा। केवल सत्ता विरोधी लहर के सहारे डीएमके सहज ही सत्ता पर काबिज नहीं हो पाएगी। हालांकि, 1984 और 2016 को छोड़ दिया जाए तो तमिलनाडु में सत्ता परिवर्तन का तय पैटर्न दिखाई देता है। हर बार तमिलनाडु की जनता सत्ता पर काबिज़ पार्टी को बाहर कर देती है। सत्ता लगातार डीएमके और एआईएडीएमके के बीच बदलती रही है। लेकिन इस बार स्थितियां बदल गई हैं। एआईएडीएमके के मूल मतदाताओं के पास वास्तविक एआईएडीएमके और टीटीवी दिनाकरन की अगुवाई वाली एआईएडीएमके के बीच चुनाव का विकल्प है। इसलिए स्टालिन को अपना विजन स्पष्ट करना होगा। केवल इसी वजह से मतदाता उनकी ओर उम्मीद से देख सकता है।
स्टालिन के अध्यक्ष बनने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा अलागिरी, मंगलवार को होगा फैसला
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