हर फिल्म का अपना मिजाज होता है। उसके अपने दर्शक और कुछ अलग तरह के किरदार भी होते हैं। ऐसी ही फिल्म है ‘वन डे-जस्टिस डिलीवर्ड’ तथा इसी तरह के खास किरदार में नजर आए हैं अभिनेता हैं अनुपम खेर। देश के कई ज्वलंत मुद्दों को इसमें दर्शाया गया है जिनमें प्राइवेट अस्पतालों की काली करतूतें, होटल में होटल मालिक की घटिया हरकतों के साथ ही अपराधी व नेता अपनी काली करतूतों से किस तरह बच जाते हैं तथा आम आदमी उसकी चपेट में अपना सबकुछ गंवा देता है। मामला पुलिस स्टेशन और कोर्ट में भी जाता है लेकिन वहां भी न्याय उन्हीं को मिल पाता है जिनके पक्ष में मजबूत फर्जी सबूत और गवाह होते हैं तथा पैसों की बदौलत बनाया गया नेटवर्क। इस फिल्म में भी यही है लेकिन पुलिस और अदालत से इतर भी न्याय की एक प्रक्रिया दिखाई गई है, जो कानून की नजरों में भले ही गलत हो लेकिन जिनके ऊपर यह बीतता है या जिनके परिवार इसकी चपेट में आते हैं वे जरूर सोचेंगे कि काश, ऐसा न्याय संभव हो पाता।
कहानीः जस्टिस त्यागी (अनुपम खेर) झारखंड उच्च न्यायालय में एक ईमानदार जज हैं, जिनकी कोशिश रहती है कि उनके सुनाए फैसलों से लोगों को न्याय मिले, लेकिन रिटायरमेंट से पहले कुछ फैसले ऐसे होते हैं, जिसमें सबूत और गवाहों की वजह असली अपराधी भी कानून से बचने में कामयाब हो जाते हैं। इसी दौरान एक महिला जो बम ब्लास्ट के बाद बुरी तरह घायल अपने बेटे को ठीक होते-होते खो देती है। उसके बेटे की मौत के गुनाहगार अस्पताल के डॉक्टर दंपत्ति होते हैं, जिनका वह अस्पताल होता है। इसी तरह एक होटल व्यवसायी पंकज सिंह (राजेश शर्मा) जो होटल चलाता है लेकिन वह भी अपने फायदे के चक्कर में होटल में हनीमून मनाने आए नवविवाहितों का एमएमस बनाता है, जो लीक हो जाता है। उससे दुखी लड़की आत्महत्या कर लेती है लेकिन इसका भी असली गुनाहगार बच निकलता है। वही चीज बम ब्लास्ट के दोषी के साथ भी होती है। दोषी होते हुए भी वह निर्दोष साबित हो जाता है, और उन सभी को निर्दोष करार देने वाले जज कोई और नहीं बल्कि जस्टिस त्यागी ही होते हैं।
रिटायरमेंट के बाद जस्टिस त्यागी की बेटी की शादी होती है और उसी समय से शुरू होता है अपराधियों के लापता होने का खेल। जिसमें पहले डॉक्टर दंपत्ति, फिर होटल मालिक उसके बाद नेता का खास आदमी, और फिर गैरेजवाला। झारखंड पुलिस काफी मशक्कत करती है लेकिन इस मामले में उसे कोई भी सुराग हाथ नहीं लगता, जिसे लेकर पुलिस पर काफी दबाव रहता है। इसी के मद्देनजर मामले की जांच के लिए क्राइम ब्रांच से स्पेशल ऑफिसर लक्ष्मी राठी (ईशा गुप्ता) को बुलाया जाता है और वह अपने तरीके से मामले की जांच शुरू करती है।
डॉक्टर दंपत्ति, होटल मालिक, नेता का खास आदमी, उसके बाद गैरेज वाला सभी कहां हैं, जिंदा हैं या उनकी मौत हो चुकी है? कौन मारता है इन्हें और किस तरह मारता है। आरोपी पकड़ जाता है या नहीं? यह सब जानने के लिए थिएटर जाएं और फिल्म देखें। एक बात की गारंटी है कि दर्शकों का पैसा बरबाद तो नहीं जाएगा।
डायरेक्शनः इस फिल्म को अशोक नंदा ने अच्छा और एकदम कसा हुआ निर्देशन किया है। फिल्म को कहीं भी भटकने नहीं दिया है। पूरी फिल्म दर्शकों को बांधकर रखने में कामयाब रही है। फिल्म का अंत थोड़ा खटकता जरूर है लेकिन वह सेच्युएशन की मांग भी हो सकती है। खैर, इसका फैसला दर्शक खुद करें तो ज्यादा बेहतर होगा।
एक्टिंगः हमेशा की तरह इस बार भी अनुपम खेर ने कमाल की एक्टिंग की है। किरदार में ही रच-बस गए लगते हैं। ईशा गुप्ता पुलिस अधिकारी (लक्ष्मी राठी) के किरदार में एकदम दबंग नजर आई हैं। हरियाणवी बोली के साथ एक्शन का बढ़िया तड़का लगाया है। सहायक पुलिस अधिकारी के किरदार में कुमुद मिश्रा ने बढ़िया एक्टिंग की है। एक मां के छोटे से रोल को जरीना बहाव ने एकदम जीवंत बना दिया है। बाकी किरदारों में जाकिर हुसैन, राजेश शर्मा, मुरली शर्मा ने भी अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय करने में कामयाब रहे हैं।
संगीतः फिल्म में तीन गाने हैं। पहला गाना ‘वन डे परदा उठेगा..’ तो एकदम जबरदस्त है। बाकी दोनों गाने सामान्य हैं लेकिन दर्शकों को पसंद आएंगे।
सुरभि सलोनी की तरफ से फिल्म को 4 स्टार।
– दिनेश कुमार/[email protected]
फिल्म रिव्यूः ‘वन डे-जस्टिस डिलीवर्ड’ (4 Star)
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