रक्षाबंधन का पर्व परिवार-समाज और प्रकृति से प्रेम तथा उसकी रक्षा का बोध भी कराता है। यह त्योहार सिर्फ भाई और बहन का त्योहार नहीं है। इस त्योहार में भी भारतीय संस्कृति और परंपराओं की विविधता साफ झलकती है।मारवाड़ी समाज का राखी पर्व नौ दिन चलता है। पहले घर की चौखट की पूजा होती है। खीर, पूड़ी, मौली और दूबी दरवाजे पर रखते हैं। महिलाएं चौखट पूजा कर भाई को राखी बांधती हैं। अगले आठ दिन रिश्तेदार एक-दूसरे के यहां जाकर राखी बांधते हैं। नौवें दिन गुगा जी (घोड़ा जैसा मिट्टी का जिस पर भगवान को बैठाया जाता है) बनाते हैं। उसके बाद सारी राखियां उतार गूगा जी के चरणों में रख दी जाती है। उत्तर बिहार में रक्षाबंधन के दिन भाभी को भी लुंबा राखी बांधने की परंपरा है। विद्या बताती हैं कि उनकी ननद हर साल राखी बांधने आती हैं। वे भी भाभी को राखी बांधने जाती हैं। इससे दोनों के रिश्ते के बीच मिठास भी बनी रहती है। सरैयागंज की ऋचा के अनुसार, ननद को भाभी का प्यार मिलेगा, मायके में अपनापन मिलेगा, इसलिए परंपरा बनाई गई। रक्षाबंधन के दिन पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पाटली वृक्ष को राखी बांध पर्यावरण सुरक्षा का संकल्प लेते हैं। पटना में पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था भी जागरुकता अभियान चलाती है। कई स्कूल भी ऐसा आयोजन करते हैं। उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा में रक्षाबंधन पर बग्वाल पाषाण युद्ध की प्राचीन परंपरा है। यहां पर चार खाम और सात थोकों के रणबांकुरे मानवता की अलख जगाने के लिए बग्वाल खेलकर एक व्यक्ति के बराबर रक्त बहाते हैं। बग्वाल के बाद सभी रणबांकुरे आपस में गले मिलते हैं। गंगोत्री घाटी के हर्षिल क्षेत्र में पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधने की योजना है। सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश भाई ने रक्षा सूत्र आंदोलन की नींव रखी है। वह बताते हैं कि यह आंदोलन उन्होंने 1994 में वन संरक्षण के लिए शुरू किया था। बंगाल में कई जगहों पर हिंदू और मुस्लिम एक-दूसरे को राखी बांधते हैं। दरअसल, 1905 में जब ब्रिटिश सरकार ने बंगाल के बंटवारे का ऐलान किया तो इसका विरोध करते हुए रबींद्रनाथ टैगोर ने राखी को अलग ही अर्थ दे दिया। टैगोर हिंदू और मुसलमानों को एक-दूसरे से राखी बांधने को कहा कि वे जीवनभर एक-दूसरे की सुरक्षा करेंगे। तब से यह परंपरा जारी है। बिहार के नवादा की मुस्लिम महिलाओं द्वारा तैयार राखी बिहार झारखंड के भाइयों के कलाई पर सजती है। ये महिलाएं अपना हुनर बड़े स्नेह के साथ राखियों में उड़ेलती हैं। इनकी बनाई राखियां बिहार समेत झारखंड में भी भेजी जाती है। तरन्नुम, गुड़िया और अफसाना कहती हैं कि राखी सिर्फ सजावट की चीज नहीं है बल्कि इसमें भाई-बहन का प्यार बसता है।